Election Commission को इतनी शक्ति क्यों? जानिए CJI की आपत्ति"
क्या “एक देश, एक चुनाव” लोकतंत्र को मजबूत करेगा या कमजोर? पूर्व CJI की गंभीर चेतावनियाँ
लेखक: जे.पी. सिंह | वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार
🔶 प्रस्ताव क्या है?
दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार ने संविधान (129वां संशोधन) विधेयक पेश किया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराना है। इस विधेयक की समीक्षा के लिए संसद ने एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा से कुल 39 सदस्य हैं। समिति की अध्यक्षता भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी कर रहे हैं।
सरकार का तर्क है कि इससे चुनावी खर्च बचेगा, प्रशासनिक बोझ कम होगा और देश को “लगातार चुनावी मोड” से बाहर निकाला जा सकेगा।
🔶 लेकिन, सवाल क्या हैं?
हाल ही में दो पूर्व मुख्य न्यायाधीश — डी. वाई. चंद्रचूड़ और जे. एस. खेहर — ने समिति के सामने इस विधेयक की कुछ संवैधानिक खामियों की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि…
“एक साथ चुनाव कराना संभव है, लेकिन बिना संतुलन के यह लोकतंत्र को खतरे में डाल सकता है।”
🔴 चुनाव आयोग को मिले बेलगाम अधिकार?
पूर्व CJI चंद्रचूड़ और खेहर की सबसे बड़ी आपत्ति धारा 82A(5) पर है। इस धारा में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को यह अधिकार दिया गया है कि वह तय करे कि किस राज्य में विधानसभा चुनाव स्थगित किए जाएं या लोकसभा के साथ कराए जाएं।
⚠️ चंद्रचूड़ ने स्पष्ट कहा:
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ECI को इतनी एकतरफा ताकत देना संविधान की भावना के खिलाफ है।
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चुनाव आयोग को ऐसा अधिकार देना अनुच्छेद 356 की तरह संवैधानिक तंत्र से बाहर जाना होगा।
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चुनाव की तारीखें सिर्फ आयोग नहीं, बल्कि संसद और कैबिनेट की सहमति से तय होनी चाहिए।
🔴 संवैधानिक खामियाँ क्या हैं?
चंद्रचूड़ ने दो प्रमुख संवैधानिक चुप्पियों की ओर इशारा किया:
1️⃣ आपातकाल की स्थिति में क्या होगा?
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संविधान का अनुच्छेद 352 संसद के कार्यकाल को एक साल तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
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विधेयक यह स्पष्ट नहीं करता कि ऐसी स्थिति में “एक साथ चुनाव” की अवधारणा कैसे लागू होगी?
2️⃣ राज्य विधानसभा की समयपूर्व विघटन?
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अगर किसी राज्य सरकार को बहुमत न मिले और विधानसभा 6-7 महीने पहले भंग हो जाए तो क्या होगा?
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क्या चुनाव स्थगित किए जाएंगे ताकि वो लोकसभा के साथ हों?
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यह संविधान में स्पष्ट नहीं है और दुरुपयोग की संभावना बनती है।
🔶 तीन सुरक्षा उपाय (Safeguards) सुझाए गए
चंद्रचूड़ ने समिति को तीन सुझाव दिए ताकि संविधान की भावना सुरक्षित रहे:
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केवल राष्ट्रीय सुरक्षा या कानून-व्यवस्था की स्थिति में ही चुनाव स्थगन की अनुमति हो।
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हर सिफारिश संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित की जाए।
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स्थगन की अवधि सीमित और स्पष्ट रूप से निर्धारित हो।
🔶 विपक्ष की चिंता: क्या यह लोकतंत्र को कमजोर करेगा?
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा और कई विपक्षी सांसदों ने यह सवाल उठाया:
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क्या विधानसभाओं को बीच कार्यकाल में भंग करना संविधान सम्मत है?
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क्या कुछ महीनों के लिए भी चुनाव कराना व्यावहारिक है?
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आपातकाल या संकट की स्थिति में चुनाव प्रक्रिया कैसे संचालित होगी?
🔶विचार ज़रूरी है, लेकिन संतुलन भी!
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने अपनी बात तीन मुख्य बिंदुओं में रखी:
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एक साथ चुनाव कराना संविधान का उल्लंघन नहीं है।
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लेकिन चुनाव आयोग को बेलगाम शक्तियाँ देना खतरनाक हो सकता है।
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विधेयक को आपातकाल और विधानसभा विघटन जैसी स्थितियों पर स्पष्टता देनी होगी।
📌 आखिरी सवाल: क्या लोकतंत्र “सुविधा” के लिए बदला जाएगा?
एक राष्ट्र, एक चुनाव विचार के पीछे मंशा चाहे जितनी अच्छी हो, अगर संवैधानिक संतुलन और शक्ति का विकेंद्रीकरण सुनिश्चित नहीं किया गया, तो यह प्रयोग लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
जब कानूनों की शक्ति जनता से ऊपर हो जाती है, तो लोकतंत्र केवल एक दिखावा रह जाता है।
📢 क्या आप एक साथ चुनाव के पक्ष में हैं? या आपको भी इसमें संवैधानिक खामियाँ दिखती हैं? नीचे कमेंट कर अपनी राय जरूर साझा करें।
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