एनजी न्यूज चैनल की पत्रकारिता: एक चिंतन

 आज के दौर में पत्रकारिता: एक गंभीर विमर्श


आज का दौर पत्रकारिता के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। पत्रकारों का मान-सम्मान पहले जैसा नहीं रहा और उनकी प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। एक समय था जब पत्रकारिता को एक सम्मानित पेशा माना जाता था, लेकिन अब यह स्थिति बदल गई है। पत्रकारों के प्रति समाज में जो सम्मान था, वह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, और इसने उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है।

पत्रकारिता का घटता स्तर

आजकल पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है। पहले जब कोई पत्रकार अपने पेशे का जिक्र करता था, तो गर्व का अनुभव करता था, लेकिन आज ऐसा करना शर्मिंदगी का कारण बनता है। नए पत्रकारों को अक्सर ऐसी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या वे सच में पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं या किसी अन्य व्यवसाय में। पत्रकार का नाम सुनते ही अब सामने वाला व्यक्ति यह सोचने लगता है कि “आजकल तो हर कोई माइक उठाए फिरते हैं।”

यह स्थिति इस बात का संकेत है कि पत्रकारिता का पेशा अब नाई की दुकान बन चुका है, जहां एक माइक के सहारे कोई भी पत्रकार बन सकता है। आज, पत्रकारिता के लिए जो आवश्यकताएँ हैं, वे केवल माइक, कैमरा और कुछ तकनीकी ज्ञान तक सीमित रह गई हैं।

व्यूज की होड़ में पत्रकारिता

अब पत्रकारों का ध्यान समाचारों और तथ्यों पर कम, जबकि व्यूज और क्लिकbait पर ज्यादा होता जा रहा है। वे अपने मूल्यों से समझौता कर रहे हैं और अपने आप को पत्रकारिता की गरिमा से नीचे ला रहे हैं। यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि कुछ पत्रकार आर्थिक लाभ के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, हाल ही में नरवाना में एक पत्रकार ने गाड़ी के तेल के नाम पर एक गरीब परिवार से पैसे लिए। वहीं, दूसरे पत्रकार ने मां-बेटे के रिश्ते को व्यूज के लिए तार-तार कर दिया। इन घटनाओं ने यह दिखाया है कि पत्रकारिता के मूल उद्देश्य से भटककर, पत्रकार केवल पैसे कमाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

चुनावों में पत्रकारिता का गिरता स्तर

चुनाव के दौरान भी पत्रकारिता की स्थिति चिंताजनक हो गई है। अब चुनाव जीताने के लिए करोड़ों रुपए की डिमांड करने वाले पत्रकारों की संख्या बढ़ गई है। ऐसे में, जो पत्रकार सही जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें आम आदमी की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, नवीन ग्रोवर जैसे पत्रकार ने चुनाव जीताने की रणनीति के बजाय सिर्फ लाइव प्रसारण को ही चुनावी रणनीति मान लिया है, जो कि एक गंभीर मुद्दा है।

सामाजिक प्रभाव और आम आदमी की स्थिति

इन पत्रकारों की करतूतों के कारण आम आदमी का मान-सम्मान भी प्रभावित हो रहा है। नरवाना की मिर्धा कॉलोनी में मां-बेटे के रिश्ते पर सवाल उठाना इस बात का सबूत है कि पत्रकारिता अब कितनी निचले स्तर तक जा चुकी है। इसके परिणामस्वरूप, उस बेटे को जलालत की जिंदगी जीनी पड़ रही है और उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।

जब मुकेश ने प्रशासन में शिकायत की, तो वहां नवीन की मजबूत पकड़ के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह स्थिति यह दर्शाती है कि पत्रकारिता के मानक गिरने के साथ ही आम आदमी की आवाज भी दबाई जा रही है।

निष्कर्ष

आज की पत्रकारिता को एक गंभीर सोच और आत्म-मूल्यांकन की आवश्यकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नवीन ग्रोवर पर कार्रवाई की जाएगी और क्या मुकेश को इंसाफ मिलेगा। वर्तमान में, स्थिति तो यही दर्शाती है कि पत्रकारिता की गरिमा को फिर से स्थापित करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। अन्यथा, पत्रकारिता का यह गिरता स्तर न केवल पत्रकारों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय बन जाएगा।

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एनजी न्यूज चैनल की पत्रकारिता: एक चिंतन

आज के दौर में पत्रकारिता का चेहरा तेजी से बदल रहा है, और एनजी न्यूज नाम के यूट्यूब चैनल की हालिया गतिविधियाँ इस बदलाव का एक दुखद उदाहरण पेश कर रही हैं। हाल ही में, इस चैनल के दो पत्रकारों की करतूतों ने पत्रकारिता की गरिमा को आहत किया है। एक पत्रकार ने तो गरीब परिवार से गाड़ी के तेल के नाम पर पैसे वसूल किए, जबकि दूसरे ने एक माँ और बेटे के रिश्ते को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आज की पत्रकारिता में पैसे की महत्वता कितनी अधिक हो गई है।

नवीन ग्रोवर का पत्रकारिता का सफर

किताबों की दुकान से पत्रकारिता के सफर की शुरुआत करने वाले नवीन ग्रोवर ने पहले तो अपनी मेहनत और लगन से एक अच्छी पहचान बनाई। लेकिन अब चुनावों में धन की मांग करने वाले पत्रकारों की फौज में शामिल हो गए हैं। ऐसे समय में, जब चुनावी रणनीतियाँ धन के पीछे भाग रही हैं, नवीन जैसे पत्रकारों की सोच है कि केवल लाइव स्ट्रीमिंग ही चुनावी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन सवाल उठता है, क्या केवल लाइव चलाने से चुनाव जीता जा सकता है?

चुनावी रणनीति और पत्रकारिता

राजनीति में जीत के लिए करोड़ों की मांग करने वाले पत्रकार अब महज दो-चार लाख में संतुष्ट हो रहे हैं। ऐसे में यह स्पष्ट है कि वे अपनी मूल पत्रकारिता को छोड़कर केवल व्यूज और पैसे के पीछे भाग रहे हैं। चुनावी प्रैस कॉन्फ्रेंस में सवाल पूछने का ढंग नहीं है, लेकिन फिर भी ये लोग चुनाव जिताने की बात कर रहे हैं। इससे पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है और आम आदमी का सम्मान प्रभावित हो रहा है।

नरवाना के मिर्धा कॉलोनी का मामला

हाल ही में नरवाना के मिर्धा कॉलोनी में एक माँ और बेटे के रिश्ते पर सवाल उठाए गए। इस मुद्दे ने बेटे को सामाजिक मान-प्रतिष्ठा खोने पर मजबूर कर दिया। पत्रकार मुकेश ने प्रशासन में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन नवीन की मजबूत पकड़ के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस स्थिति ने मुकेश को थक कर घर बैठ जाने पर मजबूर कर दिया है।


निष्कर्ष

इस तरह की घटनाएँ न केवल पत्रकारिता को कमजोर कर रही हैं, बल्कि समाज में भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। ऐसे माईक उठाने वाले पत्रकारों की वजह से चौथे स्तंभ की भूमिका कमजोर हो रही है। देखना दिलचस्प होगा कि क्या नवीन ग्रोवर पर कोई कार्रवाई होगी और मुकेश को इंसाफ मिलेगा। वर्तमान में ऐसा लग रहा है कि यह एक कठिन कार्य है, लेकिन समय ही बताएगा कि पत्रकारिता का यह पतन कब थम पाएगा।

इस मामले में समाज और मीडिया दोनों को अपने अपने कर्तव्यों का पुनः मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। क्या हम इस गिरते मानक को सुधारने में सक्षम हैं, या यह सिर्फ एक और अनसुनी कहानी बनकर रह जाएगी?

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