विक्रम मिस्री विवाद: संघर्ष विराम उल्लंघन पर कूटनीति या नरमी?

 विक्रम मिस्री विवाद: संघर्षविराम उल्लंघन पर कूटनीति या नरमी?

नई दिल्ली, मई 2025 — भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम के उल्लंघन पर विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बयान ने देशभर में बहस छेड़ दी है। मिस्री, जो 1989 बैच के वरिष्ठ भारतीय विदेश सेवा अधिकारी हैं और पूर्व में चीन में भारत के राजदूत तथा उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं, ने शनिवार को पुष्टि की कि पाकिस्तान ने संघर्षविराम के कुछ घंटों बाद ही उसका उल्लंघन किया, जिसके जवाब में भारतीय सेना ने सख्त प्रतिक्रिया दी।

उन्होंने स्पष्ट किया, "भारत किसी भी प्रकार के उल्लंघन का मुंहतोड़ जवाब देगा, लेकिन हम इस समय संघर्षविराम समझौते से पीछे नहीं हट रहे।"


🔥 सोशल मीडिया पर भड़का गुस्सा: “यह नरमी नहीं चलेगी”

मिस्री के इस ‘संयमित’ रुख को सोशल मीडिया पर एक वर्ग ने ‘कूटनीतिक कमजोरी’ के रूप में देखा। X (पूर्व ट्विटर) पर कई यूज़र्स ने उन्हें पाकिस्तान के प्रति ‘बहुत नरम’ बताया और कड़ा जवाब देने की मांग की।

ट्रोलिंग यहीं नहीं रुकी — विक्रम मिस्री की बेटी दिदोन मिस्री, जो लंदन की एक अंतरराष्ट्रीय लॉ फर्म Herbert Smith Freehills में काम करती हैं और रोहिंग्या शरणार्थियों को कानूनी सहायता देती हैं, उन्हें भी इस विवाद में घसीटा गया।

उन पर निशाना साधते हुए कुछ यूज़र्स ने उनकी प्रोफेशनल लाइफ को देशभक्ति के तराजू पर तौला। परिणामस्वरूप, मिस्री ने अपना X अकाउंट लॉक कर दिया, जो वर्षों से सार्वजनिक रूप से सक्रिय था।


🛡️ राजनीतिक और राजनयिक हलकों से समर्थन

इस घिनौनी ट्रोलिंग के खिलाफ कई वरिष्ठ नेताओं और पूर्व अधिकारियों ने मोर्चा संभाला:

  • असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM) ने कहा, "विक्रम मिस्री एक ईमानदार और समर्पित अधिकारी हैं। हमें अपने नौकरशाहों पर राजनीति की कीचड़बाजी नहीं थोपनी चाहिए।"

  • निरुपमा राव, पूर्व विदेश सचिव, ने दिदोन पर हमलों को "शर्मनाक और विषैली नफ़रत" करार दिया। उन्होंने ट्वीट किया, “राजनयिक हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ होते हैं। हमें उनका मनोबल गिराने के बजाय उनका साथ देना चाहिए।”


⚖️ कूटनीति बनाम जनभावना: क्या मिस्री ने सही कहा?

इस पूरे विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है — क्या कूटनीति हमेशा कठोर जवाब से कमजोर होती है?

विश्लेषकों का मानना है कि विदेश सचिव का संयम सिर्फ रणनीतिक विवेक का परिचायक है। युद्ध के मुहाने पर खड़े भारत-पाकिस्तान संबंधों में, एक ज़िम्मेदार राजनयिक का पहला कर्तव्य संतुलन बनाना होता है — भले ही वह जनभावना के विरुद्ध क्यों न लगे।


राष्ट्रीय सेवा बनाम निजी हमले

विक्रम मिस्री पर हो रहे हमले यह दर्शाते हैं कि आज के दौर में निजता, पारिवारिक सम्मान और राष्ट्रीय सेवा के बीच की सीमाएं धुंधली हो गई हैं। ऐसे समय में जब देश को अनुभवी कूटनीतिज्ञों की सबसे अधिक ज़रूरत है, उन्हें नीचा दिखाना अपने ही संस्थानों की नींव को कमज़ोर करना है।



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