जॉन अब्राहम की फिल्म 'द डिप्लोमैट' की सच्ची कहानी: उज़मा अहमद का पाकिस्तान से बचाव ?
जॉन अब्राहम की फिल्म 'द डिप्लोमैट' की सच्ची कहानी: उज़मा अहमद का पाकिस्तान से बचाव ?
जॉन अब्राहम की नई फिल्म 'द डिप्लोमैट' एक भारतीय महिला उज़मा अहमद की असल जिंदगी पर आधारित है, जिसे प्यार के जाल में फंसा कर पाकिस्तान ले जाया गया और बंदूक की नोक पर जबरन शादी करने के लिए मजबूर किया गया। इस केस में भारत के वरिष्ठ आईएफएस अफसर जेपी सिंह की भूमिका बेहद अहम रही, जिन्होंने अपने कूटनीतिक कौशल और बहादुरी से उज़मा को पाकिस्तान से सुरक्षित भारत वापस लाने का कठिन कार्य सफलतापूर्वक किया।
यह मामला न केवल मानवीय दृष्टिकोण से संवेदनशील था, बल्कि भारत-पाकिस्तान जैसे तनावपूर्ण देशों के बीच राजनयिक संतुलन बनाए रखने की भी एक चुनौती थी।
उज़मा अहमद कौन हैं और वे कैसे फंसीं पाकिस्तान में?
उज़मा अहमद, एक भारतीय नागरिक हैं जो दिल्ली में अपनी नानी के साथ रहती थीं। उनकी पहली शादी से एक बेटी भी है। 2017 में उज़मा बिज़नेस मैनेजमेंट की पढ़ाई के सिलसिले में मलेशिया गई थीं, जहां उनकी मुलाकात एक पाकिस्तानी नागरिक ताहिर अली से हुई।
ताहिर ने उज़मा को अपने प्रेमजाल में फंसा लिया और बाद में शादी के बहाने उन्हें पाकिस्तान बुला लिया। उज़मा को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि वे जिन हालात में जा रही हैं, वह उनकी ज़िंदगी का सबसे भयावह अनुभव बन जाएगा।
खैबर पख्तूनख्वा में कैद और ज़ुल्म की कहानी
उज़मा के पाकिस्तान पहुंचते ही ताहिर उन्हें देश के सबसे खतरनाक और दुर्गम इलाके खैबर पख्तूनख्वा ले गया, जो अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित है। वहां जाकर उज़मा को पता चला कि ताहिर पहले से शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं।
इस खुलासे के बाद उज़मा को ज़बरदस्ती एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया, उनके पासपोर्ट और दस्तावेज़ छीन लिए गए और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। उज़मा ने बताया,
"मैं पाकिस्तान एक पर्यटक के तौर पर गई थी। मुझे नहीं पता चला कि ताहिर ने कब मुझे नींद की गोली दी और मैं कब सो गई। जब होश आया तो मैं एक अजीब गांव में थी, जहां भाषा भी अजीब थी और लोग भी डरावने थे। सब कुछ गलत लग रहा था।"
उन्हें बंदूक की नोक पर शादी करने के लिए मजबूर किया गया और लगातार धमकियां दी जाती रहीं।
भारत सरकार और जेपी सिंह का साहसिक मिशन
उज़मा किसी तरह पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग (Indian High Commission) तक पहुंचीं और वहां जाकर अपनी जान की गुहार लगाई। यहां से शुरू होती है भारतीय राजनयिक जेपी सिंह की असली परीक्षा।
जेपी सिंह, जो उस समय पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्यरत थे, ने न केवल उज़मा की जान को सुरक्षित करने के लिए कूटनीतिक रणनीतियां अपनाईं, बल्कि पाकिस्तान की अदालत में कानूनी प्रक्रिया का भी सामना किया।
उन्होंने पाकिस्तान की अदालत में यह साबित किया कि उज़मा को जबरन शादी के लिए मजबूर किया गया और उसकी मर्जी के खिलाफ रखा गया।
कई दिनों तक चली कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई के बाद, अदालत ने उज़मा को भारत लौटने की अनुमति दी और 24 मई 2017 को वे वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत लौटीं। यह घटना भारत में एक बड़ी खबर बनी और जेपी सिंह की बहादुरी की सराहना हर तरफ हुई।
फिल्म 'द डिप्लोमैट' क्यों है खास?
'द डिप्लोमैट' केवल एक महिला की जान बचाने की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस जज्बे और समझदारी की कहानी है जिससे एक देश का प्रतिनिधि अपनी नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करता है — वो भी ऐसे देश में, जहां संबंध हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं।
इस फिल्म में जॉन अब्राहम ने आईएफएस अफसर जेपी सिंह की भूमिका निभाई है। यह फिल्म न केवल दर्शकों को रोमांचक अनुभव देगी, बल्कि यह भारत की विदेश नीति, कूटनीति और मानवीय दृष्टिकोण को भी उजागर करेगी।
उज़मा का संदेश और वर्तमान जीवन
भारत लौटने के बाद उज़मा ने अपनी कहानी सार्वजनिक रूप से साझा की और कई महिलाओं को आगाह किया कि वे इंटरनेट और अंतरराष्ट्रीय प्रेम संबंधों में सतर्क रहें। उन्होंने कहा:
“महिलाएं बहुत भावुक होती हैं और धोखा खा जाती हैं। मेरी कहानी हर लड़की को यह समझाने के लिए है कि अपने फैसले सोच-समझकर लें।”
वर्तमान में उज़मा दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती हैं और महिलाओं के अधिकारों को लेकर सामाजिक जागरूकता अभियान में सक्रिय हैं।
'द डिप्लोमैट' एक ऐसी असल घटना पर आधारित फिल्म है, जो यह दिखाती है कि एक नागरिक की सुरक्षा के लिए एक देश का प्रतिनिधि किस हद तक जा सकता है। उज़मा अहमद की कहानी एक साहसी महिला की कहानी है, जिसने मौत और गुलामी के साये से बाहर निकलकर अपनी आवाज़ दुनिया तक पहुंचाई।
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