भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अमेरिकी हस्तक्षेप: पहलगाम आतंकी हमले से परमाणु संघर्ष के कगार तक ?

 भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अमेरिकी हस्तक्षेप: पहलगाम आतंकी हमले से परमाणु संघर्ष के कगार तक

भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अमेरिकी हस्तक्षेप: पहलगाम आतंकी हमले से परमाणु संघर्ष के कगार तक

नई दिल्ली/इस्लामाबाद/वॉशिंगटन, मई 2025 — जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए घातक आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव को एक बार फिर उग्र रूप दे दिया। 26 निर्दोष लोगों की हत्या, जिनमें अधिकांश हिंदू पर्यटक थे, ने भारत को जवाबी कार्रवाई के लिए विवश कर दिया। इस बार टकराव इतनी तेजी से बढ़ा कि दुनिया को एक संभावित परमाणु युद्ध की आशंका सताने लगी। और इसी मोड़ पर अमेरिका, जो शुरुआत में इससे दूरी बनाए हुए था, अंततः कूटनीतिक हस्तक्षेप के लिए मैदान में उतरा।


हमले के बाद भारत की तीव्र प्रतिक्रिया

हमले के कुछ ही घंटों के भीतर भारत ने कड़ी चेतावनी दी और अगले दिन पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए। सैन्य सूत्रों के अनुसार, भारत ने “लक्षित आतंकवाद विरोधी अभियान” चलाकर दर्जनों आतंकवादियों के शिविरों को निशाना बनाया।

इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी सैन्य कार्रवाई की और दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच कई बार डॉगफाइट्स हुईं। पाकिस्तान की ओर से भारतीय सीमा में 300 से 400 ड्रोन भेजे गए, जिससे भारत की वायु रक्षा प्रणाली को परखा गया। इससे टकराव और गहराता गया।


परमाणु युद्ध की आशंका और अमेरिका की बढ़ती चिंता

जैसे ही यह सैन्य मुठभेड़ नियंत्रण से बाहर जाती दिखी, अमेरिका की चिंताएं बढ़ गईं। द न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस (JD Vance) और विदेश मंत्री मार्को रूबियो (Marco Rubio) ने शुरुआत में इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी। वेंस ने Fox News पर कहा था, "यह मूल रूप से हमारा मामला नहीं है।"

लेकिन जब अमेरिका के पास यह जानकारी पहुंची कि भारत ने रावलपिंडी के नूर खान एयरबेस पर हमला किया है — जो पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के प्रबंधन विभाग के पास स्थित है — तो चिंता ने गंभीर रूप ले लिया। सूत्रों के अनुसार, अमेरिका को डर था कि यदि पाकिस्तान को लगे कि उसकी परमाणु कमांड प्रणाली खतरे में है, तो वह ‘निवारक कार्रवाई’ के रूप में परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकता है।


रावलपिंडी हमला: परमाणु भय की लहर

नूर खान एयरबेस पर भारत की मिसाइल स्ट्राइक को विशेषज्ञों ने एक “रणनीतिक संकेत” बताया। अमेरिका के एक पूर्व अधिकारी ने NYT को बताया कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता है कि उसकी nuclear command authority को नष्ट कर दिया जाए। ऐसे में भारत का यह कदम चेतावनी के रूप में देखा गया।

पाकिस्तानी मीडिया में यह खबर आई कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक बुलाई। हालांकि रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इससे इनकार किया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि "परमाणु विकल्प को पूरी तरह से नकारा नहीं गया है।"


अमेरिका की कूटनीतिक सक्रियता: मोदी और मुनीर से संपर्क

हालात की गंभीरता को देखते हुए, व्हाइट हाउस ने तुरंत सक्रिय रुख अपनाया। वेंस, जो हाल ही में अपनी पत्नी के साथ भारत यात्रा से लौटे थे, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे बात की। उन्होंने मोदी को बताया कि अमेरिका के आकलन में "स्थिति किसी भी समय पूर्ण युद्ध में बदल सकती है।"

दूसरी ओर, विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और दोनों देशों के विदेश मंत्रियों से सीधा संपर्क साधा। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, शुक्रवार शाम से शनिवार सुबह तक लगातार फोन कॉल्स का दौर चलता रहा, जिसने संघर्षविराम की जमीन तैयार की।


संघर्षविराम और प्रतिक्रियाएं

शनिवार देर रात, दोनों देशों ने एक अघोषित संघर्षविराम पर सहमति जताई। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि रूबियो की मध्यस्थता ने अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति का सार्वजनिक रूप से आभार भी व्यक्त किया।

हालांकि भारत सरकार ने अमेरिकी हस्तक्षेप पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की, लेकिन कूटनीतिक सूत्रों का मानना है कि भारत ने संघर्षविराम को ‘रणनीतिक स्थिरता’ के रूप में स्वीकार किया।


विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया और आगे की राह

संयुक्त राष्ट्र, रूस, चीन, यूरोपीय संघ और खाड़ी देशों ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और कश्मीर विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकालने की अपील की है। विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि दक्षिण एशिया में तनाव किसी भी समय वैश्विक संकट में बदल सकता है।

भारत और पाकिस्तान के बीच यह ताज़ा टकराव इस बात का प्रमाण है कि जब तक कश्मीर विवाद का स्थायी हल नहीं निकलेगा, तब तक शांति एक दूर की कौड़ी बनी रहेगी।


जहां एक ओर अमेरिका ने देर से ही सही, हस्तक्षेप कर एक संभावित परमाणु युद्ध को टाल दिया, वहीं यह भी स्पष्ट है कि भारत-पाकिस्तान जैसे परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच किसी भी स्तर का आतंकवादी हमला एक बड़े खतरे को जन्म दे सकता है। जब तक ठोस और दीर्घकालिक समाधान की दिशा में पहल नहीं होती, यह क्षेत्र बार-बार ऐसी खतरनाक दहलीज पर पहुंचता रहेगा।

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