अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की साख: मनमोहन सिंह बनाम नरेंद्र मोदी

 


अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की साख: मनमोहन सिंह बनाम नरेंद्र मोदी

लेखक: Kuldeep Khandelwal | प्लेटफॉर्म: Vishwaprem News

भारत की अंतरराष्ट्रीय साख एक ऐसा मुद्दा है जो देश की वैश्विक भूमिका, आर्थिक ताकत और कूटनीतिक प्रभाव को दर्शाता है। पिछले दो दशकों में भारत के दो बड़े प्रधानमंत्रियों—डॉ. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदीने वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान को अलग-अलग अंदाज़ में स्थापित किया है। लेकिन सवाल उठता है: किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में भारत की साख ज़्यादा बढ़ी?


मनमोहन सिंह: शांत कूटनीति और आर्थिक सम्मान

डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक देश का नेतृत्व किया। एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के रूप में उनकी पहचान थी। उन्होंने 1991 के आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बना ली थी।

मुख्य उपलब्धियाँ:

  • परमाणु समझौता (Indo-US Nuclear Deal): 2008 में अमेरिका के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौते ने भारत को एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दिलाई।

  • G20 में स्थायी सदस्यता: उनके कार्यकाल में भारत को वैश्विक आर्थिक मंचों पर स्थायीत्व मिला।

  • शांत और स्थिर छवि: पश्चिमी देशों और पड़ोसी राष्ट्रों ने भारत को एक स्थिर लोकतंत्र और भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखा।

सीमाएँ:

  • मनमोहन सिंह की “low-profile” शैली और संचार की कमी के कारण उनकी वैश्विक छवि सीमित रही।

  • घोटालों और गठबंधन सरकार की मजबूरी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कुछ हद तक भारत की ताकत को कमजोर किया।


नरेंद्र मोदी: आक्रामक ब्रांडिंग और वैश्विक नेटवर्किंग

नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक नया भारत’ दिखाने की कोशिश की। उनके कार्यकाल में विदेश नीति व्यक्तिगत ब्रांडिंग और वैश्विक आउटरीच पर केंद्रित रही।

मुख्य उपलब्धियाँ:

  • भारत का चेहरा’ बनने का प्रयास: मोदी ने अमेरिका, रूस, जापान, खाड़ी देशों, और अफ्रीकी देशों के दौरे किए। उन्होंने “Howdy Modi”, “Namaste Trump” जैसे मेगा इवेंट्स किए।

  • UNO और G20 में भारत की भूमिका: जलवायु परिवर्तन, डिजिटल इंडिया और वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे मूल्यों को वैश्विक मंचों पर प्रस्तुत किया।

  • G20 अध्यक्षता (2023): भारत ने पहली बार G20 की अध्यक्षता की और ‘नई दिल्ली डिक्लेरेशन’ में रूस-यूक्रेन युद्ध पर संतुलन बनाया।

सीमाएँ:

  • आलोचक मानते हैं कि मोदी की विदेश नीति में प्रदर्शन ज़्यादा और रणनीतिक गहराई कम रही।

  • चीन के साथ सीमा विवाद, पाकिस्तान से रिश्तों का ठहराव और दक्षिण एशिया में भारत की घटती पकड़ कुछ सवाल उठाते हैं।


जनमत और विश्लेषकों की राय

  • विदेशी मीडिया: टाइम, न्यूयॉर्क टाइम्स, और फॉरेन पॉलिसी जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में मोदी की कार्यशैली की चर्चा रही है, लेकिन कई बार आलोचना भी।

  • डिप्लोमैटिक सर्किल्स: मनमोहन सिंह को एक गंभीर नीति निर्माता और आर्थिक सुधारक के रूप में याद किया जाता है, जबकि मोदी को एक करिश्माई नेता और सक्रिय प्रचारक के रूप में।


मनमोहन सिंह ने शांत, विद्वान और गहरे रणनीतिक सोच के माध्यम से भारत को एक जिम्मेदार आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। नरेंद्र मोदी ने आक्रामक प्रचार और व्यक्तिगत ब्रांडिंग से भारत को वैश्विक मंचों पर अधिक दृश्यमान और सक्रिय बनाया।

भारत की अंतरराष्ट्रीय साख किसके कार्यकाल में ज़्यादा बढ़ी—यह इस पर निर्भर करता है कि आप "साख" को गंभीरता और स्थिरता के नजरिए से देखते हैं या लोकप्रियता और दृश्यता के नजरिए से।

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