मुस्कुराने की वजह तुम हो"... और एक एक्ट्रेस जो शोहरत की भीड़ में कहीं खो गई: पत्रलेखा पॉल की कहानी

 


मुस्कुराने की वजह तुम हो"... और एक एक्ट्रेस जो शोहरत की भीड़ में कहीं खो गई: पत्रलेखा पॉल की कहानी

साल 2014 में एक फिल्म आई थी—सिटीलाइट्स। राजकुमार राव की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म को भले ही बॉक्स ऑफिस पर कोई बड़ी कामयाबी न मिली हो, लेकिन इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों में एक गहरा असर छोड़ा। और उस असर का सबसे खूबसूरत हिस्सा था एक गाना—"मुस्कुराने की वजह तुम हो..."
अरिजीत सिंह की आवाज़, रश्मि सिंह की कलम और जीत गांगुली का संगीत, तीनों का ऐसा संगम था कि यह गाना फिल्म से कहीं ज़्यादा लोगों के दिलों में बस गया।

इस गीत ने रश्मि सिंह को फिल्मफेयर बेस्ट लिरिसिस्ट अवॉर्ड दिलाया, और अरिजीत की पहले से ही बुलंद उड़ान को एक और ऊँचाई दी। लेकिन जिस अभिनेत्री ने इस गाने के पीछे के दर्द को पर्दे पर जिया, वो थी पत्रलेखा पॉल

पत्रलेखा: एक सादगी से भरी लेकिन दमदार शुरुआत

सिटीलाइट्स में पत्रलेखा ने एक साधारण लेकिन भावनात्मक भूमिका निभाई थी—एक ऐसी महिला जो अपने पति के साथ सपनों की तलाश में गांव से शहर आती है। उन्होंने किरदार को इतनी संजीदगी से निभाया कि दर्शकों को उनका चेहरा याद रह गया।

लेकिन अफसोस, पत्रलेखा का करियर वहीं ठहर सा गया। ना उन्हें बड़ी फिल्में मिलीं, ना ही कोई लगातार स्क्रीन्स पर दिखने वाला स्पेस।

"क्यों नहीं किया ज़्यादा काम?"

कई सालों तक इंडस्ट्री से लगभग गायब रहने के बाद, एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने इतने कम प्रोजेक्ट्स में ही क्यों काम किया, तो पत्रलेखा का जवाब था सीधा और ईमानदार:
"मुझे जो ऑफ़र हो रहे थे, वो बहुत घिसे-पिटे किरदार थे। जो औरतें सिर्फ सीनरी बनकर पर्दे पर होती हैं, जिनके कोई मायने नहीं होते कहानी में। ऐसे रोल्स करने से बेहतर है कुछ न करना।"

यह जवाब दर्शाता है कि पत्रलेखा ने करियर की दौड़ में भले ही धीमा चलना चुना, लेकिन आत्मसम्मान और कंटेंट की प्राथमिकता को कभी नहीं छोड़ा।

टेलीविज़न और सीमित उपस्थिति

इस बीच, पत्रलेखा ने कुछ टीवी शोज़ और डिजिटल प्रोजेक्ट्स में काम किया, लेकिन उनकी गिनती भी बेहद सीमित रही। जब बॉलीवुड एक्ट्रेसेज़ लगातार स्क्रीन पर बने रहने के लिए हर रोल स्वीकार कर रही थीं, तब पत्रलेखा ने खुद को उस दौड़ से बाहर रखा।

अब एक नई शुरुआत: सावित्रीबाई फुले का किरदार

अब, पत्रलेखा अपकमिंग फिल्म 'फुले' में सावित्रीबाई फुले का किरदार निभाने जा रही हैं—भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारक। यह फिल्म सिर्फ एक बायोपिक नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जो समाज के उस संघर्ष को दिखाएगा, जिसे लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया गया।

यह किरदार पत्रलेखा के करियर के लिए निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। एक ऐसी भूमिका, जो अभिनय क्षमता के साथ-साथ सामाजिक संवेदनशीलता की भी मांग करती है।

बॉलीवुड और महिला कलाकारों की चुनौतियाँ

पत्रलेखा की कहानी सिर्फ उनकी नहीं है। यह उन सभी अभिनेत्रियों की कहानी है जिन्हें सिर्फ "हिरोइन" समझा गया, लेकिन "किरदार" निभाने का मौका नहीं दिया गया। जिनकी सुंदरता को देखा गया, लेकिन उनकी आवाज़ को नहीं सुना गया।

आज जब कंटेंट-सेंट्रिक सिनेमा की बात हो रही है, तो पत्रलेखा जैसी अदाकाराओं के लिए रास्ते खुलने चाहिए। ऐसी एक्ट्रेसेज़, जो सिर्फ पर्दे पर चमकने नहीं, बल्कि कुछ कहने आई हैं।

निष्कर्ष: मुस्कुराने की वजह अब खुद बनना होगा

"मुस्कुराने की वजह तुम हो" जैसा गाना आज भी हर दिल में गूंजता है। लेकिन पत्रलेखा को अब अपनी मुस्कुराहट की वजह खुद बननी है।
बॉलीवुड को भी समझना होगा कि सादगी, गहराई और आत्मा वाले किरदार भी उतने ही ज़रूरी हैं, जितना कि ग्लैमर और ग्लिट्ज़।

पत्रलेखा पॉल की वापसी सिर्फ उनकी व्यक्तिगत यात्रा नहीं है—यह उन तमाम कलाकारों की उम्मीद है जो सही मौके का इंतज़ार कर रहे हैं, और अपने आत्मसम्मान को बनाए रखते हुए, वक्त के साथ दोबारा उठ खड़े होने की ताक़त रखते हैं।


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