जब हर बड़े आतंकी हमले के वक्त सत्ता में थी भाजपा: एक गंभीर सवाल ?
जब हर बड़े आतंकी हमले के वक्त सत्ता में थी भाजपा: एक गंभीर सवाल
26 अप्रैल 2025, नई दिल्ली –
देश के इतिहास में कई ऐसे आतंकी हमले हुए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, जनता के मनोबल और राजनीतिक विमर्श को गहरे प्रभावित किया। दिलचस्प और चिंताजनक तथ्य यह है कि इनमें से अधिकतर बड़े आतंकी हमलों के समय देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में थी। भारतीय राजनीति के इतिहास में कुछ घटनाएं ऐसी हैं जो देश की आत्मा को झकझोर कर रख देती हैं। आतंकवादी हमले, सामूहिक त्रासदियां और निर्दोषों की मौतें... हर बार सवाल उठते हैं: किसकी लापरवाही थी? किसका फायदा हुआ? और क्या ये महज संयोग हैं या किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा?
एक पैटर्न जो बार-बार सामने आता है, वह यह है कि जब-जब देश ने बड़े आतंकी हमले झेले हैं, तब-तब भाजपा केंद्र में सत्ता में रही है। और ज्यादातर हमले चुनावी मौसम में या उसके ठीक पहले हुए हैं, जब जनता का ध्यान आर्थिक, सामाजिक मुद्दों से हटाकर 'राष्ट्रवाद' और 'सुरक्षा' जैसे भावनात्मक मुद्दों की ओर मोड़ा जा सकता है। सवाल यह उठता है कि क्या इन घटनाओं के पीछे सिर्फ दुश्मनों की साजिश थी, या कहीं न कहीं राजनीतिक चूक और सियासी समीकरण भी जिम्मेदार हैं?
आइए इन घटनाओं पर एक नजर डालते हैं:
🏛️ संसद हमला (13 दिसंबर 2001)
सत्ता में: भाजपा (प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी)
स्थिति: संसद भवन पर हमला भारतीय लोकतंत्र के प्रतीक पर सीधा हमला था। पांच आतंकी संसद के भीतर घुस आए और बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधियों को निशाना बनाने का प्रयास किया।
तथ्य: इस हमले के कुछ ही महीने बाद पांच राज्यों (पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर) में विधानसभा चुनाव थे।
🛕 अमरनाथ यात्रियों पर हमला (2 अगस्त 2017)
सत्ता में: भाजपा (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
स्थिति: अमरनाथ यात्रियों पर हमला एक धार्मिक यात्रा को निशाना बनाने की घिनौनी कोशिश थी।
तथ्य: उस समय गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक थे।
🚂 गोधरा कांड (27 फरवरी 2002)
सत्ता में: भाजपा (गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री)
स्थिति: साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगाई गई जिसमें 59 कारसेवकों की मौत हुई, और उसके बाद गुजरात में भयावह दंगे भड़के।
तथ्य: गोधरा कांड के बाद गुजरात विधानसभा भंग कर दी गई और चुनाव दिसंबर 2002 में कराए गए। गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगे चुनावी मुद्दा बन गए, जिसने पूरे माहौल को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर मोड़ दिया। भाजपा ने भारी बहुमत से वापसी की।
🛡️ पठानकोट हमला (2 जनवरी 2016)
सत्ता में: भाजपा (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
स्थिति: आतंकियों ने एयरबेस पर हमला किया, जिसे भारत की सामरिक सुरक्षा का बेहद महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
तथ्य: कुछ ही महीनों बाद 2017 में पंजाब और उत्तर प्रदेश में बड़े चुनाव होने वाले थे।
🚩 उड़ी हमला (18 सितंबर 2016)
सत्ता में: भाजपा (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
स्थिति: जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में भारतीय सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 19 जवान शहीद हुए।
तथ्य: फिर से उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के चुनाव सामने थे। उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक का ऐलान कर सियासी माहौल गरमाया।
🚌 पुलवामा हमला (14 फरवरी 2019)
सत्ता में: भाजपा (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
स्थिति: जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में एक आत्मघाती हमले में 40 से अधिक सीआरपीएफ जवान शहीद हुए।
तथ्य: ठीक कुछ हफ्ते बाद 2019 के आम चुनाव थे। इस घटना ने पूरे देश का माहौल बदल दिया और भावनाओं की लहर चुनाव में निर्णायक साबित हुई। पुलवामा हमले के बाद सरकार ने 'बालाकोट एयर स्ट्राइक' करवाई और पूरे देश में "राष्ट्रवाद की लहर" छा गई, जिसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ा और भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। जिससे चुनावी रणनीति को नई धार मिली।
🌲 पहलगाम हमला (22 अप्रैल 2025)
सत्ता में: भाजपा (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
स्थिति: पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाकर 26 नागरिकों की जान ले ली गई।
तथ्य: कुछ ही महीने बाद जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। देश में 2026 के लोकसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू हो चुकी है।
❗ क्या यह सिर्फ संयोग है?
इन सभी हमलों के बाद देखा गया कि राष्ट्रवाद की भावना को जोर-शोर से चुनावी विमर्श का केंद्र बनाया गया। हर बार "राष्ट्रीय सुरक्षा" और "आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई" के वादे प्रमुख मुद्दा बने। विपक्ष अक्सर आरोप लगाता रहा कि भावनाओं को भड़काकर राजनीतिक लाभ उठाया गया।
लेकिन सवाल यह भी उठता है कि अगर बार-बार देश की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक हो रही है, तो जिम्मेदारी किसकी बनती है?
क्या हम इन हमलों को महज "दुर्भाग्यपूर्ण संयोग" मान लें? या फिर हमें इस पर गंभीरता से चर्चा करनी चाहिए कि देश की सुरक्षा नीति, खुफिया एजेंसियों की कार्यप्रणाली और राजनीतिक प्राथमिकताओं में कहां सुधार की जरूरत है?
क्यों बार-बार बड़े आतंकी हमले भाजपा शासन के दौरान होते हैं?
क्यों ये हमले प्रायः चुनावों से ठीक पहले होते हैं?
क्या सरकारें आतंकी खतरों को भांपने में विफल हो रही हैं, या इन हमलों के बाद उनके राजनीतिक फायदे को अनदेखा कर दिया जाता है?
क्या सुरक्षा चूक की जवाबदेही तय की गई है?
आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में पूरा देश एकजुट है। लेकिन जब भी देश पर हमला होता है और हर बार सत्ता पक्ष राजनीतिक लाभ उठाता दिखाई देता है, तो नागरिकों को सवाल पूछने का अधिकार है। राष्ट्रीय सुरक्षा राजनीति का मोहरा नहीं बननी चाहिए, बल्कि ईमानदारी से, नीयत से और पूरी मजबूती से संरक्षित होनी चाहिए।
क्योंकि सवाल उठाना राष्ट्रभक्ति का अपमान नहीं, बल्कि उसकी सबसे बड़ी सेवा है।
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