किसान आंदोलन की साख पर सवाल: चंदे और लंगर के सामान में गबन के आरोपों से उठा बवाल
किसान आंदोलन की साख पर सवाल: चंदे और लंगर के सामान में गबन के आरोपों से उठा बवाल
देश में किसान आंदोलन की पहचान अब एक नई बहस के केंद्र में है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चले लंबे आंदोलन के बाद अब न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में भी चंदे और संसाधनों के गबन को लेकर किसान संगठनों में मतभेद गहराने लगे हैं। इस बार आरोप आंदोलन से जुड़े खुद किसान नेताओं पर लगे हैं, जिससे आंदोलन की पारदर्शिता और नैतिकता पर गंभीर सवाल उठे हैं।
शंभू और खनौरी बॉर्डर पर चले आंदोलन में अब सामने आ रहा है कि आंदोलन के नाम पर जुटाए गए चंदे और खाद्यान्न का दुरुपयोग किया गया। लंगर के लिए आए गेहूं, दूध और अन्य खाद्य सामग्री को बेचने और उसकी एवज में अन्य सामान खरीदने के आरोप सामने आ रहे हैं। खास बात यह है कि ये आरोप किसी बाहरी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि आंदोलन से जुड़े प्रमुख किसान संगठनों के नेता एक-दूसरे पर लगा रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल, जो पिछले 125 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं, उन पर खुद उनके साथी नेताओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं। बीकेयू नेता इंद्रजीत सिंह कोटबुड्डा ने स्पष्ट कहा है कि आंदोलन के दौरान एकत्र किए गए चंदे और दान का कोई हिसाब नहीं दिया गया। उनका दावा है कि अगर यही पैसा सही तरीके से किसानों के कर्ज उतारने में लगाया जाता, तो कई किसानों का बोझ हल्का हो सकता था।
इंद्रजीत सिंह ने आरोप लगाया कि आंदोलन के लिए आए गेहूं, दूध, दाल जैसी वस्तुओं को बेचा गया और उसका प्रयोग किस उद्देश्य से हुआ, यह स्पष्ट नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि किसानों के संघर्ष को कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए उपयोग किया, जिससे आंदोलन की पवित्रता पर धब्बा लगा है।
एसकेएम के नेता जंगवीर सिंह चौहान ने भी डल्लेवाल की भूख हड़ताल पर सवाल उठाए। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कोई व्यक्ति 125 दिन बिना भोजन के कैसे रह सकता है? यह बात विज्ञान की समझ से भी परे है।
डल्लेवाल ने दी सफाई
इन आरोपों का जवाब देते हुए जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि कुछ नेता इस बात से नाराज हैं कि उन्हें आगामी 4 मई को होने वाली मीटिंग में नहीं बुलाया गया। उन्होंने दावा किया कि संगठन वरिष्ठ नेताओं को रोटेशन के आधार पर शामिल करता है और इसमें किसी प्रकार का पक्षपात नहीं है।
डल्लेवाल ने कहा कि जो सामान जरूरत से अधिक होता है, उसे बेचकर जरूरी वस्तुएं खरीदी जाती हैं ताकि लंगर निरंतर चलता रहे। उन्होंने चंदे के उपयोग पर उठे सवालों को "छोटी-छोटी बातें" बताते हुए कहा कि जल्द ही संगठन की समीक्षा बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें इन मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
भूख हड़ताल को लेकर डल्लेवाल ने कहा कि डॉक्टरों की नियमित जांच हो रही है और सारी रिपोर्टें उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि आंदोलन के उद्देश्य को कमजोर करने के लिए कुछ लोग व्यक्तिगत नाराजगी को सार्वजनिक मंचों पर ला रहे हैं।
आंदोलन की साख पर संकट
किसान आंदोलन लंबे समय से जनता और समाज का भावनात्मक समर्थन प्राप्त करता रहा है। परंतु अब आंदोलन के नाम पर हुए चंदे के दुरुपयोग और पारदर्शिता की कमी की बात सामने आने से इसकी विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ सकता है।
सवाल यह है कि क्या ये मतभेद किसान हितों की लड़ाई को कमजोर कर देंगे? क्या यह आंतरिक संघर्ष आंदोलन की नींव को हिला देगा?
अब यह किसान संगठनों की जिम्मेदारी है कि वे आरोपों का जवाब तथ्यों के साथ दें और आम किसानों के विश्वास को बहाल करें।
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