योगी सरकार को चेतावनी: अगर मुझे कुछ होता है, तो ज़िम्मेदार वही होगी ?

 लखनऊ का सबसे बड़ा बेनामी ज़मीन घोटाला: 15,000 करोड़ का भ्रष्टाचार ?


योगी सरकार को चेतावनी: अगर मुझे कुछ होता है, तो ज़िम्मेदार वही होगी ?

लखनऊ के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा बेनामी ज़मीन घोटाला सामने आया है, जिसकी अनुमानित कीमत 15,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए हमें इसकी क्रोनोलॉजी पर गौर करना होगा, जिससे स्पष्ट हो सके कि कैसे इस घोटाले को अंजाम दिया गया।

कैसे हुआ घोटाला?

इस पूरे घोटाले में BBD ग्रुप की चेयरमैन श्रीमती अलका दास गुप्ता और उनके पुत्र विराज सागर दास का नाम सामने आया है। उन्होंने अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए प्रमोद कुमार नामक व्यक्ति (जो लखनऊ में चपरासी के रूप में कार्यरत था) के नाम पर करोड़ों की बेनामी ज़मीन खरीदी। यह ज़मीन गोमती नगर, हाई कोर्ट के पीछे स्थित है, जिसकी वर्तमान कीमत लगभग 300 करोड़ रुपये आंकी जा रही है।

बेनामी संपत्ति कानून का उल्लंघन

1988 और 2016 के बेनामी संपत्ति कानून के अनुसार, इस प्रकार की संपत्ति न तो बेची जा सकती है और न ही ट्रांसफर की जा सकती है। यह ज़मीन सरकार की मानी जाती है और बेनामी संपत्ति रखने वाले व्यक्ति को 7 साल तक की सजा हो सकती है।

शिकायतों की अनदेखी और अधिकारियों की मिलीभगत

मैंने इस घोटाले की शिकायत वर्ष 2019 में, फिर अगस्त 12, 14, 20, 2020 को लखनऊ और दिल्ली के इनकम टैक्स विभाग को की। मेरी शिकायत के जवाब में इनकम टैक्स विभाग ने इसे लखनऊ के अधिकारियों को फॉरवर्ड कर दिया, लेकिन कार्रवाई के बजाय यह मामला दबा दिया गया।

प्रमोद कुमार की संदिग्ध बैंकिंग गतिविधियां:

  • बिना प्रमोद कुमार के बैंक गए ही PNB निशातगंज ने उनका अकाउंट खोल दिया।

  • उनके खाते से करोड़ों रुपये का लेनदेन हुआ।

  • चेक बुक पर साइन लेकर विराज सागर दास ने खुद इसे अपने पास रख लिया।

अधिकारियों और BBD ग्रुप की मिलीभगत

शिकायत के तुरंत बाद लखनऊ इनकम टैक्स अधिकारियों ने BBD ग्रुप को इसकी जानकारी दे दी, जिसके चलते प्रमोद कुमार पर दबाव बनाकर यह ज़मीन बेच दी गई। इसे BBD ग्रुप की कंपनियों और उनके अधिकारियों ने ही खरीदा।

इस ज़मीन को सफेद करने के लिए 127,85,36,78.00 रुपये के लेन-देन किए गए।

चपरासी के नाम पर करोड़ों का इनकम टैक्स नोटिस

इस घोटाले को वैध दिखाने के लिए इनकम टैक्स विभाग ने प्रमोद कुमार को 4-5 नोटिस भेजे और कहा कि 127,85,36,78.00 रुपये की राशि उनकी आय मानी जाएगी और इस पर टैक्स भरा जाए।

लेकिन असली खेल यह था:

  • यह टैक्स खुद विराज सागर दास ने प्रमोद कुमार के नाम से भरा।

  • ज़मीन की काली कमाई को सफेद कर दिया गया।

  • रिश्वत देकर बाकी पैसा बचा लिया गया।

बड़े सवाल जो उठते हैं:

  1. एक चपरासी करोड़ों की ज़मीन कैसे खरीद सकता है?

  2. इनकम टैक्स विभाग ने शिकायत के बावजूद BBD ग्रुप पर कार्रवाई क्यों नहीं की?

  3. 127,85,36,78.00 रुपये की रकम कहां गई और किसके खातों में ट्रांसफर हुई?

  4. अगर फर्जी इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल किए गए, तो सीए (Chartered Accountant) का लाइसेंस क्यों रद्द नहीं हुआ?

  5. इस घोटाले में शामिल इनकम टैक्स अधिकारियों को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?

  6. क्या योगी सरकार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रही है?

यह मामला केवल एक ज़मीन घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक भ्रष्टाचार और राजनीतिक मिलीभगत का सबसे बड़ा उदाहरण है। अगर इस पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह साफ हो जाएगा कि न्याय व्यवस्था अमीरों के लिए कुछ और, गरीबों के लिए कुछ और है।

अब यह देश और प्रदेश की जनता को तय करना है कि क्या वे ऐसे भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करेंगे, या फिर इसकी जड़ तक जाकर न्याय की मांग करेंगे। 


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