योगी सरकार के 8 साल: नफ़रत, अत्याचार और प्रशासनिक नाकामी की कहानी ?

योगी सरकार के 8 साल: नफ़रत, अत्याचार और प्रशासनिक नाकामी की कहानी ?

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार को 8 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान राज्य की राजनीति में बड़े बदलाव देखे गए। एक ओर, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हुआ, जिससे समाज में नफ़रत का माहौल बढ़ा। दूसरी ओर, दलितों और कमजोर वर्गों पर अत्याचार की घटनाएँ लगातार सामने आईं। इसके अलावा, प्रशासनिक स्तर पर भी योगी सरकार कई बड़ी विफलताओं के लिए आलोचना का शिकार रही, जिनमें गोरखपुर ऑक्सीजन कांड, कोविड-19 महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा और महाकुंभ में हुई मौतें शामिल हैं।

ध्रुवीकरण और नफ़रत की राजनीति ?

योगी सरकार के 8 वर्षों में धार्मिक ध्रुवीकरण एक बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। "लव जिहाद" कानून, बुलडोज़र राजनीति और विरोधियों के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई के चलते राज्य में डर का माहौल बना रहा।

मॉब लिंचिंग की घटनाएँ लगातार बढ़ीं। मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए कई निर्दोष लोगों की हत्या की गई, लेकिन सरकार ने इन मामलों में कोई सख्त कदम नहीं उठाया।

लव जिहाद" कानून के तहत हजारों युवाओं को निशाना बनाया गया, जिससे सामाजिक तानाबाना और कमजोर हुआ।

बुलडोज़र राजनीति के तहत खासतौर पर अल्पसंख्यकों और विपक्षी दलों से जुड़े लोगों की संपत्तियों को ध्वस्त किया गया। ये कार्रवाई न्यायिक प्रक्रिया के बिना हुई, जिससे सरकार की मंशा पर सवाल उठे।

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और NRC विरोधी प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग किया गया। लखनऊ, कानपुर और मेरठ में प्रदर्शनकारियों के घरों पर कार्रवाई की गई और कई लोगों की गिरफ्तारियां हुईं।

दलितों पर अत्याचार और सामाजिक न्याय की हत्या ?

योगी सरकार के दौरान दलितों के खिलाफ अपराधों में कोई कमी नहीं आई, बल्कि कई मामलों में सरकार की निष्क्रियता ने अन्याय को बढ़ावा दिया।

हाथरस कांड (2020): एक दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में पुलिस और प्रशासन ने न्याय की जगह अपराधियों को बचाने की कोशिश की। लड़की के परिवार की बिना सहमति के रातों-रात अंतिम संस्कार कर दिया गया, जिससे सरकार की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई।

दलित उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि: यूपी में दलितों पर अत्याचार के मामलों में वृद्धि देखी गई। कई जगहों पर दलितों को मंदिरों में प्रवेश से रोका गया, उनकी जमीनें छीनी गईं, और विरोध करने पर उन्हें निशाना बनाया गया।

भाजपा सरकार में सामाजिक न्याय का कमजोर होना: सरकार की नीतियाँ ऐसी रहीं जिनसे दलितों और पिछड़ों को नुकसान पहुँचा। निजीकरण और आरक्षण विरोधी कदमों के चलते सरकारी नौकरियों में दलितों की हिस्सेदारी घटी।

प्रशासनिक नाकामी और स्वास्थ्य सेवाओं का संकट ?

योगी सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक रही प्रशासनिक अक्षमता। गोरखपुर ऑक्सीजन कांड, कोविड महामारी की अव्यवस्था और महाकुंभ में फैली अराजकता इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

गोरखपुर ऑक्सीजन कांड (2017): गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी के कारण 60 से अधिक बच्चों की मौत हो गई। सरकार ने जिम्मेदारी लेने की बजाय डॉक्टरों और अस्पताल प्रशासन पर दोष मढ़ दिया।

कोविड-19 की दूसरी लहर में अव्यवस्था (2021): यूपी में स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गईं। ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों में बेड की अनुपलब्धता और श्मशानों में लंबी कतारें इस बात का प्रमाण थीं कि सरकार महामारी से निपटने में पूरी तरह विफल रही। गंगा नदी में बहते शवों की तस्वीरों ने पूरी दुनिया में यूपी सरकार की किरकिरी कराई।

महाकुंभ में कोविड नियमों की धज्जियाँ (2021): हरिद्वार महाकुंभ में लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई, जिससे कोविड संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया। बाद में रिपोर्ट्स आईं कि इस आयोजन के कारण हजारों लोग संक्रमित हुए, लेकिन सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

क्या जनता 2027 में बदलाव चाहती है?

योगी सरकार के 8 सालों में जहां एक तरफ हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा मिला, वहीं दूसरी तरफ आम लोगों की समस्याओं को नज़रअंदाज़ किया गया। रोजगार के अवसर कम हुए, कानून-व्यवस्था कमजोर हुई, और समाज में नफरत का जहर घुलता गया।

अब सवाल यह है कि क्या यूपी की जनता 2027 में फिर इसी सरकार को चुनेगी या बदलाव की कोई नई लहर आएगी? क्या विपक्ष इस सरकार की नाकामियों को जनता तक सही तरीके से पहुँचा पाएगा?


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