सरपंच और पंच की मोहब्बत: उजड़ा गाँव, बेबस बेटा ?
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इश्कबाज सरपंच ! |
गाँव धनपुर कभी अपनी शांति, हरियाली और विकास कार्यों के लिए जाना जाता था। लेकिन बीते कुछ महीनों में हालात ऐसे बदले कि पूरा गाँव एक मज़ाक बनकर रह गया। वजह थी गाँव के सरपंच रामेश्वर यादव और पंचायत की सदस्या सुनीता देवी की मोहब्बत। रामेश्वर यादव यानी सरपंच साहब, उम्र पचपन के पार कर चुकी थी, परिवार में इज्जतदार इंसान माने जाते थे। उनका बेटा अभिषेक शहर में पढ़ाई कर रहा था और घर की जिम्मेदारी सँभालने की तैयारी कर रहा था। दूसरी ओर सुनीता देवी की उम्र लगभग चालीस के करीब थी, वह एक तेज़-तर्रार और प्रभावशाली महिला थी। उनके पति महेश गाँव के ही बड़े किसान थे और सामाजिक दायरा भी बड़ा था। गाँव में धीरे-धीरे फुसफुसाहट शुरू हुई कि सरपंच और पंचायत की महिला सदस्य के बीच कुछ चल रहा है। शुरुआत में लोगों ने इसे अफवाह माना, लेकिन जल्द ही दोनों को हर जगह साथ देखा जाने लगा। पंचायत की बैठक हो या किसी सरकारी योजना की समीक्षा, सरपंच की नज़रें हमेशा सुनीता देवी पर ही टिकी रहतीं। गाँव के बुज़ुर्गों और सरपंच की पत्नी को जब इस बात की भनक लगी तो घर में रोज़ लड़ाइयाँ होने लगीं। उनका बेटा दीपक जब छुट्टियों में घर आया तो उसने देखा कि पिता का गाँव के विकास से कोई लेना-देना ही नहीं रहा। सारा ध्यान तो बस सुनीता देवी पर ही था। सरपंच साहब की मोहब्बत का असर गाँव पर बुरा पड़ने लगा। सरकारी योजनाएँ अटक गईं। जो पैसे गाँव की सड़कों, बिजली और पानी की सुविधाओं पर लगने थे, वे सरपंच और पंचायत की मोहब्बत के चक्कर में फिजूल खर्च हो रहे थे। सुनीता देवी के वार्ड को सबसे ज़्यादा फायदा मिलने लगा, बाकी गाँववालों को महसूस हुआ कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। गाँव के लोग बात करने से डरने लगे, क्योंकि कोई भी सरपंच से सवाल करता तो वह झुंझला जाता। गाँव के युवाओं को लगने लगा कि उनके भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है, लेकिन कोई कुछ कहने को तैयार नहीं था। सरपंच साहब के बेटे दीपक की बदनामी सबसे ज्यादा हो रही थी। जब भी वह किसी से मिलता, लोग मजाक उड़ाते—अब तो पंचायत सदस्य तुम्हारी छोटी मम्मी बन गई हैं!" गाँव में हंसी-ठिठोली होने लगी। कोई खुलकर न सही, पर पीठ पीछे सरपंच का मज़ाक बनाता। कुछ नेता भी इस मुद्दे को हवा देने लगे। वे कहते, "बुढ़ापे में इश्क़ हुआ है बेचारे को, गाँव जाए भाड़ में!" इधर सुनीता देवी के पति महेश भी अजीब स्थिति में थे। उन्हें सब कुछ पता था, लेकिन वे कभी खुलकर कुछ नहीं कहते। जब गाँववाले उनसे पूछते,आपकी पत्नी और सरपंच जी के बारे में जो बातें हो रही हैं, क्या वह सच है?"महेश बस मुस्कुराकर कहते,"लोग बेवजह मेरी पत्नी को बदनाम कर रहे हैं, उनकी और सरपंच जी की नीयत साफ़ है!"लेकिन गाँव के लोग समझ चुके थे कि महेश मजबूर हैं। वे या तो डरते थे या फिर उन्हें कोई लालच दिया गया था।
अब पूरे गाँव में यह चर्चा होने लगी कि सरपंच की प्रेम कहानी गाँव की राजनीति पर भारी पड़ रही है। लेकिन कोई खुलकर विरोध नहीं कर रहा था, क्योंकि सरपंच साहब का रुतबा अब भी बरकरार था। रमेश के दिल और दिमाग में अब सिर्फ सुनीता थी। गाँव के विकास के लिए आए लाखों-करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। गाँव के लिए कचरे को साफ करने की एक बड़ी योजना आई थी, जिसमें रमेश ने चालाकी से खुद पर ही जुर्माना लगवाकर करोड़ों रुपये कमा लिए। विजिलेंस जांच में खुद पर ही जुर्माना लगवाकर करोड़ों रुपये कमा लिए। विकास के नाम पर सिर्फ कागजी काम हुए, जबकि गाँव की गलियाँ पहले से भी ज्यादा गंदी हो गईं। आखिरकार, गाँव की हालत जब और खराब होने लगी और विरोध बढ़ने लगा, तो पंचायत की एक आपातकालीन बैठक बुलाई गई। गाँव के बुज़ुर्ग, युवा और महिलाएँ सब इकट्ठा हुए। दीपक ने पहली बार पिता के सामने गुस्सा जाहिर किया,पिताजी! इस मोहब्बत में आप अपना घर और गाँव दोनों तबाह कर रहे हैं!"गाँव के बड़े बुज़ुर्गों ने सरपंच से सवाल किया, रामेश्वर! तुम सरपंच हो या महबूब? गाँव का विकास ज़रूरी है या तुम्हारी मोहब्बत?" इस बार सरपंच साहब कोई जवाब नहीं दे पाए। वे शर्मिंदगी से नीचे देखने लगे। सुनीता देवी भी चुप थीं।अंत में पंचायत ने फैसला सुनाया कि सरपंच को अपने पद से इस्तीफा देना होगा और पंचायत में सुनीता देवी को भी कोई बड़ा निर्णय लेने से रोका जाएगा।सरपंच साहब की मोहब्बत ने न सिर्फ उनका परिवार उजाड़ा, बल्कि गाँव की प्रगति भी रोक दी। बेटा बदनाम हुआ, घर टूटने की कगार पर पहुँचा और गाँववालों का भरोसा भी उठ गया। यही वजह है कि जब राजनीति में निजी रिश्ते हावी होने लगते हैं, तो समाज का नुकसान तय होता है। कैसी लगी कहानी?अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो अपनी राय ज़रूर बताइए! 😃
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