दुष्यंत चौटाला की राजनीति वेंटिलेटर से उतरकर दम तोड़ रही है?

दुष्यंत चौटाला की राजनीति वेंटिलेटर से उतरकर दम तोड़ रही है?

निगम का चुनाव में जजपा की खामोशी दुष्यंत चौटाला का राजनीति से हो जाएगी विदाई?

कुलदीप खंडेलवाल 

हरियाणा की राजनीति में दुष्यंत चौटाला का उदय किसी चमत्कार से कम नहीं था। जब उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की, तो उन्हें पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की विरासत का असली उत्तराधिकारी माना जाने लगा। 2019 के विधानसभा चुनावों में जननायक जनता पार्टी (JJP) ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया, और सत्ता की चाबी दुष्यंत के हाथ लग गई। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर सरकार बनाई और उपमुख्यमंत्री का पद संभाला। इस सत्ता की साझेदारी ने उन्हें न केवल हरियाणा बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक उभरते हुए चेहरे के रूप में पहचान दिलाई। लेकिन राजनीति में वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता। 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा उपचुनावों में JJP को करारी शिकस्त मिली। जहां एक समय हरियाणा की राजनीति में दुष्यंत का दबदबा दिखता था, वहीं अब पार्टी पूरी तरह हाशिए पर नजर आ रही है।

दुष्यंत चौटाला ने 2014 में पहली बार हिसार से सांसद बनकर राजनीति में कदम रखा था। वे उस समय देश के सबसे युवा सांसद बने थे। चौटाला परिवार में जब INLD में फूट पड़ी, तो उन्होंने अपने पिता अजय चौटाला के साथ मिलकर 2018 में JJP का गठन किया। 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 10 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका निभाई और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। सत्ता में आते ही दुष्यंत उपमुख्यमंत्री बने और उन्होंने किसानों, युवाओं और व्यापारियों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं।

किसान आंदोलन और JJP की साख पर असर ?

2020-21 में हुए किसान आंदोलन के दौरान JJP की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ा। चूंकि उनकी पार्टी ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत मानी जाती थी, इसलिए किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ बने रहना उनके लिए भारी पड़ा। किसान संगठनों ने दुष्यंत चौटाला पर विश्वासघात का आरोप लगाया और JJP का ग्रामीण वोटबैंक खिसकने लगा।

2024 विधानसभा चुनाव: JJP का सफाया ?

2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में JJP को करारी हार का सामना करना पड़ा। न सिर्फ उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, बल्कि खुद दुष्यंत चौटाला भी चुनाव हार गए। यह हार उनके राजनीतिक करियर के लिए एक बड़ा झटका थी। एक समय जो मीडिया उन्हें राष्ट्रीय नेता के रूप में देख रही थी, अब वही मीडिया उनकी विफलता पर चर्चा करने लगी।

क्या दुष्यंत की राजनीति खत्म हो गई है?

राजनीति में हार और जीत आम बात है, लेकिन दुष्यंत चौटाला के लिए हालिया हारें एक गंभीर झटका साबित हुई हैं। विधानसभा चुनाव में JJP का सूपड़ा साफ हो गया, और अब पार्टी के पास कोई भी विधायक नहीं बचा। यह हार केवल सीटों का नुकसान नहीं है, बल्कि JJP के जनाधार में भारी गिरावट का संकेत भी देती है।

अब निगम चुनाव: आखिरी मौका या नया संघर्ष?

अब हरियाणा में नगर निगम चुनाव होने वाले हैं, और यह चुनाव JJP के लिए किसी 'लिटमस टेस्ट' से कम नहीं होगा। अगर पार्टी यहां भी कोई प्रभाव नहीं दिखा पाती, तो यह माना जा सकता है कि दुष्यंत चौटाला की राजनीति वास्तव में वेंटिलेटर से उतरकर दम तोड़ चुकी है।

दुष्यंत चौटाला की रणनीतिक गलतियां, BJP के साथ गठबंधन ?

जब JJP ने 2019 में BJP के साथ सरकार बनाई, तो पार्टी के समर्थकों को लगा कि दुष्यंत ने अवसरवादिता दिखाई है। उनकी पार्टी ने किसानों और युवाओं के मुद्दों पर BJP की नीतियों का विरोध किया था, लेकिन सत्ता में आते ही वे BJP के साथ खड़े नजर आए। इसका खामियाजा उन्हें किसानों के आंदोलन के दौरान भुगतना पड़ा, जब JJP समर्थकों में भारी असंतोष फैल गया।

वोट बैंक की नाराजगी ?

JJP को युवा और जाट वोटरों का समर्थन मिला था, लेकिन दुष्यंत चौटाला इन वोटरों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने कोई ठोस स्टैंड नहीं लिया, जिससे उनकी छवि प्रभावित हुई।

राष्ट्रीय राजनीति में असफलता ?

दुष्यंत ने हरियाणा के बाहर भी चुनाव लड़ने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। इससे उनकी पार्टी का ध्यान हरियाणा की जमीनी राजनीति से हट गया, और संगठन कमजोर होता चला गया

गठबंधन टूटने के बाद अकेले पड़ना ?

विधानसभा चुनाव के बाद BJP और JJP का गठबंधन टूट गया। JJP के पास कोई मजबूत संगठनात्मक ढांचा नहीं बचा था, और सत्ता से बाहर होने के बाद उसकी पकड़ कमजोर हो गई।

JJP के लिए आगे का रास्ता ?

अब सवाल यह उठता है कि क्या दुष्यंत चौटाला अपनी राजनीति को फिर से जिंदा कर सकते हैं? यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपनी पार्टी की रणनीति को कैसे नया रूप देते हैं। अगर वे अपने कार्यकर्ताओं और पुराने वोट बैंक को फिर से जोड़ने में कामयाब होते हैं, तो शायद JJP दोबारा उभर सकती है। 

वर्तमान स्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि दुष्यंत चौटाला की राजनीति अब वेंटिलेटर से हटकर अंतिम सांसें गिन रही है। अगर वे नगर निगम चुनावों में भी विफल रहते हैं, तो JJP का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। लेकिन अगर वे सही रणनीति अपनाते हैं, तो राजनीति में वापसी असंभव नहीं है। अब देखना होगा कि वे किस तरह अपने भविष्य की राजनीति को दिशा देते हैं।


नगर निगम चुनाव उनके लिए आखिरी मौका साबित हो सकते हैं। अगर इन चुनावों में भी JJP कमजोर प्रदर्शन करती है, तो यह माना जा सकता है कि दुष्यंत चौटाला की राजनीति वेंटिलेटर से उतरकर दम तोड़ चुकी है।

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