किसान आंदोलन में खलनायक बनते कुछ किसान नेता: क्या बदनाम हो रही पूरी कौम?
किसान आंदोलन में खलनायक बनते कुछ किसान नेता: क्या बदनाम हो रही पूरी कौम?
देश में किसानों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए कई बड़े आंदोलन हुए हैं। लेकिन, जब आंदोलन में ही कुछ भ्रष्टाचार और स्वार्थी तत्व घुसने लगते हैं, तो पूरी कौम की छवि पर दाग लग सकता है। हाल ही में, किसान आंदोलन से जुड़े कुछ नेताओं पर भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत लाभ उठाने के आरोप लगे हैं, जिससे आंदोलन की पवित्रता पर सवाल उठ रहे हैं।
सुखविंदर सिंह गिल: एक संदिग्ध चेहरा
सबसे पहले चर्चा सुखविंदर सिंह गिल उर्फ सुख गिल की करें, जो बीकेयू-तोतेवाल के अध्यक्ष हैं। सुख गिल का संबंध पंजाब के मोगा जिले के गांव तोता सिंहवाला से है और वह उप तहसील धर्मकोट के अंतर्गत आते हैं।
सूत्रों के अनुसार, सुख गिल धर्मकोट में इमिग्रेशन ऑफिस चलाते हैं, लेकिन उनके व्यवसाय को लेकर कई शिकायतें सामने आई हैं। कई स्थानीय लोग उनके बेईमान व्यवहार से नाराज हैं, जिसके कारण वह अपने गांव में बार-बार आने से बच रहे हैं।
बीकेयू-तोतेवाल मुख्य रूप से मोगा जिले में सक्रिय है और फिरोजपुर, तरनतारन और जालंधर जिलों के आसपास के इलाकों में इसका प्रभाव देखा जाता है। यह संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से जुड़ा हुआ है और एसकेएम के तमाम बैठक में शामिल रहता है
गौरतलब है कि बीकेयू-तोतेवाल, बीकेयू पंजाब से अलग हुआ एक समूह है, जिसका नेतृत्व फुरमान संधू कर रहे हैं। इससे पहले सुख गिल बीकेयू पंजाब के महासचिव थे, लेकिन इमिग्रेशन कंसल्टेंसी में उनके संदिग्ध व्यवहार के खिलाफ शिकायतों के चलते उन्हें संगठन छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बाद, 20 अप्रैल 2024 को उन्होंने अपना नया संगठन, बीकेयू-तोतेवाल, बनाया। सुख गिल एसकेएम की लगभग सभी महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लेते हैं, जिससे उनकी भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
दिलबाग सिंह: कार्यकर्ता का पैसे में बेईमानी का आरोप
दूसरा नाम दिलबाग सिंह का है, जो पहले गुरनाम सिंह चढूनी के मंच का पदाधिकारी था और पंजाब यूनिट का अध्यक्ष भी रह चुका है। हालांकि, बाद में गुरनाम सिंह चढूनी ने उन्हें मंच से यह कहकर हटा दिया कि वह पैड का दुरुपयोग कर रहे हैं और करकारों के पैसे हड़पे बैठे हैं
यह सवाल उठता है कि जो किसान यूनियन के चंदे का पैसा अपने निजी लाभ के लिए इस्तेमाल करता हो, क्या वह वास्तव में किसानों के हक की लड़ाई लड़ सकता है? दिलबाग सिंह पर लगे आरोपों के बाद भी वह सक्रिय हैं और वर्तमान में शंभू बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जब सरकार से डेलिगेशन मिलता है, तो उसमें दिलबाग सिंह भी शामिल रहते हैं।
क्या ऐसे नेता किसानों के सच्चे हितैषी हैं?
इन दोनों मामलों से यह सवाल उठता है कि क्या किसान आंदोलन को कुछ स्वार्थी नेताओं ने अपने निजी फायदे के लिए हथियार बना लिया है? सुख गिल और दिलबाग सिंह जैसे नेताओं पर लग रहे आरोपों ने आंदोलन की साख को कमजोर करने का काम किया है। यदि यह स्थिति जारी रही, तो किसान आंदोलन की असल लड़ाई कहीं न कहीं कमजोर हो सकती है।
किसानों को यह समझने की जरूरत है कि उनके बीच छिपे हुए ये खलनायक कौन हैं और वे किस उद्देश्य से आंदोलन में सक्रिय हैं। ऐसे भ्रष्ट नेताओं को पहचान कर अलग करना ही आंदोलन को मजबूत बना सकता है।
समय बताएगा कि किसान क्या निर्णय लेते हैं
अब यह किसानों पर निर्भर करता है कि वे ऐसे नेताओं की पहचान कैसे करते हैं और आंदोलन को सही दिशा में कैसे ले जाते हैं। क्या किसान अपने आंदोलन को शुद्ध और पारदर्शी बनाए रख पाएंगे, या फिर यह कुछ लोगों की निजी महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ जाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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