हिसार की राजनीति में कमल गुप्ता का दबदबा कायम, सावित्री जिंदल पावर में होते हुए भी हाशिए पर ?
हिसार की राजनीति: कमल गुप्ता बनाम जिंदल हाउस की सत्ता संग्राम
हिसार की राजनीति समय-समय पर बड़े बदलावों से गुजरती रही है। एक दौर था जब यहां की राजनीति जिंदल हाउस से संचालित होती थी। उद्योगपति और कांग्रेस नेता नवीन जिंदल के राजनीतिक उदय ने जिंदल हाउस को एक प्रभावशाली राजनीतिक केंद्र बना दिया था। लेकिन समय बदला, समीकरण बदले, और हिसार की राजनीति जिंदल हाउस से धीरे-धीरे खिसकने लगी।
जब कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल सांसद बने, तो ऐसा लगा कि जिंदल हाउस में फिर से राजनीतिक सक्रियता लौटेगी। लेकिन जब भाजपा और कांग्रेस दोनों ने सावित्री जिंदल को टिकट नहीं दिया, तब उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और विजय भी हासिल की। इस जीत में उद्योगपति और मीडिया टाइकून सुभाष चंद्रा की भी भूमिका रही। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद सावित्री जिंदल को भाजपा सरकार को समर्थन देना पड़ा, क्योंकि भाजपा ने बहुमत के साथ सरकार बना ली थी।
कमल गुप्ता की रणनीति और जिंदल हाउस की असमंजस
चुनाव जीतने के बावजूद, सावित्री जिंदल को राजनीतिक प्रभाव जमाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कहा जा रहा है कि हिसार की असली राजनीतिक शक्ति अब भी भाजपा नेता कमल गुप्ता के हाथों में केंद्रित है। कमल गुप्ता ने राजनीति और कॉर्पोरेट जगत के गणित को सावित्री जिंदल और सुभाष चंद्रा को अच्छी तरह समझा दिया है कि राजनीति और उद्योग के नियम अलग-अलग होते हैं।
2014 के चुनाव में सुभाष चंद्रा हिसार की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे, लेकिन कमल गुप्ता ने ऐसा खेल खेला कि चंद्रा को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद चंद्रा ने राज्यसभा के रास्ते से अपनी सियासी पारी को आगे बढ़ाया और हिसार की राजनीति से दूरी बना ली।
सावित्री जिंदल की दखलंदाजी और भाजपा की रणनीति
सावित्री जिंदल निगम चुनाव में अपनी पकड़ बनाना चाहती थीं और उन्होंने अपनी करीबी शकुंतला को टिकट दिलाने की कोशिश की। लेकिन भाजपा ने उनके इस प्रयास को सफल नहीं होने दिया। भाजपा ने शकुंतला के बजाय अनिल मानी, वैभव, पंकज दीवान और प्रवीण पोपली के नामों पर विचार किया। इससे सावित्री जिंदल नाराज बताई जा रही हैं।
कमल गुप्ता, जिन्होंने पिछला चुनाव हारने के बावजूद अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखी, अब करनाल के निगम चुनाव के प्रभारी बना दिए गए हैं। यह भाजपा की एक रणनीति हो सकती है ताकि हिसार में कमल गुप्ता और सावित्री जिंदल के बीच बढ़ते तनाव का असर पार्टी पर न पड़े।
आने वाला समय क्या मोड़ लेगा?
अब बड़ा सवाल यह है कि सावित्री जिंदल निगम चुनाव में क्या रणनीति अपनाएंगी? क्या वे भाजपा का समर्थन करेंगी, या फिर कोई अलग रास्ता अपनाएंगी? वहीं, कमल गुप्ता अपनी राजनीतिक सूझबूझ से भाजपा की स्थिति को मजबूत करने में जुटे हैं।
हिसार की राजनीति में यह सत्ता संघर्ष आने वाले दिनों में और दिलचस्प मोड़ ले सकता है। क्या जिंदल हाउस एक बार फिर अपनी पुरानी सियासी धाक जमा पाएगा, या फिर कमल गुप्ता की रणनीति उन्हें मात देगी? यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है।
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