लोकसभा चुनाव: राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन का अफसोस भरा राजनीतिक सफर

 

लोकसभा चुनाव: राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन का अफसोस भरा राजनीतिक सफर

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता रहे हैं जिनकी कहानियाँ प्रेरणादायक होने के साथ-साथ अफसोसजनक भी रही हैं। इन्हीं में से दो बड़े नाम हैं – पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन। दोनों की दोस्ती जितनी गहरी थी, उतना ही इनका राजनीतिक सफर विवादों और अफसोस से भरा रहा।

राजीव गांधी: मजबूरी में मिली राजनीति, लेकिन विवादों से घिरे

राजीव गांधी भारतीय राजनीति में अनायास ही प्रवेश करने वाले नेता थे। उनका झुकाव राजनीति की ओर कभी नहीं था। वे एक पेशेवर पायलट थे और अपना जीवन सामान्य रूप से जीना चाहते थे। लेकिन 31 अक्टूबर 1984 को जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई, तब परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में खींच लिया। कांग्रेस पार्टी और देश के सामने कोई और मजबूत चेहरा नहीं था, इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई।

उनका शुरुआती कार्यकाल बहुत प्रभावी रहा। उन्होंने कंप्यूटर क्रांति और टेली-कम्युनिकेशन के क्षेत्र में बड़े सुधार किए। लेकिन उनका सफर विवादों से अछूता नहीं रहा। 1987 के बोफोर्स घोटाले ने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया, जिससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई। 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में लिट्टे के आत्मघाती हमले में उनकी हत्या हो गई, और उनका राजनीतिक सफर अधूरा रह गया।

अमिताभ बच्चन: दोस्ती में राजनीति, लेकिन जल्द ही मोहभंग

अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी की दोस्ती बहुत गहरी थी। जब राजीव गांधी ने राजनीति में कदम रखा, तो उन्होंने अपने दोस्त अमिताभ बच्चन को भी इसमें उतरने के लिए प्रोत्साहित किया।

1984 के लोकसभा चुनाव में अमिताभ बच्चन ने कांग्रेस के टिकट पर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) सीट से चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से जीत दर्ज की। वे राजनीति में पूरी तरह नए थे, लेकिन जनता ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उनकी जीत ऐतिहासिक थी, लेकिन राजनीति की जटिलताओं से उनका जल्द ही मोहभंग हो गया।

कुछ ही सालों में, वे राजनीतिक माहौल से असहज महसूस करने लगे। उन पर भी कुछ आरोप लगे, जिनमें बोफोर्स घोटाले से जुड़े आरोप शामिल थे, हालांकि बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई। लेकिन इन विवादों और राजनीति की असली सच्चाई ने उन्हें झकझोर दिया। 1987 में उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया और राजनीति को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

अफसोस भरा सफर: दो दोस्तों की अनोखी दास्तान

राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन दोनों ही अपनी-अपनी फील्ड के दिग्गज थे। लेकिन राजनीति उनके लिए एक अफसोस भरा अनुभव साबित हुई।

  1. राजीव गांधी - जिनका झुकाव राजनीति की ओर नहीं था, लेकिन परिवार की मजबूरी ने उन्हें इसमें ला खड़ा किया। अंततः उन्होंने अपनी जान गंवा दी।
  2. अमिताभ बच्चन - जो दोस्ती में राजनीति में आए, लेकिन जल्द ही इसे छोड़ दिया क्योंकि उन्हें लगा कि यह दुनिया उनके लिए सही नहीं है।

इन दोनों की राजनीतिक यात्रा हमें यह सिखाती है कि राजनीति हर किसी के लिए नहीं होती। यह केवल एक करियर नहीं, बल्कि एक कठिन जिम्मेदारी और संघर्ष का मैदान है।

राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन की राजनीति में एंट्री और एग्ज़िट एक ऐतिहासिक कहानी है। राजीव गांधी को राजनीति विरासत में मिली, लेकिन वे इसमें कई विवादों का सामना नहीं कर पाए और अंत में उन्होंने अपने प्राण तक गंवा दिए। दूसरी ओर, अमिताभ बच्चन ने अपनी दोस्ती निभाने के लिए इसमें प्रवेश किया, लेकिन जल्द ही इससे दूर हो गए। दोनों का सफर अलग-अलग रहा, लेकिन अफसोस की भावना दोनों के साथ जुड़ी रही।

क्या राजनीति सही मायने में हर किसी के लिए होती है?

इस सवाल का जवाब हमें इन दो शख्सियतों के अनुभव से मिल सकता है। राजनीति में उतरना आसान है, लेकिन इसे लंबे समय तक निभाना और इसके दांव-पेंच झेलना सबके बस की बात नहीं।

@amiabh bachan

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