लालू बनाम नीतीश: 30 साल का राजनीतिक सफर
लालू बनाम नीतीश: 30 साल का राजनीतिक सफर
बिहार की राजनीति पिछले तीन दशकों से दो प्रमुख नेताओं - लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार - के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इन दोनों नेताओं की राजनीतिक यात्रा केवल व्यक्तिगत उत्थान की कहानी नहीं है, बल्कि यह बिहार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना को गहराई से प्रभावित करने वाली गाथा भी है। लालू और नीतीश के बीच प्रतिस्पर्धा ने बिहार की राजनीति को एक नई दिशा दी है। आइए, इस संघर्ष और सियासी सफर पर एक नज़र डालते हैं।
लालू प्रसाद यादव: सामाजिक न्याय की राजनीति के पुरोधा
लालू प्रसाद यादव ने 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली। सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले लालू प्रसाद यादव ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का पुरजोर समर्थन किया। उनके शासनकाल में यादव-मुस्लिम गठजोड़ (MY फैक्टर) की राजनीति अपने चरम पर पहुंची और उन्होंने बिहार में लंबे समय तक अपनी पकड़ बनाए रखी। हालांकि, 1997 में चारा घोटाले में नाम आने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता की कमान सौंप दी।
नीतीश कुमार: सुशासन और विकास की राजनीति
नीतीश कुमार का उदय लालू के विरोध के रूप में हुआ। 2005 में, बिहार में खराब शासन और अपराध के बढ़ते स्तर से जनता में नाराजगी थी, जिसका लाभ उठाकर नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर बिहार की सत्ता हासिल की। उन्होंने "सुशासन बाबू" की छवि बनाई और बिहार में कानून-व्यवस्था को सुधारने, सड़क निर्माण, बिजली आपूर्ति और शिक्षा में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके नेतृत्व में बिहार में "सात निश्चय योजना" जैसी विकास योजनाएं लागू की गईं, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी।
सियासी गठजोड़ और अलगाव का खेल
बिहार की राजनीति में लालू और नीतीश के बीच कई बार समीकरण बदले। 2013 में, नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और 2015 में राजद-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव जीता। लेकिन 2017 में उन्होंने फिर पाला बदलते हुए भाजपा के साथ सरकार बना ली। 2022 में एक बार फिर उन्होंने भाजपा से नाता तोड़कर महागठबंधन की सरकार बना ली।
आगे की राह
आज भी बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की अहम भूमिका बनी हुई है। लालू का परिवार, विशेष रूप से उनके बेटे तेजस्वी यादव, बिहार में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि नीतीश कुमार अपनी सियासी चालों से हमेशा चर्चा में रहते हैं। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता किसे अपना समर्थन देती है।
बिहार की राजनीति में लालू बनाम नीतीश का यह संघर्ष केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा, शासन शैली और जनता की आकांक्षाओं की लड़ाई भी है।
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