एक साल के लिए 500 रुपए में किराये पर मिलती है दूसरों की बीवी ?

यह कहानी सामाजिक बुराइयों और परंपराओं के नाम पर होने वाले शोषण पर आधारित है, जो न केवल दिल को झकझोर देती है बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि हम समाज के किस स्तर पर हैं।





कहानी शुरू होती है शिवपुरी गाँव से, जहाँ हर साल एक अनोखी मंडी लगती है। यह मंडी कोई आम बाजार नहीं है, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ महिलाओं की बोली लगाई जाती है। पुरुष यहाँ आते हैं, एक स्टाम्प पेपर पर दस्तखत करते हैं, और तय समय के लिए एक महिला को अपनी "पत्नी" बनाते हैं।

इस मंडी की ख़ासियत यह है कि यहाँ महिलाओं की कीमत उनके उम्र, सुंदरता और जरूरतों के हिसाब से तय होती है। कोई महिला 500 रुपए में "किराये" पर जाती है, तो कोई 50,000 में। गाँव के लोग इसे सामान्य परंपरा मानते हैं, और इस प्रथा को "धड़ीचा" कहते हैं।

गाँव की बहन, "सुमन" की कहानी

सुमन 19 साल की एक सीधी-सादी लड़की थी। बचपन से ही उसने अपने आस-पास यह मंडी लगते देखी थी, लेकिन वह खुद को इससे अलग मानती थी। उसकी माँ उसे समझाती, "बेटी, हमारे गाँव में लड़कियों के लिए यही जीवन है। शादी के बाद भी हमें किराये पर जाना पड़ता है। यह हमारी किस्मत है।"

सुमन को यह सब मंजूर नहीं था। वह पढ़ाई करना चाहती थी, गाँव से बाहर निकलना चाहती थी। लेकिन उसके परिवार की माली हालत खराब थी। उसके पिता ने मजबूरी में उसे मंडी में ले जाने का फैसला किया।

मंडी के दिन सुमन को तैयार किया गया, जैसे कोई दुल्हन। उसके दिल में डर था, पर मुँह से कुछ नहीं निकला। वहाँ दूर-दूर से लोग आए। एक अमीर किसान, जिसका नाम "रघुवीर" था, ने सुमन पर बोली लगाई। 20,000 रुपये में उसकी "किराये की पत्नी" बनने का सौदा हुआ।

सौदे के बाद का जीवन

रघुवीर सुमन को अपने घर ले गया। उसने सुमन को पत्नी की तरह व्यवहार करने को कहा, लेकिन सुमन का मन इस बंधन में नहीं लगा। उसे लगता था कि वह किसी जाल में फँस गई है।

रघुवीर उसे अच्छा खाना देता, महँगे कपड़े पहनाता, लेकिन सुमन हर रात रोती। उसे लगता था कि वह एक वस्तु बन गई है।

सुमन की बगावत

एक दिन सुमन ने फैसला किया कि वह इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएगी। उसने गाँव की दूसरी लड़कियों से बात की, जो उसी दर्द से गुजर रही थीं। उन्होंने तय किया कि वे प्रशासन से मदद मांगेंगी।

लेकिन जब वे जिला मुख्यालय पहुँचीं, तो उन्हें वहाँ भी निराशा मिली। अधिकारियों ने कहा, "यह तो तुम्हारे गाँव की परंपरा है। हम इसमें दखल नहीं दे सकते।"

सुमन ने हार नहीं मानी। उसने एक पत्रकार से संपर्क किया, जो इन घटनाओं को लेकर काफी संवेदनशील था। पत्रकार ने सुमन की कहानी को बड़े स्तर पर उजागर किया। यह खबर राष्ट्रीय मीडिया तक पहुँची।

बदलाव की शुरुआत

सुमन की हिम्मत ने गाँव में एक क्रांति शुरू कर दी। प्रशासन ने गाँव में मंडी पर पाबंदी लगाई। कई लोगों को जेल भी हुई। धीरे-धीरे, इस प्रथा के खिलाफ आवाजें उठने लगीं। सुमन अब लड़कियों के लिए एक प्रेरणा बन गई थी। उसने अपने गाँव में एक स्कूल भी शुरू किया, जहाँ लड़कियों को पढ़ाया जाने लगा।


यह कहानी केवल सुमन की नहीं, बल्कि हर उस लड़की की है जो अपनी आजादी के लिए लड़ना चाहती है। बदलाव धीरे-धीरे आता है, लेकिन एक कदम से शुरुआत होती है।

Comments

Popular posts from this blog

इनैलो की सेफ सीट को विद्यारानी का अहंकार ले डूबेगा ?

कृष्ण बेदी महिला विरोधी? बेटे की तुड़वाई थी शादी?

शाहबाद ने कृष्ण बेदी को नकारा, तब नरवाना की याद आई?