समुदाय में, घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को इस कुप्रथा में झौंक दिया जाता है
यह कहानी एक अजीब और दुखद परंपरा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो मध्यप्रदेश के मंदसौर और नीमच ज़िलों में कुछ विशेष समुदायों में प्रचलित है। यहां, एक कुप्रथा के तहत परिवार की पहली बेटी को "देह व्यापार" के लिए मजबूर किया जाता है। इस अजीब प्रथा का निहितार्थ उस समाज की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थितियों में है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
कई दशकों से, मंदसौर और नीमच जैसे इलाकों में इस तरह की परंपरा ने इन समुदायों को एक पहचान दिलाई है, लेकिन यह पहचान एक क्रूर और अमानवीयता की निशानी भी है। अंग्रेजों द्वारा यहां बसाए गए इन समुदायों के लोग खुद को राजपूत बताते हैं, लेकिन उनकी उत्पत्ति की सही जानकारी अस्पष्ट है। उनकी यह परंपरा राजा की वफ़ादारी से शुरू हुई, जब उन्हें दुश्मनों की जानकारी प्राप्त करने के लिए अपनी महिलाओं को गुप्तचर के रूप में भेजा जाता था। अंग्रेजों के आने के बाद, इस परंपरा ने देह व्यापार का रूप ले लिया और इसे एक पेशे के तौर पर अपनाया गया।
समुदाय में, घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को इस कुप्रथा में झौंक दिया जाता है। यह परंपरा एक तरह से उस परिवार के लिए एक "रोज़ी-रोटी" का साधन बन गई है, जहां महिला और उसकी बेटी से आर्थिक लाभ हासिल किया जाता है। इन लड़कियों को इस व्यापार में शामिल करने का दबाव उनके परिवार द्वारा ही बनाया जाता है, और वे मजबूरी में इसे स्वीकार करती हैं।
आज भी, इन ज़िलों में इन लड़कियों का चेहरा समाज के लिए एक अंधेरे सच का प्रतीक बना हुआ है। जहां एक ओर सारी दुनियां में ज़बरदस्ती देह व्यापार के खिलाफ मुहिम चली हुई है, वहीं यहां यह एक दुखद परंपरा के रूप में जिंदा है। समुदाय की लड़कियां खुलेआम हाई-वे पर राहगीरों को अपनी ओर बुलाती हैं, उनका पूरा परिवार उनके साथ इस धंधे में मदद करता है। यह एक ऐसी सामाजिक समस्या है जिसे सुलझाने के लिए सिर्फ कानूनी उपाय ही नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की भी आवश्यकता है।
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