जब वी.पी. सिंह ने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली, तो उन्होंने देश के सबसे बड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा कदम उठाया। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले संगठनों, जैसे कि डी.आर.आई. (डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) और आयकर विभाग ने उद्योगपतियों के खिलाफ जांच शुरू कर दी, जिससे कई काले कारनामे उजागर होने लगे। वी.पी. सिंह ने न केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध छेड़ा, बल्कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जिन उद्योगपतियों के काले धन से देश का नुकसान हो रहा था, उन्हें बेनकाब किया जाए।

लेखक संतोष भारतीय की किताब में एक दिलचस्प घटना का उल्लेख किया गया है। जब वी.पी. सिंह के निर्देश पर डी.आर.आई. ने धीरूभाई अंबानी के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया, तो अचानक एक दुर्लभ घटना घटी। धीरूभाई अंबानी को पैरालिसिस का अटैक आ गया, जैसे ही उन्हें इस कार्रवाई की भनक लगी। यह घटना संयोग मात्र नहीं थी, बल्कि उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों की एक तस्वीर थी, जिसमें वी.पी. सिंह की हर कदम से उद्योग जगत और कुछ बड़े उद्योगपतियों में खलबली मच गई थी।

मई 1985 में, वी.पी. सिंह ने अचानक प्‍यूरिफाइड टेरेपथैलिक एसिड के आयात पर रोक लगा दी। यह कच्चे माल के तौर पर पॉलियस्‍टर फिलामेंट यार्न बनाने के लिए जरूरी था, और रिलायंस के लिए इसके बिना अपने ऑपरेशंस को जारी रखना मुश्किल हो गया था। इस कदम ने रिलायंस के लिए बेहद कठिनाइयां उत्पन्न कर दी थीं। ऑपरेशंस को जारी रखने के लिए रिलायंस को कड़ी मशक्‍कत करनी पड़ी थी।

यह घटना वी.पी. सिंह और धीरूभाई अंबानी के बीच एक गहरे दुश्मनी के जन्म का कारण बनी। उद्योगपति अब खुलकर वी.पी. सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी कदमों के खिलाफ हो गए थे। देश के बड़े पूंजीपति चाहते थे कि उन्हें वित्त मंत्रालय से हटा दिया जाए। यह स्थिति वी.पी. सिंह के लिए एक तरह से संकट का समय बन गई, और अंततः उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई।

फिर 23 जनवरी 1987 को अचानक राजीव गांधी ने उन्हें वित्त मंत्रालय से हटा कर रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप दी। राजीव गांधी का यह कदम उस समय पाकिस्तान से संभावित खतरे का हवाला देते हुए लिया गया था। वी.पी. सिंह का रक्षा मंत्रालय में जाना, हथियार माफियाओं के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बन गया। उनके नेतृत्व में सैन्य अभ्यासों की शुरुआत हुई, और सेना ने पाकिस्तान की सीमा पर सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया। हालांकि, मिलिट्री इंटेलिजेंस ने यह रिपोर्ट दी कि पाकिस्तान की तरफ से कोई भी आक्रमण की योजना नहीं थी। यह स्थिति वी.पी. सिंह के लिए बहुत चौंकाने वाली थी। उन्हें लगा कि उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश रची जा रही है।

इस असमंजस और विरोधाभास के बाद, उन्होंने रक्षा मंत्री के पद से त्यागपत्र देने का निर्णय लिया। उनके इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि यह घटना उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में सामने आई। यह समय था जब वी.पी. सिंह ने अपनी राजनीति के रास्ते को फिर से परिभाषित किया और उनकी राजनीतिक यात्रा एक नए दिशा में मुड़ गई।

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