चौधरी देवीलाल क्या महिला विरोधी थे ?

चौधरी देवीलाल क्या महिला विरोधी थे की उन्होंने सीएम पद पर रहते हुए एक महिला को मंत्री पद से हटाने की बात पर अड़ गए थे और जब यह बात उस वक्त के प्रधानमंत्री तक गई तो उन्होंने देवीलाल को चेतावनी दी की अगर मंत्री पद पर वापिस नहीं लिया तो सीएम नहीं रहोगे उसके बाद वो देवीलाल ने चरण सिंह से मुलाकात की और बाद में चरण सिंह ने भी देवीलाल को भी फटकार लगाई थी। उसी ताऊ देवीलाल को मसीहा के रूप में याद करते हैं और उनका लोकलाज से लोकराज कहा जाता है। इस किस्से के बाद ताऊ देवीलाल के बारे में क्या राय है कमेंट करके जरूर बताएं । यह सियासी किस्सा चंद्रशेखर ने अपनी पुस्तक में लिखा है हमने वहीं से रिपोर्ट तैयार की है।


 INTRO

 चौधरी देवीलाल का नाम भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम है जो सादगी, लोक सेवा, और जनहित में लिए गए साहसिक निर्णयों के लिए जाना जाता है। लेकिन उनके राजनीतिक जीवन में कुछ विवाद भी ऐसे हैं जो आज भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। इन्हीं में से एक किस्सा है जब उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए एक महिला मंत्री को हटाने की बात पर जोर दिया था। आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सदस्य बनीं। 1977 में पहली बार हरियाणा का विधानसभा चुनाव जीता। महज 25 वर्ष की उम्र में राज्य की श्रम मंत्री बनीं और सबसे युवा कैबिनेट मंत्री की उपलब्धि हासिल की। लेकिन हरियाणा के मंत्री रहते हुए भी सुषमा स्वराज से जुड़ी बड़ी दिलचस्प कहानी है जिसका जिक्र पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक जीवन जैसे जिया में किया है। मोरारजी देसाई की सरकार आने के बाद कांग्रेस शासित राज्यों की विधानसभा भंग हुई। हरियाणा में चुनाव हुए और अंबाला कैंट से सुषमा स्वराज ने चुनाव जीता। चौधरी देवी लाल सीएम बने। सुषमा स्वराज को देवीलाल मंत्री नहीं बनाना चाहते थे। बहाने बना रहे थे। उन्होंने सुषमा जी को कैनिनट मंत्री की शपथ नहीं दिलाई। कहते थे, राज्यमंत्री बन जाओ। एक दिन मधु लिमये के साथ सुषमा स्वराज आईं। उनको भय था कि देवीलाल शपख नहीं दिलाएंगे। चंद्रशेखर ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। जनता पार्टी संसदीय बोर्ड का फैसला है। चंद्रशेखर ने देवीलाल से बात की। देवीलाल कहने लगे कि उनसे कहिए, राज्यमंत्री की शपथ ले लें। उन्हें उस पर आपत्ति थी। चंद्रशेखर ने देवीलाल से कहा कि यह संसदीय बोर्ड का फैसला है, जिस पर मैंने दस्तख्त किए हैं। आपको उसका आदर करना चाहिए। चौधरी देवीलाल ने सवालिया अंदाज में कहा कि मंत्री पद की शपथ कैसे दिलवा दें, यह बहुत छोटी है, लेकिन फिर जेपी की इच्छा और चंद्रशेखर के दबाव के चलते न चाहते हुए भी देवीलाल ने सुषमा को श्रम और रोजगार मंत्री बनाया। लेकिन तीन महीने के बाद ही देवीलाल ने सुषमा को निकालने की तैयारी कर ली। तीन महीने के बाद वो फिर मधु लिमये के साथ चंद्रशेखर से मिलने आईं। उन्होंने चंद्रशेखर से कहा कि मुख्यमंत्री मुझे बर्खास्त करने वाले हैं। मेरा इस्तीफा ले लीजिए, नहीं तो बेइज्जती होगी। चंद्रशेखर ने कहा कि ऐसा कैसे होगा? बिना पूछे वे ऐसा नहीं कर सकते। अगर आशंका है तो मधु को त्यागपत्र दे देना। सुषमा स्वराज के जाने के थोड़ी देर बाद ही एजेंसियों से खबर आई कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने अपने एक मंत्री को फरीदाबाद के मर्चेंट चैंबर ऑफ काॅमर्स की सभा से बर्खास्त कर दिया। चंद्रशेखर देवीलाल के इस अभद्र व्यवहार से हैरान थे। उन्होंने देवीलाल से बात की और कहा कि खबर आई है आपने सुषमा स्वराज को बर्खास्त कर दिया। जिस पर देवीलाल ने जवाब दिया कि वह किसी काम की नहीं हैं। कोई काम नहीं करतीं, परेशानी पैदा करती हैं। जवाब में चंद्रशेखर बोले आप उन्हें वापस लीजिए। लेकिन देवीलाल नहीं माने। चंद्रशेखर ने कहा चौधरी साहब, अगर आपने सुषमा स्वराज को वापस नहीं लिया तो आप चीफ मिनिस्टर नहीं रह सकते। मुझे पार्टी अध्यक्ष होने के नाते जरूरत पड़ने पर इस बात का अधिकार है कि आपको पार्टी से निकाल दूं। नोटिस पीरियड 15 दिन का होगा। उस दौरान मैं नए नेता के चुनाव का ऑर्डर कर दूंगा और आपका ही कोई आदमी आपके खिलाफ खड़ा हो जाएगा। चौधरी देवीलाल इस तरह के संवाद के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे वे दिल्ली की ओर दौरे और चौधरी चरण सिंह से मुलाकात की। चौधरी चरण सिंह ने देवीलाल को बर्खास्त करने की धमकी के बारे में चंद्रशेखर से पूछा। जवाब में चंद्रशेखर ने सारा माजरा चौधरी चरण सिंह को बताया। सब सुनकर चौधरी चरण सिंह ने देवीलाल को फटकार लगाई। बाद में सुषमा मंत्रिमंडल में बनीं रहीं।

चौधरी देवीलाल, जो अपनी सादगी और 'लोकलाज से लोकराज' की नीति के लिए मसीहा कहे जाते हैं, उनके इस सियासी किस्से ने राजनीति में मानवीय और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के टकराव को उजागर किया। इस घटना के बारे में आपकी क्या राय है? क्या यह देवीलाल की एक भूल थी, या फिर सियासत का एक हिस्सा? अपनी राय कमेंट करके जरूर बताएं।"यह रिपोर्ट पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की किताब पर आधारित है।"अगर आपको यह वीडियो पसंद आया हो तो लाइक और सब्सक्राइब करना न भूलें, और इस सियासी कहानी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। जय हिंद!

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