देश ने खोया एक महान नेता: डॉ. मनमोहन सिंह का निधन

 देश ने खोया एक महान नेता: डॉ. मनमोहन सिंह का निधन


भारत के राजनीतिक इतिहास में आर्थिक सुधारों के जनक और मृदुभाषी नेता के रूप में पहचाने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। गरीबी और संघर्ष की पृष्ठभूमि से उठकर बिना किसी सघन राजनीतिक आधार के भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश का नेतृत्व करना उनके असाधारण व्यक्तित्व और नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है। उनका जीवन और कार्य राजनीति में नैतिकता, धैर्य और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है।

एक साधारण पृष्ठभूमि से प्रधानमंत्री तक का सफर

डॉ. मनमोहन सिंह ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जिनकी कोई सघन राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी। पंजाब के एक छोटे से गांव में जन्मे, उन्होंने शैक्षणिक उत्कृष्टता और कठोर परिश्रम के बल पर खुद को स्थापित किया। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट हासिल करने के बाद उन्होंने भारत के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाई।

1991 में भारत के आर्थिक संकट के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उन्हें वित्तमंत्री का दायित्व सौंपा। यह वह समय था जब भारत का अधिकांश सोना विदेशी बैंकों में गिरवी रखा गया था, और देश दिवालिया होने के कगार पर था। डॉ. सिंह ने साहसिक आर्थिक सुधारों की शुरुआत कर भारत की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। उनके प्रयासों से न केवल देश संकट से उबरा, बल्कि उदारीकरण और वैश्वीकरण के नए युग में प्रवेश किया।

प्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक कार्यकाल

डॉ. सिंह 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनकी नियुक्ति उस समय हुई जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। उन्होंने न केवल गठबंधन सरकार को स्थिरता प्रदान की बल्कि अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले भी लिए। सूचना का अधिकार, मनरेगा, शिक्षा का अधिकार और खाद्य सुरक्षा जैसे कानून उनके नेतृत्व में लागू हुए, जो आज भी सामाजिक विकास की धारा को प्रभावित कर रहे हैं।

उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान 2008 में अमेरिका के साथ किए गए ऐतिहासिक परमाणु समझौते में रहा। वामपंथी दलों के समर्थन वापसी की धमकियों के बावजूद, डॉ. सिंह ने इस समझौते को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह उनकी दृढ़ता और दूरदर्शिता का प्रतीक है।

वैश्विक मंच पर भारत की साख

डॉ. सिंह ने भारत को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाई। 2008 और 2011-12 के वैश्विक आर्थिक संकटों के दौरान उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा। ब्रिक्स राष्ट्रों को एकजुट करने और विकासशील देशों की आवाज़ को सशक्त बनाने में उनका योगदान अद्वितीय रहा।

राजनीतिक विरोधों का मृदुभाषी प्रतिवाद

अपने पूरे कार्यकाल में डॉ. सिंह को कमजोर और कठपुतली प्रधानमंत्री कहकर आलोचना की गई। लेकिन उन्होंने इन आरोपों का जवाब अपने कार्यों से दिया। संयम, शालीनता और मर्यादा के साथ उन्होंने राजनीति में अपनी अलग छवि बनाई।

चुनावी राजनीति और विरासत

डॉ. सिंह ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में केवल एक बार चुनाव लड़ा। 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने दक्षिण दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इसके बावजूद, उनकी राजनीतिक यात्रा में यह पराजय कभी बाधा नहीं बनी।

आधुनिक भारत के निर्माता

डॉ. मनमोहन सिंह का निधन देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके आर्थिक सुधारों, सामाजिक विकास के लिए किए गए कार्यों और मृदुभाषी नेतृत्व ने भारतीय राजनीति और समाज में एक अमिट छाप छोड़ी है। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

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