महम कांड: हरियाणा के राजनीतिक इतिहास का काला अध्याय

 खूनी सियासत का काला अध्याय: महम कांड की पूरी कहानी

नमस्कार, स्वागत है आपका Vishwaprem News में! मैं हूँ आपकी अंजना। आज हम आपको लेकर चलेंगे हरियाणा के इतिहास के एक ऐसे अध्याय में जिसे भुलाना मुश्किल है। यह कहानी है महम कांड की—एक ऐसी घटना जिसने न केवल हरियाणा बल्कि पूरे देश की राजनीति को झकझोर दिया। आइए, समझते हैं इस विवाद की गहराई, इसके कारण, और परिणाम जो आज भी चर्चा का विषय हैं।"

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महम कांड: कैसे शुरू हुई यह कहानी?

फरवरी 1990 में हरियाणा के रोहतक जिले के महम विधानसभा क्षेत्र में एक उपचुनाव का आयोजन किया गया। यह चुनाव इसलिए जरूरी था क्योंकि चौधरी देवीलाल ने उपप्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी विधानसभा सीट छोड़ दी थी। हरियाणा के मुख्यमंत्री उनके बेटे चौधरी ओमप्रकाश चौटाला थे, जो उस समय विधायक नहीं थे। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें छह महीने के भीतर किसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतना अनिवार्य था।

चुनाव आयोग ने 27 फरवरी 1990 को महम उपचुनाव की तारीख तय की। ओमप्रकाश चौटाला ने महम से नामांकन दाखिल किया, लेकिन उनके खिलाफ कई मजबूत उम्मीदवार खड़े हो गए, जिनमें सबसे चर्चित नाम आनंद सिंह दांगी का था।

चुनाव प्रचार से हिंसा तक का सफर

चुनाव प्रचार के दौरान महम में माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया। सभी पक्षों ने एक-दूसरे पर धांधली के आरोप लगाए। मतदान के दिन स्थिति और बिगड़ गई। व्यापक हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं ने चुनाव प्रक्रिया को कलंकित कर दिया।

चुनाव आयोग ने धांधली की शिकायतों के चलते आठ मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया। लेकिन 28 फरवरी को हुए पुनर्मतदान में भी हिंसा भड़क उठी। पुलिस और भीड़ के बीच टकराव ने स्थिति को और गंभीर बना दिया।

खूनी खेल और पुलिस की कीमत

चुनाव के दौरान कई गांवों में हिंसक झड़पें हुईं। गांव बैंसी में अभय चौटाला और उनके समर्थकों पर हमला हुआ। हालात इतने खराब हो गए कि पुलिस को स्थिति संभालने के लिए अभय चौटाला को एक प्राइमरी स्कूल में छिपाना पड़ा। लेकिन यहां भीड़ ने उन्हें निशाना बना लिया। अभय चौटाला के कपड़े पहनने के लिए मजबूर किए गए पुलिसकर्मी हरबंस सिंह को भीड़ ने मार डाला।

चौटाला परिवार पर राजनीतिक दबाव

महम कांड ने चौटाला परिवार और लोकदल की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया। चुनावी हिंसा, बूथ कैप्चरिंग, और निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या ने मामले को और संगीन बना दिया। विपक्ष और मीडिया ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया।

प्रधानमंत्री वीपी सिंह और जनता दल के गठबंधन के दबाव में चौधरी देवीलाल को अपने बेटे से मुख्यमंत्री पद छीनना पड़ा। ओमप्रकाश चौटाला को पहली बार 5.5 महीने बाद और दूसरी बार मात्र 5 दिनों में इस्तीफा देना पड़ा।

महम कांड के दीर्घकालिक प्रभाव

महम कांड ने हरियाणा और भारत की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी। इस घटना ने दिखाया कि सत्ता और चुनावी राजनीति कैसे हिंसा और दमन में बदल सकती है।

आज, महम कांड हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में एक काला अध्याय बनकर दर्ज है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि राजनीति में सच्चाई और नैतिकता का स्थान हिंसा और धांधली से ऊपर होना चाहिए।

आज के एपिसोड में इतना ही। जुड़े रहिए Vishwaprem News के साथ। अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्स में लिखना न भूलें।

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