डेरा का विवादित इतिहास: जब पंचकूला में जल उठा न्याय, राजनीति और धर्म का खतरनाक खेल
सिरसा का डेरा: राजनीति, अपराध और विवादों का गढ़
हरियाणा की राजनीति और सिरसा का डेरा सच्चा सौदा लंबे समय से एक-दूसरे से गहराई से जुड़े रहे हैं। डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम न केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक मंच पर भी बेहद प्रभावशाली माने जाते हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि डेरा का आशीर्वाद जिस भी पार्टी को मिल जाए, उसकी सरकार बनना लगभग तय हो जाता है। ये वो राजनैतिक अखाड़ा है जहां पर जिसे आशीर्वाद मिल जाए तो उनकी सरकार बन जाती है और बिना आशीर्वाद के विपक्ष में बैठे रह जाते हैं। हरियाणा में 2014 के चुनाव में भाजपा का खास वजूद नहीं था तो भाजपा ने जाकर डेरे से सहयोग मांगा तो उनकी सरकार आ गई। इसके बाद 2024 में फिर डेरा ने भाजपा की तरफ इशारा कर दिया और फिर से बहुमत की सरकार आ गई। डेरा समर्थक इससे आगे बताते हैं की भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौटाला परिवार पर हमारे बाबा की निगाहें टेडी है तभी तो आज हरियाणा की राजनीति से चौटाला और हुड्डा परिवार चौधर से दूर है पर फिर भी डेरा समर्थकों के बीच पंचकूला में खूनी संघर्ष आज से सात साल पहले शुरू हो गया था जिसमें लगभग 31 समर्थकों की मौत हो गई थी। जिस डेरे में उस वक्त के गृहमंत्री से लेकर सीएम तक हाथ जोड़े खड़े रहते थे और फिर एक नाटकीय अंदाज में उसे लाया जाता है और शुरू होता है सरकार और डेरे के बीच में खूनी खेल देखते हैं कुलदीप खंडेलवाल की खास रिपोर्ट में पंचकूला कांड का वो काला अध्याय उससे पहले चैनल को फोलो शेयर और सब्सक्राइब करें
2014 और 2024 के चुनावों में डेरा का प्रभाव
2014 के विधानसभा चुनाव में, हरियाणा में भाजपा का प्रभाव सीमित था। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, भाजपा ने डेरा सच्चा सौदा का समर्थन मांगा, जिसके परिणामस्वरूप उसे भारी बहुमत मिला। यही कहानी 2024 के चुनावों में भी दोहराई गई, जब डेरा ने भाजपा की ओर इशारा किया और फिर से पार्टी ने सरकार बना ली। डेरा समर्थकों का कहना है कि चौटाला परिवार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की राजनीतिक शक्ति का क्षय भी बाबा की "टेढ़ी नजर" का नतीजा है।
पंचकूला कांड: डेरा और सरकार के बीच खूनी खेल
हालांकि डेरा का राजनीतिक रसूख जितना बड़ा है, उतने ही विवाद इसके नाम पर दर्ज हैं। सबसे भयानक घटना 25 अगस्त 2017 को पंचकूला में घटी, जब डेरा प्रमुख को यौन शोषण के मामले में दोषी ठहराया गया। इस दिन की शुरुआत धारा 144 लागू होने और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती से हुई। लेकिन जैसे ही सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम को 20 साल की सजा सुनाई, डेरा समर्थकों ने हिंसा का तांडव मचाया।
इस हिंसा में 31 लोगों की मौत हो गई और सरकारी व निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा। दंगाइयों ने कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। बाद में जांच में खुलासा हुआ कि यह हिंसा पूर्व नियोजित थी। डेरा की 45 सदस्यीय कोर कमेटी ने राम रहीम के दोषी ठहराए जाने की स्थिति में हिंसा भड़काने की साजिश रची थी।
भगाने की साजिश और पुलिस की संलिप्तता
दंगों के दौरान की गई जांच से यह तथ्य भी सामने आया कि हिंसा की आड़ में राम रहीम को भगाने की योजना थी। इस साजिश में हरियाणा, पंजाब और राजस्थान पुलिस के कुछ अधिकारियों के साथ-साथ राम रहीम के निजी सुरक्षा गार्ड भी शामिल थे।
सिरसा के डेरे का राजनीतिक अखाड़ा
डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव केवल हरियाणा तक सीमित नहीं है। इसे उत्तर भारत के अन्य राज्यों में भी राजनीतिक समीकरण बदलने की क्षमता रखने वाला केंद्र माना जाता है। डेरा प्रमुख के अनुयायी, जिन्हें "डेरा प्रेमी" कहा जाता है, बड़ी संख्या में किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यही कारण है कि हरियाणा के बड़े राजनीतिक घराने और राष्ट्रीय दलों के नेता डेरा के समर्थन के लिए सिरसा का रुख करते हैं।
डेरा सच्चा सौदा की कहानी धर्म, राजनीति और विवादों का जटिल मिश्रण है। एक ओर इसका प्रभाव लाखों अनुयायियों पर है, तो दूसरी ओर इसके नाम पर विवाद, हिंसा और साजिशों के काले अध्याय भी लिखे गए हैं। पंचकूला कांड और उसके बाद की घटनाओं ने यह साफ कर दिया कि धर्म और राजनीति का यह संगम कितना खतरनाक हो सकता है।
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