किसान आंदोलन: सरकार और किसानों के बीच बढ़ता तनाव, आंदोलन में नई रणनीतियों का ऐलान ?

 किसान आंदोलन: सरकार और किसानों के बीच बढ़ता तनाव, आंदोलन में नई रणनीतियों का ऐलान ?


किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच जारी विवाद ने 8 महीने पूरे कर लिए हैं। स्वर्ण सिंह पंधेर ने कहा कि 13 फरवरी से दोनों बॉर्डर (शंभू और खनोरी) से शुरू हुए इस देशव्यापी आंदोलन को अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं मिला है। सरकार ने 18 फरवरी के बाद से किसानों से किसी प्रकार की बातचीत नहीं की है। इस निराशाजनक स्थिति के बीच किसान नेता जगजीत सिंह ढल्लेवाल 26 नवंबर को आमरण अनशन पर बैठने जा रहे हैं।

आंदोलन की नई रणनीति

किसानों ने सरकार को 10 दिनों का अल्टीमेटम दिया है। यदि इस दौरान सरकार बातचीत के लिए आगे नहीं आई या किसानों की 12 सूत्रीय मांगों को पूरा नहीं किया गया, तो 6 दिसंबर को किसान सांगू बॉर्डर से दिल्ली कूच करेंगे। पंधेर ने कहा कि यह कूच छोटे-छोटे जत्थों में होगा, जिनकी संख्या 51 से 100 तक हो सकती है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर आंदोलन के दौरान कोई अप्रिय घटना घटती है तो इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से केंद्र सरकार की होगी।

सुखजीत सिंह हार्दोजांद ने स्पष्ट किया कि यदि जगजीत सिंह ढल्लेवाल अपने अनशन के दौरान शहीद हो जाते हैं, तो आंदोलन रुकने वाला नहीं है। उनके बाद दूसरा व्यक्ति आमरण अनशन पर बैठेगा। सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तक कि किसानों की मांगें पूरी नहीं होतीं। उन्होंने कहा, "सरकार को यह तय करना चाहिए कि वह किसानों की कितनी शहादतें देखना चाहती है।"

किसानों की प्रमुख मांगें

किसानों की 12 सूत्रीय मांगों में फसली बीमा, एमएसपी की गारंटी, कर्ज माफी, आदिवासियों के लिए संविधान की पांचवीं अनुसूची का पालन और शहीद शुभकरण का न्याय शामिल है। इसके अलावा, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने और संसद में प्राइवेट मेंबर बिल लाने की मांग भी की गई है।

लखविंदर सिंह ओलख ने कहा कि 25 नवंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र में किसानों की मांगों को जोर-शोर से उठाया जाना चाहिए। उन्होंने विपक्षी दलों और एनडीए से आग्रह किया कि वे संसद में प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर किसानों की आवाज को संसद तक पहुंचाएं।

आंदोलन का विस्तार

तेजवीर सिंह ने बताया कि किसान संगठनों ने अब आंदोलन को पूरे देश में फैलाने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में जिला मुख्यालयों पर आंदोलन शुरू किया जाएगा। साथ ही, दिल्ली कूच को चरणबद्ध तरीके से अंजाम दिया जाएगा।

उन्होंने दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर जनता को हो रही परेशानी का जिक्र करते हुए कहा, "सरकार वार्ता क्यों नहीं कर रही है? दिल्ली की जनता को क्यों परेशान किया जा रहा है?" उन्होंने 26 नवंबर और 6 दिसंबर को पत्रकारों और जनता से आंदोलन में शामिल होने की अपील की।

सरकार पर आरोप

किसानों ने आरोप लगाया है कि सरकार निरंकुश रवैया अपनाए हुए है। पंधेर ने कहा कि भठिंडा में पुलिस द्वारा किसानों की जमीन अधिकृत की जा रही है और उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले आंदोलन में किसानों पर कई झूठे आरोप लगाए गए, लेकिन इस बार सरकार के हर कदम का जवाब दिया जाएगा।

आगे की राह

किसान संगठनों ने सरकार से अपील की है कि वार्ता के रास्ते खुले हैं। यदि सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाती, तो आंदोलन तेज होगा। 26 नवंबर के बाद पंजाब में भाजपा नेताओं का घेराव किया जाएगा और उनकी जवाबदेही तय की जाएगी।

निष्कर्ष
किसान आंदोलन अब एक निर्णायक मोड़ पर है। आंदोलनकारी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि सरकार ने जल्द उनकी मांगें नहीं मानीं, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार किसानों की इस चुनौती का कैसे सामना करती है।

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