हिंदुस्तान 90% लोगों का किसान मजदूर का है, नरेंद्र मोदी ने 10% का हिंदुस्तान बनाया हुआ है?

 हिंदुस्तान 90% लोगों का किसान मजदूर का है, नरेंद्र मोदी ने 10% का हिंदुस्तान बनाया हुआ है?


यह सवाल हर आम आदमी के दिल में घर कर गया है। भारत, एक ऐसा देश है जहां किसानों और मजदूरों की मेहनत से इस देश की बुनियाद रखी गई है। हजारों सालों से यहां की मिट्टी, यहां के खेत, और यहां के मेहनतकश लोग हमारे समाज का स्तंभ बने हुए हैं। लेकिन आज के दौर में एक नई सोच, एक नई दिशा, और एक अलग दृष्टिकोण ने देश को दो हिस्सों में बांट दिया है – एक हिस्सा 10% लोगों का, जो संपन्न और समृद्ध हैं, और दूसरा हिस्सा 90% लोगों का, जो दिन-रात मेहनत कर देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान देश की आर्थिक नीतियां, कृषि कानून, और सामाजिक सुधार ऐसे दिशा में गए हैं जहां कुछ बड़े उद्योगपति और पूंजीपति वर्ग ने बड़ा मुनाफा कमाया है। वहीं दूसरी ओर, छोटे किसान, मजदूर और सामान्य जनता महंगाई, बेरोजगारी, और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रही है।

10% का हिंदुस्तान कैसे बना?

कई सरकारी योजनाएं और नीतियां ऐसी रही हैं जिनका लाभ बड़े उद्योगपतियों और निवेशकों को अधिक मिला है। उदाहरण के तौर पर, नए कृषि कानूनों का विरोध किसानों ने किया क्योंकि उनका मानना था कि यह कानून सीधे तौर पर किसानों को कमजोर कर देंगे और बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाएंगे। इसी प्रकार, कई उद्योग क्षेत्रों में बड़े-बड़े निजीकरण किए गए, जिनसे बडे़ व्यापारियों को फायदा हुआ, जबकि छोटे उद्योग और स्थानीय कारोबार ठप होते नजर आए।

मोदी सरकार के समय में कुछ प्रमुख उद्योगपतियों की कंपनियों ने बड़ी छलांग लगाई, जिससे वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान पाने लगे। हालांकि, इसका असर यह हुआ कि आम लोगों को बेरोजगारी और गरीबी की मार झेलनी पड़ी। मजदूरों को रोजगार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य की ओर पलायन करना पड़ा। किसानों ने भी कई बार आत्महत्या करने जैसे कदम उठाए, जो देश के हालातों को लेकर गंभीर चिंता उत्पन्न करते हैं।

क्या सिर्फ 10% लोग ही विकास का लाभ पा रहे हैं?

बड़ा सवाल यह है कि देश के संसाधनों का अधिकांश हिस्सा कुछ ही हाथों में केंद्रित क्यों हो रहा है? क्या यही विकास का मापदंड है कि कुछ चुनिंदा लोग ही इसका फायदा उठाएं, जबकि बहुसंख्यक वर्ग के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भी साधन ना बचे? यह बहस का मुद्दा बन गया है।

इसकी सबसे बड़ी वजह नीति-निर्माण में आम लोगों की भागीदारी का अभाव है। ऐसे कई मुद्दे सामने आए हैं जहां जनसाधारण के बजाय सिर्फ चुनिंदा लोगों के फायदे को ध्यान में रखकर निर्णय लिए गए। इसके परिणामस्वरूप, किसान आंदोलन जैसे बड़े आंदोलन देश भर में होने लगे, जहाँ लोगों ने इन असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई।

क्या हो सकता है हल?

आम जनता को सही मायनों में लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को नीतियों में सुधार करना होगा। सभी वर्गों को समान रूप से आगे बढ़ाने की दिशा में योजनाएं बनानी होंगी। किसानों और मजदूरों के हक के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे ताकि वे भी अपने आप को एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर समाज का हिस्सा महसूस कर सकें।

निष्कर्ष

भारत का 90% किसान-मजदूर वर्ग अपनी मेहनत से देश को सींचता है, उसे विकसित बनाता है। यदि असमानता का यह अंतर बढ़ता जाएगा, तो देश का असंतुलन और सामाजिक असमानता में वृद्धि होती जाएगी। यही वक्त है कि हम सोचें – क्या 10% लोगों का ही भारत बनना चाहिए, या फिर हम सबको मिलकर एक ऐसा हिंदुस्तान बनाना चाहिए जो वास्तव में हर नागरिक का हो?

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