नरेश बंसल: अहसान फरामोश या सियासी चालाकी?
सुभाष बराला की चुप्पी और बंसल की नई सियासी राह ?
नरेश बंसल: अहसान फरामोश या सियासी चालाकी?
टोहाना की सियासी तस्वीर
टोहाना की सियासी फलक पर इस समय कई मुद्दे गरम हैं, जिनमें से एक प्रमुख है नरेश बंसल और सुभाष बराला के बीच की रिश्तेदारी और उनकी राजनीतिक चालाकियां। सुभाष बराला ने नरेश बंसल को चेयरमैन चुनाव में जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन अब बंसल, जिनकी जीत का श्रेय बराला को जाता है, देवेन्द्र सिंह बबली की छवि के साथ नजर आ रहे हैं। यह स्थिति स्थानीय जनता में चर्चा का विषय बन गई है, जहां लोग नरेश बंसल को 'अहसान फरामोश' कहकर चुटकी ले रहे हैं।
चुनावी मुकाबला
चुनाव के दौरान, बंसल का असली प्रतिद्वंद्वी देवेन्द्र सिंह बबली थे, जो अपनी दबंग छवि के लिए जाने जाते थे। उस समय सुभाष बराला के समर्थन ने बंसल को जीत दिलाई, लेकिन अब बंसल का बबली के साथ आना सवाल उठाता है। टोहाना की राजनीति में यह एक नया मोड़ है, जहां राजनीतिक वफादारी और विश्वासघात की परिभाषा बदल रही है। बंसल का अब बबली के साथ नजर आना, स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
भ्रष्टाचार के आरोप
टोहाना नगर परिषद में भ्रष्टाचार के आरोप भी बंसल की मुसीबतें बढ़ा सकते हैं। हाल ही में मनु सिंगला ने फेसबुक पर आरोप लगाया कि नगर परिषद में लाखों रुपये के दो टेंडरों में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। सिंगला ने यह भी कहा कि नगर परिषद ने 2 करोड़ 80 लाख रुपये के डोर-टू-डोर कचरा उठाने के टेंडर में ठेकेदार से कचरा उठाने का काम नहीं किया गया। इसके साथ ही नगर परिषद द्वारा खरीदी गई स्ट्रीट लाइटों की संख्या भी संदिग्ध है, जो कि या तो कहीं लगाई नहीं गईं या फिर निजी घरों में उपयोग की जा रही हैं।
सूचना के अधिकार का दुरुपयोग
सिंगला ने कहा कि इस मामले में उन्होंने आरटीआई दाखिल की है, लेकिन नगर परिषद इस सूचना को ईमानदारी से देने में असफल है। उनके अनुसार, कई आरटीआई आवेदन वर्षों से पेंडिंग हैं, और अधिकारियों द्वारा यह प्रक्रिया जनता की जानकारी को छिपाने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या नरेश बंसल इस भ्रष्टाचार के खेल का हिस्सा हैं या फिर उन्हें इसमें फंसाया जा रहा है।
जनता की अपेक्षाएं
स्थानीय लोगों का मानना है कि बंसल को अब सच्चाई का सामना करना होगा, खासकर जब वह बबली के साथ खड़े हैं। अगर बंसल ने सुभाष बराला को छोड़ दिया है, तो उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है। शहर में इस बात की चर्चाएं तेज हैं कि बंसल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, खासकर नगर परिषद के भ्रष्टाचार के मामलों में।
निष्कर्ष
टोहाना की राजनीति में नरेश बंसल की भूमिका अब सवालों के घेरे में है। क्या वह सुभाष बराला का अहसान भूल गए हैं, या यह उनकी एक चाल है जो उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करेगी? इस पर नजरें बनी हुई हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि टोहाना की जनता किस दिशा में अपनी राजनीतिक स्थिति को आगे बढ़ाती है।
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