हरियाणा की राजनीति के दो बड़े चेहरों के बारे में - भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौधरी देवी लाल
"नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका हमारे चैनल पर। आज हम बात करेंगे
हरियाणा की राजनीति के दो बड़े चेहरों के बारे में - भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौधरी देवी लाल। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, ने हरियाणा की राजनीति में अपनी एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। उनके नेतृत्व में हरियाणा ने अनेक विकास कार्य देखे हैं। वहीं दूसरी ओर चौधरी देवी लाल, जो हरियाणा के 'ताऊ' के नाम से मशहूर थे, भारतीय राजनीति के एक मजबूत स्तंभ रहे हैं। उन्होंने किसानों और मजदूरों के हित में अनेक काम किए और हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे। यह कहानी तब शुरू होती है जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौधरी देवी लाल का आमना-सामना चुनावी मैदान में हुआ। हुड्डा ने देवी लाल को लगातार तीन बार हराया। यह मुकाबला हरियाणा की राजनीति में काफी चर्चा का विषय रहा। देवी लाल ने हरियाणा में 1980 में पहली बार सोनीपत लोकसभा सीट से जनता पार्टी (एस) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वो राज्य की राजनीति छोड़कर केंद्र में चले गये. लेकिन उसके 2 साल बाद 1982 में हरियाणा विधानसभा चुनाव हुआ. देवी लाल ने सोनीपत लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और महम से विधानसभा चुनाव लड़े. कांग्रेस को 38 और लोकदल को 34 सीटें मिली. चुनावी जोड़ तोड़ में माहिर भजन लाल मुख्यमंत्री बन गये और देवी लाल ने लोकदल छोड़ दिया. ये वो दौर था जब देवी लाल और चौधरी चरण सिंह के बीच सियासी तकरार बढ़ गई थी.1989 में रोहतक सीट छोड़ने के बाद देवी लाल इस सीट पर लगातार तीन लोकसभा चुनाव हारे. तीनों बार कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) ने उन्हें मात दी. 1989 में इस्तीफा देने के बाद 1991 में रोहतक से देवी लाल फिर चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस के टिकट पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उन्हें 30 हजार 573 वोट से हरा दिया. 1996 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल को महज 2664 वोट से हरा दिया. वहीं 1998 के चुनाव में फिर भूपेंद्र हुड्डा और देवी लाल आमने-सामने थे. लेकिन देवी लाल को भूपेंद्र हुड्डा से फिर मात मिली. 1998 का लोकसभा चुनाव देवी लाल महज 383 वोट से हार गये.1998 का लोकसभा चुनाव देवी लाल का आखिरी चुनाव था. देवीलाल 1989 के बाद कोई चुनाव नहीं जीत पाये. जिस रोहतक सीट को सीकर के मुकाबले उन्होंने छोड़ दिया था, उसने फिर उन्हे कभी नहीं जिताया. 6 अप्रैल 2001 को देवी लाल का देहांत हो गया. हलांकि देवी लाल की विचारधारा और उनकी सियासी विरासत आज भी हरियाणा में प्रासंगिक है और वो जननायक कहे जाते हैं. उनकी अपनी पार्टी के दो टुकड़े भले हो गये हों लेकिन इनेलो और जेजेपी दोनो देवी लाल के नाम पर अपना वजूद तलाश रही हैं. यहां तक की विपक्षी नेता भी देवी लाल की विचारधारा के नाम पर वोट मांगते हैं.राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। देवी लाल ने अपने जीवन का आखिरी चुनाव लड़ा, और इस बार उनकी हार बहुत कम मार्जिन से हुई। वह चुनाव महज 383 वोटों के अंतर से हार गए। तो दोस्तों, यह थी कहानी हरियाणा की राजनीति के दो महान नेताओं की। अगर आपको यह वीडियो पसंद आया हो, तो कृपया लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। साथ ही कमेंट में हमें बताएं कि आप अगली बार किस विषय पर वीडियो देखना चाहेंगे। धन्यवाद!
Comments
Post a Comment