क्या भारत लोकतंत्र से Police Raj की तरफ़ बढ़ रहा है?

क्या भारत लोकतंत्र से पुलिस स्टेट की तरफ़ बढ़ रहा है?

30 दिन बिना जमानत जेल – क्या यही नया भारत है?

सवाल सीधा है, लेकिन जवाब टेढ़ा है।

क्या भारत लोकतंत्र से पुलिस स्टेट की तरफ़ बढ़ रहा है?
30 दिन तक जेल… बिना जमानत!
सोचिए — अगर आपको या मुझे कल पुलिस उठा ले जाए… तो क्या हमारी आज़ादी, हमारा संविधान, हमारी अदालत हमें तुरंत बचा पाएगी?
या फिर हम भी उसी काले कानून के शिकार होंगे, जिसे सत्ता अपने विरोधियों को चुप कराने के लिए हथियार बना रही है?

सवाल ये है कि क्या सरकार जनता की सुरक्षा के नाम पर, लोगों की आवाज़ दबाने का नया खेल खेल रही है?
क्या लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताक़त — यानी जनता की आज़ादी — धीरे-धीरे सरकार की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी है?
और क्या हम चुपचाप देखेंगे कि भारत एक 'Police Raj' में बदल रहा है… जहाँ संविधान किताबों में है, और हकीकत में सिर्फ डंडा?

INTRO

नई दिल्ली में हाल ही में पेश किए गए प्रावधानों ने देशभर में गहरी बहस छेड़ दी है। नए कानून के अनुसार पुलिस को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी व्यक्ति को 30 दिन तक हिरासत में रख सकती है, बिना किसी जमानत या अदालती हस्तक्षेप के। सरकार का तर्क है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और अपराध नियंत्रण के लिए ज़रूरी है, क्योंकि कई बार अपराधियों और संदिग्धों को तुरंत सबूतों के अभाव में छोड़ा जाता है और वे फिर से अपराध में लिप्त हो जाते हैं। लेकिन विपक्षी दलों, मानवाधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रावधान लोकतांत्रिक ढांचे और नागरिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। उनका कहना है कि जब संविधान प्रत्येक नागरिक को न्याय पाने और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार देता है, तब इस तरह की शक्तियाँ पुलिस को देना लोगों की स्वतंत्रता को असुरक्षित बनाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून विभाग के प्रोफेसर का कहना है कि यह प्रावधान "पुलिस स्टेट" की दिशा में एक कदम हो सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पहले भी देश में टाडा और पोटा जैसे कानून लाए गए थे, जिनका इस्तेमाल आतंकवादियों के बजाय आम नागरिकों और राजनीतिक विरोधियों पर ज़्यादा हुआ। इतिहास गवाह है कि ऐसे कठोर कानून अक्सर सत्ता के पक्ष में झुके हुए नज़र आते हैं। विपक्ष का आरोप है कि इस नए कानून का इस्तेमाल सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों और आंदोलनकारियों को चुप कराने के लिए कर सकती है। किसान आंदोलन और सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शनों का उदाहरण देते हुए नेताओं का कहना है कि जब भी जनता सड़कों पर उतरती है, तब सरकार के लिए इस तरह का कानून 'सबसे आसान हथियार' बन सकता है। 

कानूनी विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस प्रावधान का सबसे बड़ा खतरा 'पुलिसिया मनमानी' है। भारत में पहले से ही पुलिस सुधार और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल उठते रहे हैं। कई मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस ने राजनीतिक दबाव या निजी स्वार्थ के चलते गिरफ्तारी की है। ऐसे में 30 दिन की हिरासत बिना जमानत, न्याय व्यवस्था की नींव पर चोट की तरह है। दूसरी तरफ़ सरकार के मंत्री और समर्थक यह दलील देते हैं कि नागरिकों को सुरक्षा और अपराध से बचाना भी उतना ही बड़ा कर्तव्य है जितना कि उन्हें स्वतंत्रता देना। उनके मुताबिक, आतंकवाद, साइबर क्राइम और संगठित अपराध जैसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की ज़रूरत होती है और अदालत की प्रक्रिया में समय लगने से अपराधी बच निकलते हैं। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में इस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाएँ दाखिल की जा चुकी हैं। अदालत से उम्मीद है कि वह इस पर जल्द सुनवाई करेगी और यह तय करेगी कि यह कदम संविधान की मूल भावना और नागरिक अधिकारों के अनुरूप है या नहीं। देशभर में इस पर जनमत भी बँट गया है। एक वर्ग इसे सुरक्षा और अनुशासन के लिए आवश्यक मान रहा है, जबकि दूसरा वर्ग इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है। सोशल मीडिया पर भी यह बहस तेज़ है कि क्या सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता का बलिदान किया जा सकता है। भारत का लोकतंत्र हमेशा से नागरिक स्वतंत्रता और संस्थागत संतुलन पर आधारित रहा है। सवाल अब यह है कि क्या यह नया कदम उस संतुलन को बिगाड़ देगा या फिर वास्तव में देश को सुरक्षित बनाने की दिशा में कारगर साबित होगा।

क्या भारत लोकतंत्र से Police Raj की तरफ़ बढ़ रहा है?” “30 दिन जेल… बिना जमानत! यही है नया भारत?” “सवाल सीधा है: लोकतंत्र या Police State?” “आज़ादी बनाम सुरक्षा – क्या सरकार ने जनता की आवाज़ दबा दी? “क्या संविधान किताबों में है… और ज़मीन पर सिर्फ़ डंडा?” “लोकतंत्र पर हमला या सुरक्षा का बहाना?” “India 2025 = Democracy or Police Raj?”

Comments

Popular posts from this blog

एनजी न्यूज चैनल की पत्रकारिता: एक चिंतन

भूपेंद्र सिंह हुड्डा फिर से विपक्ष में, जाट नेता बनने की जिद पार्टी पर भारी!

स्विंग के सुल्तान भुवनेश्वर कुमार की दिलचस्प लव स्टोरी – किरायेदार की बेटी से हुआ था प्यार !