"जनता से काग़ज़ चाहिए… लेकिन PM की डिग्री ‘निजी’ क्यों?"
देश के नागरिकों से काग़ज़ दिखाने की जिद… NRC के नाम पर काग़ज़, वोटर लिस्ट में नाम के लिए काग़ज़, राशन कार्ड और आधार के लिए काग़ज़। लेकिन जब बात प्रधानमंत्री की डिग्री की आती है — तो वही काग़ज़ 'निजी' हो जाते हैं। सवाल ये है कि जो सत्ता जनता से काग़ज़ मांग रही है… वही सत्ता अपने काग़ज़ क्यों नहीं दिखा रही? दिल्ली यूनिवर्सिटी कहती है — BA की डिग्री ‘निजी जानकारी’ है। गुजरात यूनिवर्सिटी कहती है — MA की डिग्री ‘गोपनीय’ है। तो क्या प्रधानमंत्री की डिग्री अब राजकीय रहस्य बन गई है? जनता के काग़ज़ पर तो सवाल, कटघरे, नोटिस और धमकी… लेकिन प्रधानमंत्री के काग़ज़ पर चुप्पी, गोपनीयता और अदालत का सहारा? सवाल ये नहीं है कि डिग्री है या नहीं है… सवाल ये है कि अगर सब कुछ साफ़ है, तो फिर छुपाया क्यों जा रहा है? आज की बहस —


और सबसे बड़ा सवाल — क्या कानून सिर्फ जनता पर लागू होता है, सत्ता पर नहीं?"
आज बात उस मुद्दे की जो एक बार फिर देश में चर्चा के केंद्र में है।
काग़ज़…
जी हाँ, यही काग़ज़ जिसके लिए इस देश के आम आदमी को लाइन में लगना पड़ता है, बार-बार प्रमाण देना पड़ता है। राशन कार्ड चाहिए? काग़ज़।
पेंशन चाहिए? काग़ज़।
NRC हो या CAA — जनता से कहा गया, काग़ज़ दिखाओ। लेकिन सवाल उठता है —
जब जनता से काग़ज़ मांगे जाते हैं, तो सत्ता अपने काग़ज़ क्यों नहीं दिखाती?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर विवाद एक बार फिर सामने है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ़ कहा — प्रधानमंत्री की BA डिग्री 'निजी जानकारी' है, RTI में नहीं मिलेगी।
गुजरात यूनिवर्सिटी पहले ही कह चुकी है — MA की डिग्री गोपनीय है।
तो सवाल उठ रहा है — क्या जनता से काग़ज़ मांगने वाली सरकार खुद काग़ज़ छुपा सकती है?
"ज़रा पीछे चलते हैं।
2016 में RTI कार्यकर्ता नीरज शर्मा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से जानकारी मांगी —
1978 में BA की परीक्षा में पास हुए छात्रों की लिस्ट, जिसमें प्रधानमंत्री का नाम भी शामिल है।
CIC यानी सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन ने आदेश दिया — ये जानकारी दो।
लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी हाईकोर्ट चली गई।
अब 25 अगस्त 2025 को हाईकोर्ट ने CIC का आदेश खारिज कर दिया।
जज साहब बोले — शैक्षणिक रिकॉर्ड 'पर्सनल इंफॉर्मेशन' है, और RTI एक्ट की धारा 8(1)(j) के तहत ये नहीं दी जा सकती।
यानी जनता BA की डिग्री नहीं देख पाएगी।
गुजरात यूनिवर्सिटी पहले ही MA की डिग्री नहीं दिखा रही।
तो फिर मामला साफ़ है —
दो-दो यूनिवर्सिटी अपने 'महान छात्र नरेंद्र मोदी' की डिग्रियाँ छुपा रही हैं।
एक लोकतंत्र में, क्या प्रधानमंत्री की डिग्री जनता से छुपाना जायज़ है?
"अब इस पर प्रतिक्रियाएँ भी सामने आ रही हैं।
वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार लिखते हैं —
‘दिल्ली यूनिवर्सिटी B.A. की डिग्री नहीं दिखा रही।
गुजरात यूनिवर्सिटी M.A. की डिग्री नहीं दिखा रही।
दो-दो यूनिवर्सिटी अपने ‘महान छात्र’ की डिग्रियाँ छुपा रही हैं।
वोटर लिस्ट नहीं देंगे, CCTV फुटेज नहीं देंगे, चुनावी चंदे की डिटेल नहीं देंगे।
तो सवाल ये है कि कानून सिर्फ जनता पर लागू होगा या सत्ता पर भी?’
लोकगायिका नेहा सिंह राठौर व्यंग्य में गीत गाती हैं —
‘डिग्री नहीं है तो केतली दिखा दीजिए।
केतली नहीं है तो भीख मांगने वाला कटोरा दिखा दीजिए।
दिखाओ चौकीदारवा, आपन डिग्री दिखाओ…’
कॉमेडियन राजीव निगम कहते हैं —
‘क्या कारण है कि अपने भाइयों-बहनों से ही डिग्री छुपानी पड़े?
जहाँ दाल में काला होता है, वहीं छिपाने की ज़रूरत पड़ती है।’
पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी तंज कसती हैं —
‘एक विश्वविद्यालय की डिग्री, जो सार्वजनिक दस्तावेज़ है, मोदी के मामले में अति गोपनीय है।
और जज साहब के लिए तालियाँ!’
अब ये सिर्फ डिग्री विवाद नहीं रह गया है, ये पारदर्शिता और जवाबदेही का सवाल बन गया है।
"सवाल ये है —
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क्या प्रधानमंत्री जैसे पद पर बैठे इंसान की डिग्री जनता से छुपाना पारदर्शिता है?
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क्या जनता से काग़ज़ मांगने वाली सरकार अपने ही काग़ज़ को 'निजी' बता सकती है?
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RTI कानून, जो जनता का अधिकार है, क्या अब सिर्फ साधारण नागरिकों के लिए है — सत्ता के लिए नहीं?
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अगर सब कुछ साफ़ है, तो फिर छुपाया क्यों जा रहा है?
ये बहस सिर्फ मोदी की डिग्री की नहीं है।
ये बहस है — लोकतंत्र की, पारदर्शिता की, और जनता के हक़ की।"
"जनता पूछ रही है —
👉 NRC के लिए काग़ज़ दो, राशन के लिए काग़ज़ दो, पहचान के लिए काग़ज़ दो।
लेकिन जब जनता सत्ता से कहती है —
प्रधानमंत्री जी, अपनी डिग्री का काग़ज़ दिखा दीजिए,
तो जवाब आता है — 'ये निजी मामला है।'
लोकतंत्र में निजी और सार्वजनिक की ये परिभाषा कौन तय करेगा?
जनता से काग़ज़ मांगना अगर लोकतंत्र है…
तो जनता को काग़ज़ दिखाना भी लोकतंत्र ही है।
आज बहस का यही बड़ा सवाल है।
क्या कानून सिर्फ जनता पर लागू होगा या सत्ता पर भी?"
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