अवध से मगध की गूंज – क्या भाजपा की नींव हिलेगी?"

बिहार की सड़कों पर सैलाब क्यों उमड़ा है?
ये महज़ भीड़ है… या बदलाव की आहट?

राहुल गांधी… तेजस्वी यादव… अखिलेश यादव…
तीन चेहरे, तीन नाम…
और एक ही नारा — वोट का अधिकार!

अखिलेश कह रहे हैं — ‘हम अवध में जीते… अब मगध में भी जीतेंगे।’

तो क्या सचमुच अवध से उठी ये गूंज…
मगध की राजनीति में तूफ़ान ला देगी?
क्या ये तिकड़ी भाजपा की सत्ता की नींव हिला देगी?
या फिर यह भीड़, यह जुनून… चुनावी धूप ढलते ही छंट जाएगा?

intro

बिहार की सड़कों पर उमड़े जनसैलाब का मतलब क्या है?
क्या राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव की तिकड़ी…
सियासत की नई पटकथा लिख रही है?
क्या बिहार बदल रहा है?
या फिर यह सब सिर्फ़ भीड़, सिर्फ़ नारे और सिर्फ़ जुनून तक सीमित है?

देखिए… तस्वीर बदल रही है।
अखिलेश यादव अब "वोट अधिकार यात्रा" में शामिल हो चुके हैं।
और उन्होंने साफ़ कह दिया है –
"हम अवध में जीते हैं, अब मगध में भी जीतेंगे।"

यानी… उत्तर प्रदेश से उठी लड़ाई, अब बिहार की सरज़मीं पर दस्तक दे रही है।
राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव –
ये तीनों, हिंदी भाषी इलाक़ों के सबसे बड़े नुमाइंदे हैं।
और इन तीनों का एक मंच पर आना, एक यात्रा में शामिल होना…
क्या ये सिर्फ़ तस्वीर है?
या फिर भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी?

बिहार की सड़कों पर जो नज़ारा है,
वो केवल भीड़ नहीं है…
वो जुनून है, दीवानगी है, महब्बत है, ताक़त है।
वो नई सोच है… नया जज़्बा है…
हिम्मत है, ज़िद है और बेकरारी है।

लोग कह रहे हैं – बिहार को बदलाव चाहिए।
बिहार को राहुल-तेजस्वी चाहिए।
बिहार को INDIA चाहिए।
बिहार को मुकम्मल जहान चाहिए।

लेकिन सवाल यही है –
क्या बिहार वाकई बदलाव के लिए तैयार है?
या फिर यह सब चुनावी मौसम का जोश है?

अखिलेश यादव ने एक बात कही…
"Chronology समझिए।"

और यही असल मुद्दा है।

  • सबसे पहले… वोटर लिस्ट से नाम काटो।

  • उसके बाद… राशन कार्ड से नाम हटाओ।

  • फिर… जाति प्रमाणपत्र को ख़ारिज करो।

  • उसके बाद… आरक्षण पर हमला करो।

  • और आख़िर में… खेत, घर, ज़मीन से नाम मिटा दो।

यानी… यह कोई साधारण चुनावी लड़ाई नहीं है।
यह पहचान की लड़ाई है।
यह हक़ की लड़ाई है।
यह अस्तित्व की लड़ाई है।

अखिलेश का आरोप है कि भाजपा का मक़सद साफ़ है –
PDA… यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों की हक़मारी और मतमारी।

सवाल यह है –
क्या वाकई भाजपा का एजेंडा यही है?
क्या ग़रीब को सड़क पर लाने की साज़िश चल रही है?
और अगर यह सच है,
तो फिर जनता कब तक चुप रहेगी? अखिलेश ने कहा –

"अब भाजपा कभी नहीं जीत पाएगी।"

क्योंकि अब जनता जाग चुकी है।
वो अपना वोट बचाएगी…
डालेगी…
और सिर्फ़ डालकर ही नहीं रुकेगी।
वो फ़ैसला आने तक निगरानी रखेगी।

और जीत का प्रमाणपत्र लेकर ही मानेगी।
यानी… जब तक जीत का प्रमाण नहीं, तब तक आराम नहीं।

अब बड़ा सवाल यही है –
क्या राहुल-तेजस्वी-अखिलेश की तिकड़ी…
बिहार से भाजपा को सत्ता से बाहर कर पाएगी?
क्या ये "वोट अधिकार यात्रा" विपक्ष के लिए जीवनदान साबित होगी?
या फिर…
ये भीड़, ये जुनून…
चुनाव की गर्मी उतरते ही ठंडा पड़ जाएगा?

क्या यह यात्रा इतिहास बनाएगी?
या फिर इतिहास की धूल में गुम हो जाएगी? 

और इस सवाल का जवाब सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता देगी…बिहार देगा…और वक्त देगा।

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