2014 के बाद मोदी-शाह की बीजेपी ने नारा दिया – Mission South!
कहा गया—उत्तर और पश्चिम भारत की तरह अब दक्षिण भी भगवा रंग में रंग जाएगा!
लेकिन… क्या हुआ?
तेलंगाना में बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई,
आंध्र प्रदेश में उसका कोई नामलेवा नहीं,
तमिलनाडु में बीजेपी का वोट बढ़ा ज़रूर—but सीट? शून्य!
तो सवाल सीधा है—
क्या बीजेपी का Mission South फेल हो रहा है?
क्या दक्षिण भारत आज भी भाजपा से दूरी बनाए बैठा है?
और क्या यहां की क्षेत्रीय पहचान बीजेपी के राष्ट्रीय नैरेटिव पर भारी पड़ रही है?”
INTRO
क्या बीजेपी का Mission South सच में फेल हो रहा है?
तेलंगाना, आंध्र, तमिलनाडु… इन राज्यों का ग्राउंड मूड क्या कह रहा है?
2025 में जब बीजेपी पूरे देश में अपनी पकड़ और मज़बूत करने की कोशिश कर रही है—तब दक्षिण भारत अब भी भाजपा से दूरी क्यों बनाए हुए है?
आज इसी पर करेंगे बड़ा विश्लेषण।
“दोस्तों, बीजेपी ने 2014 और 2019 की जीत के बाद Mission South का ऐलान किया।
कहा गया—दक्षिण भारत को जीते बिना बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति अधूरी है।
लेकिन हकीकत ये है कि कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी अब तक किसी भी दक्षिणी राज्य में बड़ी ताक़त नहीं बन पाई।
2019 में बीजेपी को दक्षिण से 29 सीटें मिली थीं—उसमें से 25 सिर्फ़ कर्नाटक से थीं।
तमिलनाडु, आंध्र और केरल में तो खाता तक नहीं खुला।
“Associated Press की रिपोर्ट कहती है—दक्षिण भारत भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से दूरी बनाए हुए है।
लोग यहां विकास और सामाजिक बराबरी को प्राथमिकता देते हैं।
Business India लिखता है—Mission South अब तक सीटों में नतीजे नहीं दे पाया।
वहीं NDTV में अमित शाह ने कहा था—‘दक्षिण भारत में बीजेपी को बड़ी सफलता मिलने वाली है।’
यानी दावा बड़ा है, लेकिन जमीनी हकीकत उलट है।
“अब ज़रा सर्वे एजेंसियों की तरफ देखते हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए पोल्स ने कहा था—तमिलनाडु में बीजेपी को 5 सीटें, केरल में 2 सीटें मिल सकती हैं।
लेकिन नतीजों में बीजेपी खाली हाथ रही।
2025 तक का हाल ये है कि कोई बड़ा नया सर्वे यह नहीं दिखा रहा कि बीजेपी दक्षिण में गेमचेंजर बनने जा रही है।
हाँ, वोट शेयर बढ़ने की बातें हो रही हैं—तमिलनाडु में 3% से 10% तक—but सीटों में उसका असर अभी नज़र नहीं आ रहा।
“दक्षिण भारत की राजनीति बाकी भारत से अलग है।
यहाँ DMK, AIADMK, YSRCP, TRS (BRS) जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ गहराई तक जमी हुई हैं।
तमिल पहचान, तेलुगु अस्मिता और मलयाली प्रगतिशील राजनीति—ये सब बीजेपी के नैरेटिव से मेल नहीं खाते।
इसीलिए BJP को यहाँ वोट तो मिलते हैं, पर सत्ता तक पहुँचने में मुश्किल होती है।”
“तो अब बड़ा सवाल यही है—
क्या बीजेपी का Mission South महज़ एक नारा बनकर रह जाएगा?
क्या 2029 तक बीजेपी दक्षिण में अपनी पकड़ बना पाएगी?
या फिर यहां की राजनीति अब भी क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस के हाथ में ही रहेगी?
आपको क्या लगता है—बीजेपी दक्षिण में जगह बना पाएगी या ‘Mission South’ फेल हो चुका है?
अपनी राय कमेंट सेक्शन में ज़रूर लिखें।
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