“10 लाख की कार… पर 13 लाख टैक्स! आम आदमी खरीदे या सरकार का खज़ाना भरे?

 


सोचिए… 10 लाख की कार!

कागज़ पर कीमत सीधी-सादी लगती है — 10 लाख। लेकिन हक़ीक़त? गाड़ी नहीं, सरकार आपको टैक्स का पहाड़ बेच रही है।

“कार खरीदना चाहते हैं?
सपना है… गाड़ी अपनी हो, घर के सामने खड़ी हो, परिवार उसमें घूमे…
लेकिन हकीकत… सपना नहीं, टैक्स का बुरे सपने जैसा सच है।

10 लाख की कार।
सीधा हिसाब। लेकिन क्या वाक़ई?
सवाल ये है कि 10 लाख की गाड़ी आपको मिलती है 10 लाख में?
जवाब है — नहीं!

पहला झटका — 28% GST।
यानी 2 लाख 80 हज़ार सीधा सरकार की झोली में।

दूसरा झटका — 1% Cess।
तीसरा झटका — 16% Road Tax।

अब कार का दाम 10 लाख नहीं रहा…
सीधा बढ़कर हो गया 15 लाख रुपये।

लेकिन ठहरिए, खेल यहीं खत्म नहीं होता!
इस 15 लाख की कार को खरीदने के लिए आपकी कमाई कितनी होनी चाहिए?
लगभग 23 लाख।
क्यों?
क्योंकि 8 लाख रुपये आपकी जेब से पहले ही आयकर (Income Tax) बनकर निकल चुके होंगे।

यानि…
👉 कार की असली कीमत 10 लाख।
👉 टैक्स और टैक्स पर टैक्स जोड़कर कीमत 15 लाख।
👉 और इस 15 लाख की कार खरीदने के लिए आपको 23 लाख कमाने होंगे।

अब आप बताइए —
क्या आप कार खरीद रहे हैं?
या आप सरकार को टैक्स का पहाड़ चढ़ा रहे हैं?

जनता सवाल पूछ रही है:
👉 ‘कमाई हमारी, मेहनत हमारी… पर आधा से ज़्यादा किसका?’
👉 ‘क्या गाड़ी हमारी, या सरकार का खज़ाना?’

मिडल क्लास की सच्चाई यही है —
गाड़ी EMI पर और ज़िंदगी TAX पर।

आप सोचिए…
एक छोटी सी Alto कार, जिसकी कीमत 3.87 लाख है — उस पर टैक्स और चार्जेज़ जोड़ दीजिए।
GST, Cess, Road Tax, Insurance…
गाड़ी पर 2 लाख से भी ज्यादा टैक्स!
मतलब आधी गाड़ी सरकार ले गई।

SUV?
तो सीधा 50% तक टैक्स।
लक्ज़री कार?
20% Road Tax अलग से।
40 लाख की गाड़ी? सिर्फ़ रोड टैक्स 8 लाख!

तो सवाल यही है —
हम कार खरीदते हैं या टैक्स का पहाड़ ढोते हैं?

और फिर हमें समझाया जाता है —
‘अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, खपत बढ़ाइए, गाड़ी खरीदिए।’
अरे भाई, जब आपकी जेब में टैक्स ही टैक्स बचा है, तो आप गाड़ी खरीदेंगे कैसे?
चलाएंगे कैसे?
ज़िंदगी चलाएंगे कैसे?

ये है असली कहानी इस देश के टैक्स सिस्टम की।
जहाँ हर कमाई पर टैक्स…
हर खर्चे पर टैक्स…
गाड़ी पर टैक्स… और गाड़ी के टैक्स पर भी टैक्स।

आख़िर जनता पूछे —
‘कार नहीं चाहिए साहब… थोड़ा इंसाफ़ चाहिए।’

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