कांवड़ यात्रा: जब धर्म का उपयोग सत्ता के लिए होता है

 


कांवड़ यात्रा: जब धर्म का उपयोग सत्ता के लिए होता है

✍️ विशेष रिपोर्ट | Vishwaprem News


"जब सरकार से सवाल उठने लगते हैं,
तो सत्ता धर्म का लबादा ओढ़ लेती है।
और जब जनता गुस्से में होती है,
तो उसे मंदिर भेज दिया जाता है।"

भारत एक आस्थावान देश है। यहां धर्म जीवन का हिस्सा है —
लेकिन जब वही धर्म राजनीतिक रणनीति बन जाए,
तो सवाल उठना जरूरी हो जाता है।

आज देश में फिर सावन आया है…
और सड़कों पर भगवा लहराने लगा है।
कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है —
DJ बज रहे हैं, ट्रक नाच रहे हैं,
पुलिस तैनात है, CCTV निगरानी कर रहे हैं,
हर मोड़ पर VIP ट्रीटमेंट की तैयारी है।

लेकिन सवाल ये है — क्या यही धर्म है? या ये कुछ और है?


🔍 बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य… सब पीछे छूट गए

  • देश में लाखों युवा नौकरी के इंतज़ार में उम्र पार कर चुके हैं।

  • सरकारी नौकरियों की भर्तियों में देरी आम हो चुकी है।

  • सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं, बच्चे निजी स्कूलों की फीस नहीं दे पा रहे।

  • अस्पतालों में इलाज के नाम पर खानापूर्ति चल रही है।

और इन सबके बीच…

"बेरोज़गारों की कतारें गायब हैं,
स्कूलों के मुद्दे नहीं हैं,
अस्पताल की हालत कोई नहीं पूछता…
लेकिन कांवड़ यात्रा की तैयारी वैसी जैसे ओलंपिक हो!"

पिछले साल उत्तर भारत में कांवड़ यात्रा के लिए 60 हज़ार से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई।
हज़ारों CCTV कैमरे, ड्रोन, मेडिकल कैंप, सफाई अभियान —
मानो कोई अंतरराष्ट्रीय इवेंट हो।


🧠 ध्यान हटाओ नीति: सरकार का नया हथियार

जब जनता सवाल पूछती है:

"रोज़गार कब मिलेगा?"
"स्कूल क्यों बंद हैं?"
"हॉस्पिटल में डॉक्टर क्यों नहीं?"

तो सत्ता का जवाब होता है:

"अभी तो सावन है भाई… पहले शिवभक्ति कर लो।"

और जनता भी धीरे-धीरे कहने लगती है:
"सब भोलेनाथ की मर्जी से हो रहा है।"

धर्म, जो कि व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण और समाजसेवा की ओर ले जाता है —
उसे अब एक राजनीतिक कवच बना दिया गया है।


📚 वेद क्या कहते हैं आस्था के बारे में?

ऋग्वेद (10.151.4):

"श्रद्धा यज्ञे श्रद्धा दाने, श्रद्धा हविषि जुह्वति।
श्रद्धया कल्पितं विश्वं, श्रद्धया ह्युपतिष्ठति॥"

➡️ आस्था (श्रद्धा) सृष्टि की बुनियाद है —
लेकिन ये चुप होती है, शांत होती है, सेवा में लगती है।

यजुर्वेद (19.30):
➡️ यदि श्रद्धा के बिना भगवान को अर्पित किया गया —
तो वह निरर्थक है। केवल दिखावे से कुछ नहीं होता।

अथर्ववेद (19.62.1):
➡️ श्रद्धा से ही विवेक, ज्ञान और आत्मा की ऊंचाई प्राप्त होती है।

तो फिर सवाल उठता है —
जो श्रद्धा DJ, ट्रक, QR कोड और कांच पर चलने में बदल गई है,
क्या वो वेदों की श्रद्धा है?
या फिर राजनीति की एक और परत?


📸 कांवड़ यात्रा या कंट्रोल यात्रा?

कांवड़ यात्रा अब एक धार्मिक अनुष्ठान कम और राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन ज्यादा बन गई है।

  • पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात हैं — लेकिन आम जनता के लिए नहीं, कांवड़ियों के लिए।

  • VIP रूट बनाए जा रहे हैं — लेकिन सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए।

  • बच्चे स्कूल न जाएं चलेगा, पर कोई कांवड़ यात्रा में बाधा न आए।

यही है वो संतुलन जो आज का सिस्टम चाहता है —
जनता का गुस्सा कम हो, और सरकार सवालों से बच जाए।


🙏 क्या ये आस्था है… या अजेंडा?

धर्म कभी किसी को डराने का माध्यम नहीं रहा।
धार्मिक यात्राएं समाज को जोड़ने का माध्यम थीं —
ना कि ट्रैफिक जाम और ध्वनि प्रदूषण का कारण।

जब भक्ति दिखावे में बदल जाती है,
और श्रद्धा सत्ता के लिए मोहरा बन जाती है —
तो धर्म भी रोता है,
और भगवान भी।


✍️ निष्कर्ष: आस्था का आदर, अंधभक्ति का विरोध जरूरी है

धर्म को बचाना है —
तो उसे राजनीति से अलग करना होगा।
कांवड़ यात्रा जैसी परंपराएं अगर सच्चे भाव से हों —
तो वो समाज में ऊर्जा और सेवा ला सकती हैं।

लेकिन जब इनका इस्तेमाल जनता का ध्यान भटकाने के लिए हो —
तो ये धर्म नहीं, ढोंग और धोखा बन जाती हैं।

“अगर हम सरकार से सवाल पूछना छोड़ देंगे,
और भगवान को दोष देने लगेंगे —
तो एक दिन मंदिर भी अस्पताल की तरह वीरान नज़र आएंगे।”


📢 आपकी राय क्या है?

क्या आज की कांवड़ यात्रा सच्ची श्रद्धा है?
या सरकार का नया पब्लिक डिस्ट्रैक्शन प्रोग्राम?

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