नूंह में जालाभिषेक यात्रा से पहले एहतियात के तौर पर स्कूल बंद और इंटरनेट सेवा निलंबित – क्या यह धर्म की सुरक्षा है या डर का प्रशासनिक फैसला?

 


नूंह में जालाभिषेक यात्रा से पहले एहतियात के तौर पर स्कूल बंद और इंटरनेट सेवा निलंबित – क्या यह धर्म की सुरक्षा है या डर का प्रशासनिक फैसला?


नूंह, हरियाणा – 14 जुलाई 2025।
हरियाणा के नूंह ज़िले में एक बार फिर वही तस्वीर सामने आई है — धार्मिक यात्रा, सुरक्षा की चुनौती, और इंटरनेट पर तालाब्रज मंडल जलाभिषेक यात्रा, जो सावन के सोमवार को निकाली जानी थी, उसे लेकर ज़िला प्रशासन पूरी तरह अलर्ट मोड में है।

लेकिन इस बार अलर्ट का मतलब है –
📵 इंटरनेट सेवा बंद
📴 SMS सेवा सस्पेंड
🏫 स्कूलों में छुट्टी

किसी युद्ध जैसी तैयारी... मगर सवाल है – किसके खिलाफ?


🔁 पिछले साल की घटनाएं – पृष्ठभूमि

आपको याद होगा, 2023 में इसी यात्रा के दौरान नूंह में सांप्रदायिक तनाव भड़क उठा था। हिंसा, पत्थरबाज़ी, आगज़नी और कई गिरफ्तारी ने नूंह को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया था।

इस बार प्रशासन कोई रिस्क नहीं लेना चाहता। इसलिए:

  • 13 जुलाई रात 9 बजे से 14 जुलाई रात 9 बजे तक मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद।

  • बैंकिंग व OTP आधारित जरूरी सेवाएं चालू रहेंगी, लेकिन Bulk SMS और सोशल मीडिया नहीं चलेगा।

  • सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में एक दिन की छुट्टी घोषित कर दी गई है।


📢 प्रशासन की दलील

डीसी दिनेश यादव और एसपी नरेंद्र बिजारणिया का कहना है कि यह एक सावधानीपूर्वक फैसला है। उनका तर्क है:

“शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ये कदम जरूरी हैं। कोई अफवाह न फैले, इसके लिए डिजिटल माध्यमों को रोका गया है।”


🤔 लेकिन सवाल उठते हैं...

  1. क्या हर बार इंटरनेट बंद करना ही समाधान है?
    क्या प्रशासन में इतनी क्षमता नहीं कि वह बिना डिजिटल ब्लैकआउट के भी शांति कायम रख सके?

  2. क्या इससे बच्चों की पढ़ाई और सामान्य जीवन प्रभावित नहीं होता?
    खासकर वे छात्र जो ऑनलाइन क्लास या तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए यह छिपा हुआ नुकसान है।

  3. और सबसे बड़ा सवाल – क्या भय के कारण धार्मिक यात्राएं निकालना बंद हो जाएंगी? या फिर डर के साथ निकलेंगी?


🧭 समाज की प्रतिक्रिया – बंटा हुआ समाज

कुछ लोग प्रशासन के फैसले को "साहसिक और व्यावहारिक" बता रहे हैं। उनका मानना है कि शांति बनी रहना जरूरी है, चाहे इसके लिए कुछ असुविधाएं क्यों न उठानी पड़ें।

वहीं कुछ लोग इसे "अधिकारों का हनन" और "डिजिटल कर्फ्यू" कह रहे हैं।

“किसी अपराध से पहले ही सज़ा क्यों दी जा रही है पूरे जिले को?” — ऐसा सवाल अब आम हो चला है।


🧩 निष्कर्ष – सुरक्षा बनाम स्वतंत्रता की जंग

नूंह में आज जो हो रहा है, वह सिर्फ एक जिले की कहानी नहीं है — यह पूरे देश में धर्म, सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच चल रही खींचतान का उदाहरण है।

ब्रज मंडल जलाभिषेक यात्रा निकलेगी — लेकिन डर की निगरानी में
स्कूल बंद रहेंगे — लेकिन शिक्षा की कीमत पर
इंटरनेट बंद रहेगा — लेकिन संवाद की खामोशी में


🎙️ आपकी राय क्या है?

क्या प्रशासन का ये फैसला जायज़ है? या आपको लगता है कि समाज को अब डिजिटल अधिकारों को भी प्राथमिकता देनी चाहिए?

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