तब्बू: समय को मात देती वो सितारा जिसने एक ही अभिनेता की मां, पत्नी और प्रेमिका बनकर भारतीय सिनेमा की परिभाषा बदल दी
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तब्बू: समय को मात देती वो सितारा जिसने एक ही अभिनेता की मां, पत्नी और प्रेमिका बनकर भारतीय सिनेमा की परिभाषा बदल दी
मुंबई। भारतीय सिनेमा में अगर किसी अभिनेत्री ने अपनी अभिनय कला, हिम्मत भरे निर्णयों और समय से आगे सोचने की क्षमता से खुद को एक विरल उदाहरण के रूप में स्थापित किया है, तो वो हैं —तब्बू। उनका असली नाम तबस्सुम फातिमा हाशमी है। तीन दशकों से भी ज़्यादा लंबे करियर में टैबू ने बॉलीवुड से लेकर दक्षिण भारतीय फिल्मों तक ऐसा अभिनय किया है जो पीढ़ियों के बीच की सीमाओं को मिटा देता है।
लेकिन जो बात उन्हें बाकी अभिनेत्रियों से अलग और अद्वितीय बनाती है, वह है एक ही अभिनेता—नंदामुरी बालकृष्ण—के साथ मां, पत्नी और प्रेमिका जैसे तीन अलग-अलग किरदार निभाने की उनकी दुर्लभ यात्रा।
बालकृष्णा ट्रायोलॉजी: सिनेमा में दुर्लभ प्रयोग
वर्ष 2002 में आई तेलुगु फिल्म ‘चेनकेशव रेड्डी’ में तब्बू ने एक ही फिल्म में बालकृष्णा की पत्नी और मां दोनों की भूमिकाएं निभाईं। यह एक एक्शन-ड्रामा फिल्म थी जिसमें बालकृष्णा ने डबल रोल किया था। फिर, 2008 में फिल्म ‘पांडुरंगाडु’ में टैबू एक बार फिर बालकृष्णा के साथ नजर आईं, इस बार एक प्रेमिका के रूप में।
यह कास्टिंग न केवल उनके अभिनय कौशल का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारतीय सिनेमा कैसे पीढ़ियों की सीमाओं को तोड़ता है — कभी-कभी तो उन्हें पूरी तरह नकार देता है।
बचपन से लेकर वैश्विक मंच तक की यात्रा
तबू ने महज 11 साल की उम्र में 1982 की फिल्म ‘बाजार’ में एक छोटी सी भूमिका से अपने अभिनय जीवन की शुरुआत की थी। इसके बाद 1991 में तेलुगु फिल्म ‘कुली नं. 1’ में वेंकटेश के साथ उन्हें पहली बार मुख्य भूमिका में देखा गया।
उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘प्रेम’ होनी थी, लेकिन देरी के चलते ‘पहला पहला प्यार’ (1994) पहले रिलीज़ हो गई। इसी वर्ष उन्होंने अजय देवगन के साथ फिल्म ‘विजयपथ’ में अभिनय किया, और दोनों की जोड़ी ने लंबे समय तक सिल्वर स्क्रीन पर साथ काम किया।
हर किरदार में गहराई, हर किरदार में चुनौती
तब्बू के करियर को अगर एक शब्द में परिभाषित करना हो, तो वह होगा—‘परतदार’।
फिल्म ‘माचिस’ में विद्रोही वीरन, ‘चांदनी बार’ में बार डांसर, ‘हैदर’ में एक जटिल मां और ‘अंधाधुन’ में नैतिक रूप से धुंधली सीमाओं वाली सिमी—हर भूमिका में टैबू ने स्टीरियोटाइप्स को चुनौती दी। उनकी भूमिका कभी सिर्फ "नायिका" नहीं रही, वो किरदारों को जीती हैं — और यही वजह है कि उन्हें दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया है और वो आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे सम्मानित अभिनेत्रियों में शुमार हैं।
न शादी, न परिभाषा – फिर भी संप्रभु
तब्बू की उम्र आज 53 वर्ष है, और वे अब तक अविवाहित हैं। यह तथ्य अक्सर मीडिया की सुर्खियों में रहता है, लेकिन कभी भी उनके करियर को प्रभावित नहीं करता। उन्होंने कभी भी अपने निजी जीवन को सुर्खियों में लाकर पेश नहीं किया — उनका फ़ोकस सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर रहा।
OTT प्लेटफ़ॉर्म्स से लेकर हॉलीवुड में ‘Dune: Prophecy’ जैसी परियोजनाओं तक, टैबू ने हर माध्यम में अपने आप को साबित किया है। उनका करियर इस बात का उदाहरण है कि एक महिला कलाकार सिर्फ सुंदरता या ग्लैमर से नहीं, बल्कि अपनी प्रतिभा और निर्णयों से भी टिकी रह सकती है।
अंत में: एक जीवित किंवदंती
तब्बू न सिर्फ एक अभिनेत्री हैं, बल्कि एक संवेदना हैं। उनकी यात्रा ये दिखाती है कि सिनेमा में उम्र, किरदार और परंपराएं सिर्फ बाधाएं नहीं होतीं — अगर कलाकार में दम हो तो वे इन्हें तोड़ सकते हैं।
एक ही अभिनेता की मां, पत्नी और प्रेमिका बनना महज अभिनय का कौशल नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति और पेशेवर निपुणता का प्रमाण है। टैबू ने जो किया, वो सिर्फ एक महिला कलाकार ही नहीं, भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अद्वितीय अध्याय है।
– रिपोर्ट: Kuldeep Khandelwal |
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