सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, ईशा फाउंडेशन को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, ईशा फाउंडेशन को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट के उस महत्वपूर्ण आदेश को बरकरार रखा, जिसमें ईशा फाउंडेशन को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी गई थी। यह फैसला उन आरोपों के बीच आया था, जिनमें कहा गया था कि ईशा फाउंडेशन ने कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पहाड़ियों में बिना पर्यावरणीय मंजूरी के निर्माण कार्य किया है। यह मामला भारतीय पर्यावरण कानून और फाउंडेशन की गतिविधियों को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ था।
मामला क्या था?
ईशा फाउंडेशन, जो कि योग गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी संगठन है, ने 1990 के दशक के अंत में कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पहाड़ियों पर एक विशाल ध्यान केंद्र और आश्रम का निर्माण शुरू किया था। हालांकि, 2006 में केंद्र सरकार द्वारा एक नया आदेश जारी किया गया, जिसमें 20,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में किसी भी निर्माण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक कर दी गई थी। इसके बावजूद, ईशा फाउंडेशन ने यह दावा किया कि उसका केंद्र शैक्षणिक गतिविधियों के अंतर्गत आता है, और इस प्रकार वह पर्यावरणीय मंजूरी से मुक्त था।
मद्रास हाई कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के इस तर्क को स्वीकार किया और कहा कि इसका केंद्र एक शैक्षणिक संस्थान के रूप में कार्य करता है, और इसलिए इसे पर्यावरणीय मंजूरी से छूट मिलनी चाहिए। इसके बाद तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस फैसले को चुनौती दी और मामले को सर्वोच्च न्यायालय में लाया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि ईशा फाउंडेशन का काम शैक्षणिक गतिविधियों के तहत आता है, और इस कारण उसे पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी जा सकती है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश अन्य मामलों में मिसाल के रूप में नहीं लिया जा सकता और भविष्य में किसी भी प्रकार के निर्माण के लिए उचित पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि ईशा फाउंडेशन को भविष्य में किसी प्रकार के निर्माण कार्य की आवश्यकता होती है, तो उसे संबंधित प्राधिकरण से पूर्व अनुमति प्राप्त करनी होगी। इसके अलावा, कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि फाउंडेशन को भविष्य में पर्यावरणीय मानदंडों का पालन करना होगा।
फैसले के प्रभाव
यह निर्णय ईशा फाउंडेशन के लिए एक बड़ी राहत के रूप में सामने आया है। यह फाउंडेशन के लिए एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि यह न केवल कानूनी जटिलताओं से बचने में मदद करता है, बल्कि इसके साथ ही यह पर्यावरणीय मंजूरी के बिना किए गए कामों को वैध ठहराने का अवसर भी प्रदान करता है।
हालांकि, अदालत ने यह सुनिश्चित किया है कि भविष्य में फाउंडेशन को पर्यावरणीय नियमों और कानूनों का पालन करना होगा, और कोई भी निर्माण कार्य बिना उचित मंजूरी के नहीं किया जाएगा। यह आदेश यह संकेत देता है कि देश में पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है, और सभी संस्थाओं को इन नियमों का पालन करना होगा।
ईशा फाउंडेशन की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद, ईशा फाउंडेशन ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि वह हमेशा पर्यावरणीय और कानूनी मानदंडों का पालन करता आया है। फाउंडेशन ने यह भी आश्वासन दिया कि भविष्य में कोई भी निर्माण कार्य शुरू करने से पहले आवश्यक मंजूरी प्राप्त की जाएगी। इसके साथ ही, फाउंडेशन ने इस फैसले के बाद अपनी जिम्मेदारियों को और अधिक गंभीरता से निभाने का वादा किया है, ताकि वह किसी भी प्रकार के पर्यावरणीय नुकसान से बच सके।
ईशा फाउंडेशन ने यह भी कहा कि वह अपने कार्यों के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है, और उसे उम्मीद है कि इस फैसले से फाउंडेशन के कार्यों में और अधिक पारदर्शिता आएगी।
समाज में गूंज
इस फैसले को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया, क्योंकि उनका मानना है कि ईशा फाउंडेशन जैसे संस्थान जो शैक्षणिक और सामाजिक कार्य कर रहे हैं, उन्हें कुछ रियायत मिलनी चाहिए। वहीं, पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर चिंता जताई है, क्योंकि उनका कहना है कि बिना पर्यावरणीय मंजूरी के कोई भी निर्माण कार्य करना पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की गारंटी दी है कि भविष्य में ईशा फाउंडेशन को पर्यावरणीय कानूनों का पालन करना होगा, और यह आदेश कोई मिसाल नहीं बनेगा, इससे यह साफ हो गया कि भारतीय न्यायपालिका पर्यावरणीय सुरक्षा के मामले में बिल्कुल गंभीर है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे भारतीय न्यायपालिका शैक्षणिक और सामाजिक संस्थाओं के काम को समर्थन देती है, लेकिन साथ ही पर्यावरणीय सुरक्षा और कानूनी मानदंडों का पालन करने की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित करती है। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि कोई भी संस्था या संगठन, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं हो सकता।
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