मुस्लिम बहुल इलाकों में मिली हार के बाद तिलमिलाई सपा, उठाए गंभीर सवाल ?

 मुस्लिम बहुल इलाकों में मिली हार के बाद तिलमिलाई सपा, उठाए गंभीर सवाल ?



उत्तर प्रदेश में हाल ही में 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। इन नतीजों ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। बीजेपी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को 2 और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को 1 सीट मिली। यह उपचुनाव आने वाले 2027 के विधानसभा चुनावों का "सेमीफाइनल" कहा जा रहा है, हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इस दावे को खारिज कर रहे हैं, क्योंकि प्रदेश में 400 से अधिक विधानसभा सीटें हैं, जिनके मुकाबले 9 सीटों का महत्व सीमित है।

मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की चौंकाने वाली जीत ?

चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की अप्रत्याशित जीत की हो रही है। कुंदरकी सीट, जिसे सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क का गढ़ माना जाता था, वहां भाजपा के ठाकुर रामवीर सिंह ने 98,000 से अधिक वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। वहीं, सपा के हाजी रिजवान को करारी हार का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार, सीसामऊ और गाजियाबाद सदर सीटों पर भी भाजपा ने दमदार प्रदर्शन किया।

विशेष रूप से कुंदरकी सीट पर भाजपा की जीत ने सपा को झकझोर दिया है। यह सीट 31 सालों से भाजपा के लिए चुनौती बनी हुई थी, लेकिन इस बार की बंपर जीत ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं।

सपा ने उठाए पुलिस प्रशासन पर सवाल ?

इन नतीजों के बाद सपा ने आरोप लगाया कि मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदाताओं को डराने-धमकाने और उनके वोटिंग अधिकारों को बाधित करने का काम हुआ। सपा प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन ने भाजपा के पक्ष में काम किया। कई इलाकों में मतदाताओं को वोट डालने से रोका गया और पहचान पत्रों की सख्त जांच के नाम पर मुस्लिम समुदाय को परेशान किया गया।

सपा प्रवक्ता ने यह भी दावा किया कि भाजपा को उन इलाकों में भारी वोट मिले, जहां परंपरागत रूप से उसे समर्थन नहीं मिलता था। कुंदरकी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, "जब सपा और बसपा के उम्मीदवार कड़ी टक्कर देते थे, तब भी भाजपा इस सीट पर जीत नहीं पाती थी। अब अचानक भाजपा का उम्मीदवार इतने बड़े अंतर से कैसे जीत गया? यह जांच का विषय है।"

बीजेपी का जवाब ?

वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे सपा की हताशा करार दिया। भाजपा नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता और विकास कार्यों के दम पर पार्टी ने यह जीत हासिल की है। पार्टी ने सपा के आरोपों को "गैर-जरूरी बहानेबाजी" बताया।

क्या कहता है राजनीतिक विश्लेषण?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपचुनाव के नतीजों में भाजपा की जीत को सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व और उनकी नीतियों का समर्थन माना जा सकता है। दूसरी ओर, सपा के लिए यह आत्ममंथन का समय है। मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा की पकड़ मजबूत होने से सपा को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।

2027 विधानसभा चुनाव पर असर ?

हालांकि, यह उपचुनाव 2027 के विधानसभा चुनावों का ट्रेलर नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसके नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा अपने चुनावी संगठन को मजबूत कर रही है। वहीं, सपा और अन्य विपक्षी दलों को अपने गढ़ों पर पुनर्विचार करना होगा।

इन नतीजों ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब आने वाले दिनों में तलाशा जाएगा।

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