"किसान आंदोलन: दिशा, दशा और राजनीतिक उथल-पुथल ?

"किसान आंदोलन: दिशा, दशा और राजनीतिक उथल-पुथल ?


नमस्कार मित्रों,
आज हम बात करेंगे पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन की। यह आंदोलन, जिसने कभी लाखों किसानों और समर्थकों को एकजुट किया था, अब अपने उद्देश्य और दिशा को लेकर गहरे विवादों में फंसता दिख रहा है।

आंदोलन की बदलती दशा:
हरियाणा चुनाव में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत के बाद आंदोलन के प्रमुख चेहरे जैसे गुरनाम सिंह चढूनी और अन्य किसान नेताओं का आत्मविश्वास घटता नजर आ रहा है।
चढूनी, जो हरियाणा किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं, चुनाव में पेहवा हलके से केवल 1200-1300 वोट ही प्राप्त कर सके। यह करारी हार उनके सख्त तेवरों में कमी लाने का कारण बनी है। अब उनके बयान तो आ रहे हैं, लेकिन उनमें वह पुरानी धार नहीं दिख रही है।

दूसरी ओर, युवा नेता अभिमन्यु कोहाड़ चुनाव के नतीजों से गहरे सदमे में हैं। उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स में साफ झलकता है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव ने उनका मनोबल बुरी तरह तोड़ दिया है। ऐसे में आंदोलन की पुरानी जोश और ऊर्जा कमजोर पड़ती दिख रही है।

नेताओं के विरोधाभासी कदम:
अब बात करते हैं किसान नेताओं के हालिया फैसलों की।

  • जगजीत सिंह दल्लेवाल ने 26 नवंबर से आमरण अनशन शुरू करने की घोषणा की है। हालांकि, सूत्र बताते हैं कि अन्य किसान नेताओं ने उन्हें यह कदम न उठाने की सलाह दी थी।
  • दूसरी ओर, सरवन सिंह पंधेर ने 6 दिसंबर से दिल्ली कूच का ऐलान किया है। कहा जा रहा है कि यह कदम उन्होंने इसलिए उठाया ताकि आंदोलन का श्रेय दल्लेवाल न ले जाएं।

इन दोनों फैसलों में स्पष्ट रूप से अंतर्विरोध और निराशा झलकती है।

किसान आंदोलन की राजनीति का शिकार:
आम किसानों और समर्थकों का कहना है कि यह आंदोलन गैर-राजनीतिक था, लेकिन नेताओं का राजनीतिक एजेंडा अब साफ झलकने लगा है। आंदोलन में बैठे किसान और उनके समर्थक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनका सवाल है:
अगर आंदोलन से इस तरह पीछा छुड़ाना था, तो आम जनता को इतने लंबे समय तक परेशान क्यों किया गया?

आगे की राह:
आंदोलन में फूट और नेताओं की निराशा के बीच आम किसानों को अपने भविष्य की दिशा खुद तय करनी होगी। सवाल यह उठता है कि क्या यह आंदोलन अपने मूल उद्देश्य को पुनः पा सकेगा, या यह पूरी तरह राजनीतिक खींचतान का शिकार बनकर रह जाएगा?

मित्रों, आपकी क्या राय है? क्या किसान आंदोलन को नया नेतृत्व और दिशा मिल सकती है? अपने विचार हमें कमेंट में जरूर बताएं।
जय जवान, जय किसान।

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