महाराष्ट्र में एमवीए जीतेगी या महायुति? चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है जानिए वो प्रमुख फैक्टर जो तय करेंगे हार-जीतदे
महाराष्ट्र में एमवीए जीतेगी या महायुति? चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है जानिए वो प्रमुख फैक्टर जो तय करेंगे हार-जीतदे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और इस बार की लड़ाई महायुति (भाजपा-शिवसेना-एनसीपी गुट) और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के बीच है। बीते पांच सालों में राज्य की राजनीति में उथल-पुथल ने कई नए समीकरणों को जन्म दिया। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विभाजन ने राजनीतिक संतुलन को बदल दिया, और अब हर गठबंधन के लिए यह चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि अस्तित्व और पहचान की जंग बन चुका है। महाराष्ट्र में पिछले छह चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। इस बार की लड़ाई और भी दिलचस्प है क्योंकि राजनीतिक विभाजन और व्यक्तिगत वफादारियों ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को और जटिल बना दिया है। आइए, देखते हैं कि कौन-कौन से प्रमुख फैक्टर हैं जो इस चुनाव में जीत या हार का निर्धारण करेंगे। 2019 में बनी महा विकास अघाड़ी ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। महाराष्ट्र की 48 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज कर एमवीए ने अपनी ताकत दिखाई। विधानसभा के आंकड़ों के अनुसार, एमवीए ने 160 सीटों पर बढ़त बनाई थी, जो बहुमत के लिए आवश्यक 145 सीटों से कहीं अधिक है। हालांकि, यह भी सच है कि राज्य चुनावों में स्थानीय मुद्दे अधिक हावी रहते हैं। शिवसेना और एनसीपी के विभाजन और चुनाव आयोग द्वारा उनके चुनाव चिन्ह छीनने से जनता में ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति बढ़ी है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह भावना खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में वोटिंग पैटर्न को प्रभावित कर सकती है। एमवीए को मराठा, मुस्लिम और दलित वोट बैंक का समर्थन प्राप्त है। 2024 लोकसभा चुनाव में इन समुदायों का एकीकरण एमवीए की जीत का बड़ा कारण बना। मराठवाड़ा में भाजपा को केवल एक सीट मिली, जबकि शेष सीटें एमवीए के खाते में गईं। महायुति के पास तीन मजबूत नेता हैं—मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, अजीत पवार, और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस। तीनों नेताओं का अलग-अलग वोट बैंक और प्रशासनिक कौशल है। महायुति ने सीटों के बंटवारे को लेकर स्पष्ट रणनीति बनाई है: भाजपा 149 सीटों पर, शिंदे गुट 81 पर, और पवार गुट 56 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। महायुति ने अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का आक्रामक प्रचार किया है। *लाडली बहना योजना*, जिसमें महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये दिए जा रहे हैं, सहित कई योजनाएं भावनात्मक जुड़ाव पैदा कर रही हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रचार ने कई वोटर्स को आकर्षित किया है। महायुति ने एमवीए के आरोपों का जवाब देने के साथ-साथ विपक्ष के अभियान को कमजोर किया है। खासतौर पर भाजपा ने संविधान बदलने जैसे आरोपों को सिरे से खारिज किया है और अपने प्रदर्शन का उल्लेख करते हुए आत्मविश्वास दिखाया है। राज्य की जनता अभी भी शिवसेना और एनसीपी में हुए विभाजन से उभरे विश्वासघात को लेकर सवालों से जूझ रही है। वहीं, महायुति की योजनाओं और एमवीए के गठबंधन की वैचारिक एकता के बीच मतदाता विभाजित नजर आ रहे हैं। यह चुनाव केवल सत्ता के समीकरणों को नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के राजनीतिक भविष्य को भी बदल सकता है। दोनों गठबंधन अब जनता को लुभाने के लिए अपने-अपने पत्ते खेल रहे हैं।
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