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विद्यारानी के चुनाव से किसानों की होती दूरी ने कर दी मुश्किल खड़ी?
(लेखक: कुलदीप खंडेलवाल)
नरवाना, जो लंबे समय से इनैलो का गढ़ माना जाता है, इस बार चुनाव में विद्यारानी के लिए राह आसान नजर नहीं आ रही है। विद्यारानी का चुनाव सहानुभूति के आधार पर शुरू हुआ था, लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं। चुनावी मैदान में चुनौतियां विद्यारानी के सामने सिर उठाए खड़ी हैं। नरवाना के किसान, जो क्षेत्र का सबसे बड़ा वोट बैंक हैं, अब सतर्क हो गए हैं। एक बार के धोखे ने उन्हें इतना सतर्क कर दिया है कि वे अब लस्सी को भी फूंक-फूंक कर पीने को मजबूर हैं। किसान, जो पहले इनैलो के मजबूत समर्थक थे, अब विद्यारानी से दूरी बना रहे हैं, और इसकी गूंज गली-नुक्कड़ों तक सुनाई दे रही है।
नरवाना में चुनावी चर्चा गरम है कि मैदान में विद्यारानी के अलावा सतबीर दबलैन और कृष्ण बेदी भी हैं, और तीनों ही मजबूत दावेदार हैं। किसान, जिन पर भाजपा और जजपा के राज में लाठीचार्ज, आंसू गैस और गोलियों की बौछार हुई थी, उन्हें यह सब भूला नहीं है। सबसे बड़ा धोखा उन्हें तब लगा, जब दुष्यंत चौटाला, जो कभी भाजपा को किसान विरोधी कहता था, खुद ही भाजपा का साथी बन गया। इसी वजह से किसानों को विद्यारानी के जीतने के बाद भाजपा के साथ जाने का डर सता रहा है।
विपक्ष में बैठेंगी या भाजपा के साथ जाएंगी?
इस चुनावी माहौल में चर्चा इस बात की भी है कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है, तो इनैलो विपक्ष में बैठेगी। नरवाना के लोग विपक्ष में बैठने के नुकसान को पहले ही भुगत चुके हैं और इसलिए वे फिर से उसी स्थिति में नहीं जाना चाहते। इस परिस्थिति ने चुनावी समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है और विद्यारानी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।
पिछले दो दिनों में माहौल में तेजी से बदलाव देखने को मिला है। जनता कह रही है कि इस बदले हुए माहौल का असर और भी गहरा हो सकता है अगर रणदीप सुरजेवाला इसमें अपनी रणनीति का तड़का लगाते हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि विद्यारानी अपनी चुनावी रणनीति में क्या बदलाव करती हैं ताकि वह इस पिछड़ते चुनाव में फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर सकें।
आखिरकार, चुनावी नतीजे समय के गर्भ में छिपे हैं। अब यह देखना होगा कि विद्यारानी के लिए यह दूरी चुनावी हार का कारण बनेगी या वह किसानों के बीच अपनी पैठ फिर से बना पाएंगी।
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