किसान नेता क्या' अपने मुद्दों से भटके या किसान नेताओं को आ गई अकल ?

 किसान नेता क्या अपने मुद्दों से भटके या किसान नेताओं को आ गई अकल ? राजनीतिक दौड़ लगाने के बाद कुछ किसान नेता राजनीतिक मुद्दे तो कुछ जमीनी मुद्दो के तलाश में हैं । कुछ नेताओं को तो अभी भी आंदोलन और सड़क ही रास आ रहा चाहे आम जनता जाये भाड़ में


साथियों आज हम बात करेंगें किसानों की, किसानों के असली मुद्दों की और किसान आंदोलन में घुस रही राजनीति की। आज हम सबसे पहले बात करेंगें पंजाब में किसान नेताओं द्वारा उठाये गये मुद्दे की। साथियों 17 अगस्त को जब संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बड़े ही सिनीयर किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल जोकि पानी के मुद्दे पर काफी मुखर है और उनकी बनाई योजना के अनुसार पंजाब सरकार को अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा तो लगा कि पहली बार MSP के मुद्दे से और ज्यादा जरूरी मुद्दे उठाये जा रहे हैं। इन किसान नेताओ ने अपने ज्ञापन के माध्यम से पंजाब में बदहाल हो रही भू-जल व्यवस्था और उसकी उपलब्धता के मुद्दे को उठाया है। पंजाब के किसान नेताओं के अनुसार भू-जल का स्तर खतरनाक रूप से निचे जा चुका है और अंधाधुंध औद्योगिकीकरण के कारण पंजाब के कई हिस्से का पानी तो जहर बन चुका है। उन्होंने अपने ज्ञापन माध्यम से राज्य सरकार को चेताया है कि अगर सरकार जल्द ही सुधार के कदम नहीं उठाये तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है हालांकि राजेवाल पानी की माँग करते-करते अपनी संकृण सोच से बाहर नहीं आ सके जब उन्हें नदियों के पानी के बटवारे के मुद्दे पर अपनी पड़ोसी राज्यों जैसे राजस्थान से रायल्टी को माँग की और इशारा किया कि हरियाणा को SYL की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए जबकि आंदोलन के समय हरियाणा राजस्थान के किसान उनके बेटे जैसे होते हैं और उनको साथ के बगैर आंदोलन की कल्पना तक नहीं कर सकते। मगर एक बार अगर उनके और उनके साथियों द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे पर गौर करें तो सामने आता है कि किस तरह हमारे किसान साथियों को MSP के मुद्दे पर बहका कर ध्यान और गेहूँ के चक्कर में फँसा कर न सिर्फ उनकी आर्थिक प्रगति रोक दी गयी है बल्कि उन्हें सरकार के हर उस हितैषी फैसले के खिलाफ भड़काया जाता है जो उन्हें दीर्घकालिक लाभ पहुँचा सकता है। अगर हम बात करें एस के एम के द्वारा- दिये गये मांगपत्र पर तो वो फसलों के diversification की माँग कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने जब फसल डाइवर्सफिकेशन को कहा तो कुछ किसान नेताओं ने 'किसानों को यह कहकर भड़काया था कि ये तो MSP खत्म करने की चाल है जबकि किसानों को संजिदगी से सोचना चाहिए कि फसलों का विविधिकरण न सिर्फ गिरते भू-जल के स्तर को सुधारेगा बल्कि उनकी आर्थिक प्रगति के द्वार भी खोलेगा। देर आये दुरुस्त आये की कवायद करते हुए किसानों के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने आखिर पंजाब सरकार को भी कटघरे में खड़ा करते हुए किसानों के प्रगति और पंजाब को बदहाली में उनके उत्तरदायित्व पर जबाब माँगा है। और दिखाया है कि सिर्फ बाजारीकरण के दौर को जारी रखने वाला MSP ही नही बल्कि और कई ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो कि किसान के जीवन-मरण से जुड़े हुए है। हमें आशा है कि पंजाब की सरकार इन मुद्दों पर ध्यान देगी और किसानों को खुशहाल बनाने की दिशा में कार्य करेगी। अगर हम इससे इतर देखें तो जगजीत सिंह दल्लेवाल, सरवन सिंह पंधेर और राकेश टिकैत जैसे नेता राहुल गाँधी से राजनैतिक जुगलबंदी करने के साथ-साथ किसानों के जमीनी मुद्दों को छोड़कर राजनैतिक मुद्दों के तरफ दौड़ पड़े हैं। इन नेताओं को किसानी मुद्दे भूलकर नये क्रिमिनल कानून, आरक्षण, सामाजिक न्याय, चाहे भले उनके आंदोलनों में और शीर्ष नेतृत्व में दलित और पिछड़े समाज के लिए कोई जगह ना हो और किसान आंदोलन के दौरान एक दलित की निहंगों द्वारा नृशंस और जघन्य हत्या पर मुँह पर पट्टी बाँध ले मगर उन मुद्दों पर अपनी राय और वक्तव्य तो ऐसे दे रहे हैं जैसे पंजाब, हरियाणा, केंद्र और अन्य राज्य सरकारें अपना अर्थ खो चुकी हैं और ये किसान नेता अपने हुक्मनामे से देश और समाज को चलाना चाहते है। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तो इन नेताओं के ये बयान कि भारत भी जल्दी ही बंगलादेश बनेगा। ऐसे बयान हमे यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ये किसान नेता केवल अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं या उनके दिमाग में कुछ और है? भोले किसान और एक जागरूक नागरिक को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना चाहिए।

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