लालू-राबड़ी शासनकाल का विश्लेषण: बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय

 लालू-राबड़ी शासनकाल का विश्लेषण: बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय


बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल को एक ऐतिहासिक और विवादास्पद दौर के रूप में देखा जाता है। यह समयावधि 1990 से 2005 तक फैली रही, जिसमें पहले लालू प्रसाद यादव और फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री रहे। इस दौर में बिहार की राजनीति, सामाजिक संरचना और प्रशासनिक व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। आइए, इस लेख में इस शासनकाल के प्रमुख पहलुओं का विश्लेषण करें।

लालू प्रसाद यादव का उदय और उनकी राजनीति

लालू प्रसाद यादव 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। वे जनता दल से जुड़े थे और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के कारण पिछड़ी जातियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे। उनके शासनकाल की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सामाजिक न्याय की राजनीति रही, जिसमें उन्होंने पिछड़े, दलितों और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक रूप से संगठित किया।

हालांकि, उनके शासनकाल में प्रशासनिक अक्षमता और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। 1997 में चारा घोटाले में आरोप लगने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया।

राबड़ी देवी का शासनकाल

राबड़ी देवी ने 1997 से 2005 तक बिहार की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। उनके शासनकाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति बदतर हो गई और बिहार को 'जंगल राज' का तमगा मिला। हालांकि, लालू प्रसाद यादव पर्दे के पीछे से सरकार को नियंत्रित कर रहे थे। राबड़ी देवी का कार्यकाल राजनीतिक अस्थिरता और विरोधी दलों के कड़े हमलों से भरा रहा।

मुख्य विशेषताएँ और उपलब्धियाँ

  1. मंडल राजनीति का विस्तार: लालू यादव ने सामाजिक न्याय के नाम पर पिछड़ी जातियों, दलितों और अल्पसंख्यकों को संगठित किया, जिससे बिहार की राजनीति में सामाजिक संरचना पूरी तरह बदल गई।

  2. रेलवे में सुधार: लालू प्रसाद यादव ने अपने शासनकाल के बाद जब रेल मंत्री का पद संभाला, तो रेलवे को मुनाफे में लाने के लिए कई सुधार किए। हालांकि, बिहार में उनके शासनकाल में आर्थिक विकास नहीं हुआ।

  3. लालू का जनाधार: गरीब और वंचित वर्गों में उनकी लोकप्रियता चरम पर रही। उनके शासनकाल में यादव समुदाय की राजनीतिक शक्ति बढ़ी।

विवाद और आलोचना

  1. चारा घोटाला: यह सबसे बड़ा घोटाला था, जिसने लालू प्रसाद यादव की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया। इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

  2. कानून-व्यवस्था की स्थिति: इस दौरान अपराध और अपहरण की घटनाएँ बढ़ गईं, जिससे बिहार को 'जंगल राज' कहा जाने लगा।

  3. विकास की कमी: बिहार में बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विकास ठप हो गया, जिससे राज्य पिछड़ता चला गया।

लालू-राबड़ी शासनकाल बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें सामाजिक न्याय की राजनीति ने जोर पकड़ा लेकिन प्रशासनिक कुशासन, भ्रष्टाचार और अपराधों ने राज्य को विकास से दूर कर दिया। इस दौर के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव रहे, जो आज भी बिहार की राजनीति में देखने को मिलते हैं।

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