शासन और प्रशासन की नींद हादसे के बाद ही क्यों टूटती है?

 शासन और प्रशासन की कुंभकर्णी नींद: बड़े हादसों पर जागते हैं अधिकारी, कुछ दिन के बाद फिर सो जाते हैं

जब भी कोई बड़ा हादसा होता है, शासन और प्रशासन की कुंभकर्णी नींद टूटती है। आनन-फानन में अधिकारी और मंत्री सक्रिय होते हैं, नियम लागू किए जाते हैं, निरीक्षण होते हैं, और वाहनों पर नकेल कसने की प्रक्रिया शुरू होती है। परंतु इस कार्रवाई का असर कुछ दिनों तक ही रहता है। महेंद्रगढ़ में हुए हादसे के बाद 6 बच्चों की दर्दनाक मौत ने प्रशासन को झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद प्रशासन ने नियमों के पालन का आश्वासन दिया, मगर कुछ ही समय बाद यह सक्रियता फिर से ढीली पड़ गई।

प्रशासन की सुस्ती का नतीजा यह है कि स्कूल और उनके परिवहन नियमों का उल्लंघन करना जारी रखते हैं। बिना पंजीकरण के चल रहे प्ले स्कूलों और अनफिट, ओवरलोडेड बसों का संचालन एक गंभीर खतरा बना हुआ है। स्कूल वाहन आए दिन दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं।

नरवाना में एक और बड़ा हादसा होते-होते टला

हाल ही में नरवाना के एक स्कूल की बस की दुर्घटना की घटना सामने आई। यह घटना तब हुई जब गुरथली रोड पर शिव शीशु नामक स्कूल की बस की टक्कर एक ट्राली से होते-होते रह गई। इस दुर्घटना में एक मोटरसाइकिल सवार गंभीर रूप से घायल हुआ और उसे रोहतक पीजीआई में भर्ती कराया गया। हादसा टलने के बावजूद यह घटना बड़ी दुर्घटनाओं के खतरे की घंटी है।

बिना पंजीकरण के स्कूलों का संचालन और प्रशासनिक लापरवाही

नरवाना में कई ऐसे प्ले स्कूल चल रहे हैं जो बिना पंजीकरण के ही संचालित हो रहे हैं। इन स्कूलों के वाहन भी अनफिट और ओवरलोड हैं, लेकिन इन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इन स्कूलों के खिलाफ कई बार शिकायतें हो चुकी हैं, पर प्रशासनिक अधिकारी इन संस्थानों के प्रति नरमी बरतते हुए दिखाई देते हैं। यह प्रशासनिक लापरवाही न केवल स्कूलों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है बल्कि हर बच्चे के जीवन को खतरे में डालती है।

निष्कर्ष

प्रशासन का अस्थायी जागना और फिर से पुराने ढर्रे पर लौट जाना एक गंभीर समस्या बन चुका है। हर बड़े हादसे के बाद जागना और फिर सो जाना बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ है। जरूरत है कि ऐसी घटनाओं को अनदेखा न किया जाए और प्रशासन सख्त और स्थायी कदम उठाए, ताकि भविष्य में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता न हो।

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